Search Angika Kahani

Friday, July 12, 2019

समाज में बहुत बदलाव आबी गेलऽ छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

समाज में बहुत बदलाव आबी गेलऽ छै  | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

माय बाप बेटी के ई बताबे छै कि बेटा आरो बेटी बराबर छै, लेकिन बेटा के ई बात बताबे ले भूली जाय छै । बेटी सब के बराबरी केरऽ वास्तविक मतलब समझाबे में चुकी जाय छै, ऐहे से बीहा केरऽ बाद बराबरी केरऽ प्रवृत्ति बनी जाय छै । छोटऽ छोटऽ बात भी बोझऽ लागे लागे छै । जनानी केह छै कि सब काम हमहीं काहे करबऽ, दोसरऽ तरफ मर्दाना केरऽ साथ बोड़ऽ भेलऽ जवान लड़का कहे छै कि तोरऽ काम छिकौ, हम्में काहे मदद करबौ ? गाजियन अपनऽ बच्चा सबके सभे बातऽ से तैयार करे छै, लेकिन रिश्ता के लेलऽ ज्ञान नांय दै छै । अपनऽ जीवन में रिश्ता केरऽ अपनापन में कमी छै आरो हमरऽ सोच भी ई रिश्ता आरो सामाजिक संबंध के लै के प्रैटिक्ल होय चललऽ छै । एन्हऽ संस्कार के बीच दाम्पत्य केरऽ नया रिश्ता निभाना आरो सुदृढ़ करे के लेलऽ जे सब आरेा समझदारी केरऽ दरकार होय छै । वू गायब छै । बेटा आरो बेटी दोनों ‘‘मैं’’ आरो ‘‘मेरा’’ से आगु बढ़ी के ‘‘हमारा’’ तक कम ही सोची पावे छै । बेटा सब केरऽ परवरिश केरऽ ढंग बदले ले होते । आरो बेटी के भी कुछ परिभाषा केरऽ नया तरह से सिखावै ले होते । जेना (जैसे) मजबूत होय केरऽ मतलब सिर्फ ‘‘मैं’’ नांय होते बदलाव केरऽ । या केकरो बात मानी लेना केरऽ मतलब कमजोर होना नांय होय छै । काहे कि परंपरा केरऽ अनुसार बेटी के ही सब कुछ छोड़ी के नया घरऽ में जाय ले होय छै । जों बेटी के कोय चीजऽ पर आपत्ति छै, या वू सहमत नांय छै, ते ओकरा असहमति के सही ढंग से रखे, पति पत्नी दोनों के ई सोच छोड़े ले होते कि हम्में सब जानै छी । परिवार केरऽ कोय बुढ़ (बुर्जुग) अपनऽ अनुभव से कुछ बताय रहलऽ छै, ते हमेशा एकरऽ मतलब दबाना या दखल अंदाजी करना नांय होय छै । कुल मिलाय के कहऽ परवरिश के दौरान (समय) बच्चा सब के मजबूत आरो आत्म निर्भर केरऽ साथ समझदार आरो पो कठोर (पपिक्व) बनाबे केरऽ कोशिश भी होना चाहिब । बिहालऽ बेटी के भी समझदारी, मजबूती आरो पूरा तरह से समझै केरऽ जरूरत छै । बीहा टुटना अबे समाज के लेलऽ ओत्ते बोड़ऽ बात नांय रही गेले । जेतना चालीस पचास साल पहिले छेले । सामजिक दबाव कम होय से आरो आदमी केरऽ सोच बदले से भी ई तरह केरऽ फैसला लेलऽ जाय रहलऽ छै । दोसरऽ तरफ, अलग परिवार होय के चलते बिना कोय संकोच या लिहाज केरऽ झगड़ा होय छै । यहां तक कि सामने केरऽ बात ओकरऽ पक्ष में समझै नांय । ऐहे से सुनलऽ जाय छे कि मुंह तोड़ जवाब देलऽ जाय सके। अबे लागे सब कोशिश नाकाम होय चुकलऽ छै । आरो अबे तलाक ही एकमात्र रास्ता छै । देखऽ कि कहीं ई जाय वाला ते नांय छै । तोहें अपनऽ तलाक केरऽ बाद केरऽ । जीवन केरऽ योजना की बनैलऽ छऽ । योजना के छोड़ऽ वू जी वन केरऽ कल्पना भी करलऽ छऽ ? एक छोटऽ सन फैसला लै से पहले निर्णय करे छै, तलाक के बारे में तोहें कुछ सोचलऽ भी छऽ ? या आवेश में ही सब निर्णय लैरहल छऽ ।


टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.

Search Angika Kahani

Carousel Display

अंगिकाकहानी

वेब प नवीनतम व प्राचीनतम अंगिका कहानी के वृहत संग्रह

A Collection of latest and oldest Angika Language Stories on the web




संपर्क सूत्र

Name

Email *

Message *