प्रिय चीज केरऽ मोह छोड़ना असली त्याग | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक संत केरऽ जीवन कथा छिके । संत जी बड़ी तपस्वी आरो संयमी छेलत्त। एक दिन टुन्कऽ मन में बिचार ऐल्हें कि हम्में खान- पान पर संयम करी लेलऽ छी लेकिन हमरा दूध पीना बड़ी प्रिय लागे छे। काहे नाय एकरो छोड़ी ढेलऽ जाय। असली त्यागवेहे होवे छै, जबे प्रिय चीज छोड़ी ढेलऽ जाय । तपस्या में सबसे पहिले स्वाद के ही छोड़े ले होप छै । संत जी दूध पीये ले छोड़ी देलकात । सबसे बड़ी आश्चर्य भेले हुन्हीं कठीन संयम करो के 45 साल बित्प्रय ढेलका, एक दिन अचानक हुन्कऽ मनऽ ने कह लके दूध पीलऽ जाय, नांप चाहते होलऽ भी दूध पीये केरऽ इच्छा बढ़ते गेलऽ । संतजी के यहाँ एक धनी जनानी केरऽ आना- जाना छेले । हुन्हीं ऊजनानी से कहलका देवी जी रात में हम्में दूध पीये ले चाहै छी । ऊ जनानी जाने छेली कि संत जी जीवन भर दूध नांय पीये केरऽ प्रतीज्ञा करलऽ छय । जब रात होले तने ऊ जनानी ने करीब 45 हौला दूध से भरलऽ होलऽ संतजी केरऽ कुटिया के बाहर रस देलकी आरो संत जी से कहलकी महाराज, दूध पी ले । संत चौंकी के ऊ जनानी से पुछलका, हमरा ऐर्त्त दूध अकेले पीये पड़ते, एतना हौला कथी ले ? ऊ जनानी कहलकी आखिर 45 सालऽ से दूध पीये ले छोड़ल छऽ ते । ओकरऽ हिसाब से एक ते कागजे ने करथों, संत जी ऊ जनानी केरऽ बातऽ के समझी गेलाता संतजी ने ऊ जनानी से क्षमा माँ गर्त्त होलऽ कहलकात हम्में मनऽ पर टुटते संयम पर काबू पाय लेलऽ छिये । सही मन कोय भी उम्र में विपरीत प्रभाव डाली दै छै। काबू कोर एके तरीका छै अभ्यास । लेकिन सतत अभ्यास जड़ता केरऽ रूपऽ नांय होय जाय एहे से एकरा में चैतन्य बनैलऽ रखना चाहीव आदमी केरऽ मोन बच्चा के तरह चंचल होय छै । कभी ते समय बजाय छे कभी ते कुछ ने कुछ मचाबे लगे छै। मन के नियंत्रित राखे ले नया-नया तरीका खोजे ले पड़े छै । आरो जेकरऽ में नियंत्रित में छै, ओकरऽ नियंत्रित कहियों गलत नांय होय छै ।
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