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Sunday, July 14, 2019

महापर्व नवरात्र | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

महापर्व नवरात्र | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

आश्विन शुक्ल पक्ष केरऽ पडि़वा (प्रतिपदा) से नौमी तक केरऽ अवधि के नवरात्र कहलऽ जाय छै । माता दुर्गा ही समूचा (सम्पूर्ण) विश्व केरऽ शक्ति, स्फूर्ती आरो स्वास्थ्य दै छथिन, देवता सनी केरऽ सहायता के लेलऽ माता जगदम्बा अनेक रूपऽ में प्रकट होलऽ छथिन । घुम्रांक्ष, शुंभ- निशुंभ, चंड- मुंड, मधु कैटभ रक्त बीज आरो महिषासुर जेन्हऽ असुरऽ के संहार करी के ही, महिषासुर मर्दनी कहैलऽ छथिन । जगत जननी माता के प्रकृति भी कहलऽ गेलऽ छै । ई शब्द केरऽ तीन अक्षर सत्व, रज, आरो तम गुणऽ केरऽ प्रतीक छथिन । दुर्गति नाशिनी होवे के कारण माता भगवती के दुर्गा भी कहलऽ जाय छै । दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण होने के कारण नवरात्र के नौ दिन शक्ति केरऽ आराधना केरऽ विशेष फल दै छथिन । अंक में भी नौ अंक के सर्वाधिक ऊर्जावान मानलऽ गेलऽ छै । देवी माता केरऽ त्रिगुणात्मक शक्ति ही नौ दुर्गा स्वरूप छै । ऐसे से पुरे भारत में नवरात्र केरऽ उत्सव बड़ी उल्लास के साथ मनैलऽ जाय छै । ई दौरान माता दुर्गा केरऽ नवऽ रूपऽ केरऽ पूजा करे से नवऽ ग्रहऽ केरऽ पीड़ा (कष्ट) केरऽ भी शमन होय जाय छै । नवरात्र केरऽ व्रत आरो अनुष्ठान में आदमी के अपनऽ परिवार आरो गुरू परंपरा केरऽ ही अनुसार करना चाहव । व्रत केरऽ मुख्य उद्देश्य छै संयम केरऽ प्राप्ति संयमी ही शक्ति केरऽ संयम करी सके छै । ई व्रत आश्विन महीना केरऽ शुक्ल पक्ष केरऽ पडि़वा (प्रतिपदा) से नवमी तक करलऽ जाय छै । कुछ समुदाय में केवल पडि़वा आरो अष्टमी के ही व्रत रखै छै । भक्त के वेहे नियम अपनाना चाहीवऽ जेकरा से ओकराऽ सेहत (शरीर) पर कोय नुकसान नांय पहुंचे । नवरात्र केरऽ शुरू आश्विन शुक्ल पक्ष पडि़वा (प्रतिपदा) के शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना केरऽ साथ करलऽ जाय छै । अखंड ज्योति जलाबे केरऽ भी विधान छै । ताकि देवी माता हमरऽ घरऽ में नौ दिन तक विराजमान रहथ । नवरात्र में नवरात्र में नौ दिन देवी नौ रूपऽ में समर्पित छथिन आरो रोज दिन, देवी माता केरऽ कोय एक खास रूपऽ केरऽ विधिवत पूजा करलऽ जाय छै ।
शैलपुत्री- माता दुर्गा अपनऽ पहला रूप में शैलपुत्री केरऽ नामऽ से जानलऽ जाय छथिन । वृषभ (बैल) पर सवाल देवी केरऽ दाहिना हाथऽ में त्रिशूल आरो बाँया हाथऽ में कमल फूल सुशोभित छैन । पूर्व जन्म में ऐहे देरी दक्ष प्रजापति केरऽ कन्या सती छेली । नवरात्र केरऽ पहला दिन हिन्कऽ पूजा करलऽ जाय छैन । देवी भक्त के निरोग रहे केरऽ वरदान दै छथिन । पूजा आरो भोग:- सब से पहिले चावल के कलश में भरी के ओकरा पर घी केरऽ दीया जलाबऽ, फेरू धूप- दीप, कपूर, कुमकुम आरो सुहाग सामग्री अर्पित करी के हुन्का लाल रंग केरऽ चुनरी ओढ़ाबऽ बाजा- गाजा केरऽ साथ देवी माता केरऽ आवाहन करऽ । जों तोहें बिना पंडित केरऽ कलशा स्थापना करे ले चाहे छऽ ते पीतर (पीतल) । केरऽ कलशा में गंगाजल, जौ, तील, आरेा अक्षत डालऽ । फेरू ओकरऽ चारो तरफ लाल कपड़ा बांधी के ओकरा पर स्वस्तिक केरऽ चिन्ह बनाबऽ कलशा केरऽ बीचऽ में आम केरऽ पल्लव लगाबऽ सूखा- नारियल लाल कपड़ा में लपेटी के देवी माता केरऽ ध्यान करते होलऽ कलशा पर स्थापित करऽ । कलशा स्थापना से पहिले गणेश जी आरो शिव जी केरऽ ध्यान करते होलऽ हुन्कऽ पूजा जरूर करऽ । चमेली केरऽ फूल शैलपुत्री माता के बहुत प्रिय छैना एकरऽ अभाव में अड़हुल केरऽ फूल भी चढ़ैलऽ जाय छै । पहला दिन माता के देशी घी अर्पित करलऽ जाय छै । एकर अलावा दूध से बनलऽ पकवान नारियल केरऽ बर्फी पोस्ता केरऽ हलवा, लौंग- इलायची आरो पान केरऽ बीड़ा (कथा, चूना, सुपाड़ी युक्त पान) से माता बहुत प्रसन्न होय छथिन ।
ब्रह्मचारिणी- माता दुर्गा केरऽ दोसरऽ स्वरूप ब्रह्मचारिणी केरऽ छै, जे तप केरऽ आचरण करे वाली छथिन । हिन्कऽ स्वरूप ज्योर्तिमय छैन । दहिना हाथ में जय माला आरो बांया हाथऽ में कमंडल रहे छैन । पिछला जनम में पर्वतराज हिमालय केरऽ बेटी पार्वती छेली, आरो अपनऽ तपस्या केरऽ बल से हि नी शिवजी के प्राप्त करलऽ छेली । ई देवी अपनऽ भक्त के संयम, त्याग, आरो सदाचार केरऽ वरदान दै छथिन । पूजा आरो भोग- कपूर आरो लौंग द्वारा माता केरऽ आरती करऽ छिन्का गुलाबी रंग केरऽ चुनरी ओढ़ाबऽ आरो अड़हुल फूल केरऽ भाला या सफेद फूल चढ़ाबऽ । हिन्का माल पुआ आरेा केला केरऽ भोग लबागऽ ।
चन्द्रघंटा- सिंह पर सवार दस भूजा वाली ई देवी केरऽ मस्तक पर घंटा केरऽ आकार केरऽ अर्द्धचन्द्र (आद्यऽचन्द्रमा) छै । हिन्कऽ शरीर सोना के समान चमके छैन । हिन्कऽ भयानक, घंटा ध्वनि से असूर मय भीत रहे छै । माता अपनऽ भक्तऽ के संसार केरऽ कष्टऽ से मुक्ति करे छथिन । पूजा आरो भोग- तीसरऽ दिन माता केरऽ पूजा सुगंधित धूप, इत्र, आरो कपूर से करना चाहीवऽ । हिन्का केसरिया रंग केरऽ चुनरी ओढ़ाय के चूड़ी बिन्दी सहित सुहाग केरऽ सब चीज अर्पित करऽ, गेंदा या अड़हुल फूल केरऽ माला चिन्हाबऽ । माता चन्द्रघंटा के खोवा से बनलऽ मिठाय, खीर आरेा अनार केरऽ भोगल गाबऽ ।
कुष्मांडा- जबे सृष्टि केरऽ अस्तित्व नांय छेले आरेा चारेा तरफ अंधकार छेले । तबे हिनी अपनऽ हाथऽ से ब्रह्मांड केरऽ रचना करलऽ छेली । ऐहे सृष्टि केरऽ आदि स्वरूपा आरो आदि शक्ति छथिन । हिन्के तेज आरो प्रकाश से दसो दिशा में चमकी रहलऽ छै । हिन्क आठ भुजायें छेन ई अष्टभुजी देवी केरऽ नाम से विख्यात छथिन । संस्कृत में कोंहड़ा के सीताफल या कुष्मांडा कहलऽ जाय छै । जे हिन्का बहुत प्रिय छैन । एकरऽ बलि से माता शीघ्र पस्न्न होय जाय छथिन । हिन्कऽ पूजा हे आयु, यश, आरो, बल केरऽ वृद्धि होय छै । पूजा आरेा भोग- चौथा दिन केरऽ पूजा में माता के पीला कनेर केरऽ फूल चढ़ाबऽ आरो ऐहे रंग केरऽ चुनरी ओढ़ाबऽ । कपूर, लौंग से आरती करऽ, सुहाग केरऽ चीज में बिन्दी सिन्दूर अर्पित करऽ नारियल केरऽ जगह कोंहड़ा, केला आरो संतरा केरऽ भोग लगाबऽ । ई दिन माता के केसरिया खीर या पुलाव भी चढ़ैलऽ जाय छै ।
