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Wednesday, June 15, 2016

चरित्र प्रमान-पत्र | Angika Kahani | अंगिका कहानी | Charitra Praman Patra | Angika Story | प्रो. (डॉ.) लखन लाल सिंह आरोही

चरित्र प्रमान-पत्र | अंगिका कहानी | प्रो. (डॉ.) लखन लाल सिंह आरोही
Charitra Praman Patra | Angika Kahani | Angika Story 

Prof. (Dr.) Lakhan Lal Singh Aarohi

रघ्घू मास्टरें एकटक हाय इसकूलऽ के मकान देखी रहलऽ छै । मकान नै खंडहर छेकै । यही इसकूलऽ मं॑ मास्टर बहाल होय क॑ रघ्घू मास्टर लगभग पचास बरस पैहन॑ ऐलऽ छेलै आरू बादऽ मं॑ यह॑ गाँव माधोपुरऽ मं॑ बसी गेलै । तैहिय्ये स॑ रघ्घू मास्टर यहीं आपनऽ मकान बनाय क॑ रही रहलऽ छै । मकान ठीक इसकूली के आमने-सामने छै ।

एक समय हय इसकूलऽ के मकान बड़ी भव्य छेलै । उत्तम पढ़ाय-लिखाय । ईलाका के हय इसकूल ऑक्सफोर्ड कहलाय छेलै । स्कूल के पुस्तकालय दुर्लभ ग्रंथऽ सिनी स॑ भरलऽ रहै छेलै । लेकिन जब॑ स॑ इसकूलऽ के सरकारीकरन होलै – सब चौपट होय गेलै । नै हौ मास्टर, नै हौ पढ़ाय । पुस्तकालय के कोय पता नै । आरू इसकूलऽ के मकान खंडहर होय क॑ परलऽ छै ।

रघ्घू मास्टर के नजर जब॑ भी इसकूलऽ पर पड़ै छै, त॑ उनका यह॑ लगै छै कि इसकूल दिन-रात कानी रहलऽ छै - कपसी रहलऽ छै । कोय लोर पोछै वाला नै, सब्भे गिद्ध ! दिन रात गाँवऽ के गिद्धें इसकूली के संपत्ति लूटी रहलऽ छै । हय तरफ केकऽ नै धियान । सब्भे खाली लूटै प॑ । नै त॑ सब तमसगीर !

रघ्घू मास्टरें कत्त॑ बेरी हय इसकूलऽ क॑ सुधारै बासतं॑ कोसिस करलकै । अफसरऽ सिनी स॑ बातचीत करलकै, लेकिन सब बेरथ । इसकूली के चिंता नै हय गामऽ क॑, नै इसकूली के मास्टर क॑ । चिंता छै त॑ खाली रघ्घू मास्टर क॑ । लेकिन रघ्घू मास्टर के बातऽ के गामऽ मं॑ कोय असर नै । गामऽ म॑ रघ्घू मास्टर मिसफिट । दिन-रात रघ्घू मास्टरें घुटन अनुभव करै छै, लेकिन की करतै – लाचारी हय गामऽ मं॑ रहै छै आरू जब॑-जब॑ इसकूली प॑ नजर पड़ै छै – रघ्घू मास्टर दास होय जाय छै ।

रघ्घू मास्टर उदास कैन्हें रहै छै भाय ? रघ्घू मास्टर केरऽ उदासी के की कारन छै ? हुन्हीं सोचै छै, “यही इसकूली के कारन हम्मं॑ इ गाँव माधोपुरऽ मं॑ आबी क॑ बसलंऽ, हय इसकूल नै रहतियै त॑ हम्मं॑ कथी ल॑ यहाँ ऐतियों ?” हुनी अपना क॑ हय इसकूली केरऽ रीनी समझै छै । इसकूलऽ के दरऽद नै देखलऽ जाय छै । यै वास्तं॑ इसकूलऽ के उद्धार करै ल॑ चाहै छै । लेकिन कोय सहयोग करैवाला नै – सब्भे लूटैवाला ।

रघ्घू मास्टर के बात कोय सुनै वाला नै – सब सुवारथ मं॑ डुबलऽ । आरू इसकूल रोजे-रोज खंडहर होलऽ जाय रहलऽ छै । रघ्घू मास्टर के उदासी भी रोजे-रोज गहरिऐलऽ जाय छै ।

पचास बरस पैंहनं॑ माधोपुर के समाज ऐसनऽ चौपट नै छेलै ।  लोगऽ मं॑ सामाजिक चेतना आरू संवेदना छेलै । लोग सामाजिक सरोकार सं॑ लैस छेलै । सांस्कृतिक चेतना सं॑ ग्रामवासी समृद्ध छेलै । ऐसने मानसिकता मं॑ हय हाय इसकूल बनलंऽ छेलै –इलाका केरऽ इसकूल । अतने नै माधोपुर गामऽ मं॑ पुस्तकालय छेलै आरू हर साल रंगमंच प॑ नाटक खेललऽ जाय छेलै । लेकिन समय के साथ समाज बदललऽ गेलै आरू हय गाँव उजड़लऽ गेलै । आय माधोपुर मं॑ नै हौ समाज नै हौ वातावरण । ई गामऽ मं॑ घऽर त॑ माटी के स्थान पर पक्का के बनी गेलै – लेकिन चेतना आरू संवेदना खंडहर होय गेलै ! उजाड़ गाँव के नाम छेकै आय माधोपुर !

उजड़लऽ गाँव माधोपुर मं॑ खंडहर हाय इसकूल !

माधोपुर गामऽ मं॑ सब कुछ चमकै छै – मंदिर, सिवाला, हर आदमी के घऽर ! उदारीकरन आरू वैस्वीकरन के कारन छोटका स॑ बड़का तलक सब्भे के ड्रेस चमकै छै, खाली उदास खड़ा छौं गामऽ मं॑ खंडहर बनी क॑ हाय इसकूल ! सरकारी योजना सं॑ पुस्तकालय के नामऽ पर गाँव मं॑ एक ठो कोठरी भी बनलऽ छै, ओकरा प॑ जानवर के कब्जा छै ।

एक तरफ माधोपुर गामऽ मं॑ लोगऽ के जीवन-सैली के तड़क-भड़क आरू दोसरऽ तरफ रोज-रोज खंडहर बनलऽ जाय रहलऽ हय गामऽ के हाय इसकूल !

बिजली केरऽ रौसनी मं॑ रात भर माधोपुर नहाय छै आरू ओकरऽ हाय इसकूल अन्हार के दंस झेलै छै ! जब॑ गामऽ के विवेक के रौसनी बुझी गेलऽ छै त॑ लोगऽ क॑ इसकूल के अन्हार केना झलकतै !

हय के ज्योतिसीं बतैतै कि कब॑ माधोपुर के लोगऽ के विवेक के रौसनी पैदा होतै ?

माधोपुर के हाय इसकूल हय गामऽ के छेकै चरित्र – प्रमान-पत्र !

प्रो. (डॉ.) लखन लाल सिंह आरोही, 

भूतपूर्व अध्यक्ष, बिहार अंगिका अकादमी, 

202, तिरूपति इन्क्लेव, मोहनपुर, पुनाईचक, पटना – 800 023

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