विश्वास आदमी केरऽ ताकत छिकै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
कहलऽ जाय छै कि दुनियाँ विश्वास पर टिकलऽ होलऽ छै । विश्वास केए शुरू यहीं से होलऽ छै कि कोय न कोय ई दुनियाँ के चलावे वाला छै । आए वेहे ताकत ई दुनियां केरऽ मालिक छिके । जे नजरऽ में नांय देखावे छै । लेकिन पुरे दुनियां केरऽ फैसला अन्तिम हुन्के हाथऽ में छै । एकक विकेरऽ कहे मुताविक एक बेर एक विद्वान केए एक नास्तिक आदमी से बहस होय गेले । नास्तिक कही रहलऽ छेले कि ई दुनियां बनावे वाला या पैदा करे वाला कोय नांय छै । कवि बहस वाला जगह पर देरी से ऐला । वहाँ केरऽ लोगे हुन्का से पुछलके एतमा देरी कहाँ लागी गेल्हों ? तबे हुन्हीं कहलका हम्में एकरा अजीब घटना सुनाबे ले चाहे छिये । हम्में आनी रहलऽ छे लिये, देखलिये कि नदी किनारा एकरा गाछ अपने गिरी गेले, देखते- देखते पटरा चिराय गेले, ओकरा से एक नाँव तैयार होय गेले, आरो नाव पर चढ़ी के लोग आना- जाना करे लागले । अबे बताबऽ हमर बातऽ पर विश्वास करभऽ । वास्तिक जोर- जोर ठढाय के हँसे लागले आरो कहलके तोरा हेनऽ विद्वान भी झूठ बोले छऽ । भला एन्हऽ काम अपने- अपने किरंऽ होते ? कवि कहलका कमाल छै, ई जमीन, आकाश, चाँद, सुरज, तारा, पहाड़, पर्वत, नदी आरो सबसे बोड़ऽ बात आदमी ई सब भगवान के बीना तैयार होय गेले ? नाव अपने- अपने बनना झूठ छै ? नास्तिक ई सुनी के अचरजऽ में पड़ी गेले । वें विश्वास करी लेलके कि आदमी केरऽ किस्मत कोय दोसरे मालिक केरऽ हाथऽ में छै, जे ई दुनियाँ के चलाय रहलऽ छै । एकरे नाम विश्वास छिकै । जे विश्वास पर टिकलऽ छै । ओकरे पास ताकत छै, दुनियाँ में सही रास्ता पर चले के लेलऽ ।
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