स्कंदमाता- दुर्गा माता अपनऽ पांचवें स्वरूप में, स्कंदमाता केरऽ नाम से जानलऽ जाय छथिन । नवरात्र केरऽ पांचवा दिन हिन्कऽ पूजा करलऽ जाय छै । हिन्कऽ स्वरूप वात्सल्यमय छै, आरो ई अपनऽ भक्तऽ पर सदैव कृपा-दृष्टि बनैलऽ रखे छथिन । संतान केरऽ इच्छा रखे वाली हिन्कऽ आराधना से संतान सुख केरऽ प्राप्ति होय छै । कमल केरऽ फूल पर विराजमान स्कंदमाता सफेद वर्ण केरऽ छथिन । ऐहे से हिन्का पदमासना देवी भी कहलऽ जाय छै । हिन्कऽ पूजा से बाल रूप स्कंद भगवान (कार्तिकेय) केरऽ भी पूजा करलऽ जाय छै । कुमार कार्तिकेय केरऽ नाम से जाने वाला स्कंद जी प्रसिद्ध देवासुर- संग्राम में देवताओं केरऽ सेनापति छेलात । आरो हिन्कऽ वाहन मोर छै । पूजा आरो भोग- ई दिन माता के हरा, रंग केरऽ वस्त्र से सजैलऽ जाय छै । लाल- गुलाबी फूल केरऽ माला चढ़ाबे से देवी अत्यंत प्रसन्न होय छथिन । ई दिन माता के सोना या चांदी केरऽ आभूषण चढ़ाबै केरऽ नियम छै । धूप-दीप आरो कपूर द्वारा हिन्कऽ स्तुति करलऽ जाय छै । हिन्का ठंढा खीर, सेव, नाशपाती आरो खीरा केरऽ भोग लगैलऽ जाय छै ।
कात्यायनी- नवरात्र केरऽ छठा दिन माता दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप केरऽ पूजा करलऽ जाय छै । हिन्कऽ अवतरण महर्षि कात्यायन केरऽ घोर तपस्या से होलऽ छै । आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के जनम ले के शुक्ल पक्ष केरऽ सप्तमी, अष्टमी, आरो नवमी, ई तीन दिनऽ में कात्यायन ट्टषि केरऽ पजा ग्रहण करला केरऽ बाद दशमी के माता कात्यायनी ने महिषासुर केरऽ वध करला छेली । ऐहे से ई महिषासुर मर्दनी भी कहाबे छथिन । ब्रज मंडल में ई अधिष्ठात्री देवी केरऽ रूपऽ में प्रतिष्ठित छथिन । पूजा आरो भोग- हिन्कऽ पूजा में सब प्रकार केरऽ सुहाग सामग्री अर्पित करलऽ जाय छै । धूप- दीप, कपूर, लौंग पान आरो सुपाड़ी से पूजा करे से माता अति शीघ्र प्रसन्न होय जाये छथिन । माता कात्यायनी केरऽ पूजा में नारियल केरऽ बलि अवश्य देलऽ जाय छै । छठा स्वरूप में माता के लाल रंग केरऽ चुनरी ओढ़ाबऽ माता के लालरंग केरऽ गुलाब या अड़हुल फूल केरऽ माला पिन्हाबऽ सुयोग्य वर केरऽ प्राप्ति के लेलऽ कुंवारी कन्या के हिन्कऽ पूजा करना चाहीवऽ । पूरे साल माता कात्यायनी केरऽ अमोध मंत्र केरऽ जप करे से अविवाहिता कन्या के इच्छित वर केरऽ प्राप्ति होय छै । कात्यायनी माता के मीठऽ पकवानऽ सहित पंचामृत, माखन मिश्री, शहद, अनार, सेव आरो केला केरऽ भोग लगावऽ ।
कालरात्री- माता दुर्गा केरऽ सातवाँ शक्ति छथिन, कालरात्री हिन्कऽ शरीर केरऽ रंग घनऽ अंधकार के तरह काला (कारऽ) आरेा केश छिटकल (विखरलऽ) होलऽ छैन । हिन्कऽ गला में बिजली जेन्हऽ चमके वाली माला छैन, तीन आँखऽ वाली माता केरऽ नाकऽ से भयंकर ज्वाल निकले छैन । आरो हिन्कऽ वाहन गर्दन (गधा) छै । भयंकर स्वरूप में देखाबे वाली माता हमेशा शुभ फल दै छथिन । ऐहे कारण संशु भंकरी नामऽ ेस जानलऽ जाय छथिन । हिन्कऽ पूजा से ग्रह, बाधा, आरो शत्रु भय केरऽ नाश होय छै । पूजा आरो भोग- गाढ़ऽ लाल रंग केरऽ ओढ़ने से माता केरऽ श्रृंगार करऽ रातरानी या नीला रंग केरऽ कोय भी फूल माता के अर्पित करऽ । लौंग, कपूर, पान सुपाड़ी, इलायची आरो धूप-दीप से स्तुति करऽ । माता कालरात्री के खिचड़ी, चना आरेा गुड़ से बनलऽ- सामान केरऽ अलावा गुड़ आरो आटा से बनलऽ हलुवा फल अर्पित करऽ । नारियल केरऽ बलि से माता काल रात्री शीघ्र प्रसन्न होय जाय छथिन ।
महागौरी- माता दुर्गा केरऽ आठवीं शक्ति महागौरी छथिन । हिन्कऽ हिन्कऽ रंग एकदम सफेद (गोरऽ) छै । हिन्कऽ गोरऽ रंग केरऽ उपमा शंख, चन्द्र आरो सफेद कमल केरऽ फूलऽ से करलऽ गेलऽ छै । हिन्कऽ आयु आठ वर्ष केरऽ मानलऽ गेलऽ छै । हिन्कऽ वाहन बृषभ (बैल) छैन । ई अत्यंत शान्त मुद्रा में रहे छथिन । पार्वती रूप में शिवजी के प्राप्त करे के लेलऽ हिनी कठीन तपस्या करलऽ छेली, जेकरा से हिन्कऽ रंग काला (कारऽ) होय गेलऽ छेल्हेंन । हिन्कऽ तप से प्रसन्न होय के शिवजी ने गंगा जल से स्नान कर बैल का तेब गौरीमाता केरऽ रंग एकदम सफेद (गोरऽ) होय गेल्हेव, आरो तभी से महागौरी कहाबे लागली । पूजा आरो भोग- गुलाबी रंग केरऽ वस्त्र से माता केरऽ सिंगार करऽ कपूर आरो धूप, दीप से हिन्कऽ पूजा करऽ । सफेद फूल अर्पित करे से माता गौरी प्रसन्न होय के अपनऽ भक्तऽ केरऽ सब दुख आरो पापड़ से बचाबे छथिन । हिन्का सूखा नारियल से बनलऽ मिठाय, चावल आरो मखान केरऽ खीर, केला, सेव, संतरा या नाशपाती केरऽ भोग लगाबऽ ।
सिद्धिदात्री- माता दुर्गा केरऽ नवीं शक्ति सिद्धि दात्री केरऽ नामऽ से जानलऽ जाय छै । ई देवी सभे प्रकार केरऽ सिद्धि के दै वाली छथिन । चार भुजावऽ वाली देवी कमल फूल पर विराजमान छथिन, सब प्रकार केरऽ सम्पत्ति से युक्त देवी दिव्य स्वरूपा छथिन । पूजा आरेा भोग- दीया जलाय के कपूर, लौंग तिल आरो पान सुपाड़ी अर्पित करला केरऽ बाद हवन करी के हिन्कऽ पूजा संपन्न करलऽ जाय छै । हवन में जौ, तिल, चावल, पंचमंवा, घी, आरो आम केरऽ लकड़ी प्रयोग में करलऽ जाय छै । माता के सब प्रकार केरऽ सिंगार चढ़ाय के लाल वस्त्र से सजैलऽ जाय छै । अड़हुल, कमल, आरो गुलाब केरऽ फूल माता के प्रसन्नता दै छै । नवमी के दिन माता के हलुवा, पुड़ी, चना, खीर, जलेबी आरो पंचमेवा पाँच फल केरऽ भोग चढ़ैलऽ जाय छै । ई तरह कन्या पूजन के साथ नवरात्र केरऽ व्रत संपन्न होय छै । नवमी के दिन हवन के बाद कलश केरऽ पवित्र जल अपनऽ घरऽ में छिटल (छिड़कलऽ) जाय छै । जौ केरऽ हरियाली (जयंत्री) माता केरऽ आशीर्वाद स्वरूप ग्रहण करऽ आरो अपनऽ घरऽ में सुरक्षित जग्घऽ पर रखऽ एकरा से परिवारऽ में सुख समृद्धि आवे छै । नदी या तालाब में कलशा विसर्जन करी के पारणऽ करऽ ।


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