भाय - बहीन केरऽ प्रेम | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
घरऽ केरऽ काम खतम करी के बाजार जाय ले सोची रहलऽ छेलिये । कल राखी छै न । कुछ खरीदारी करे ले छेले । हमरऽ बेटी केरऽ खास भाय के लेलऽ एकरा सुन्दर राखी लेना छेले । हमरऽ अपनऽ भाय याद आबी गेलऽ । कत्ते दिन होय गेलऽ नेहरा गेला । काम खतम करी के सोचिये रहलऽ छेलिये कि फोन बजले, मोबाइल केरऽ स्क्रीन पर देखलिये ते नया नम्बर देखी के सोचऽ में पड़ी गेलिये, न जाने केकरऽ फोन छिके । फोन उठैलिये ते हुन्ने से आवाज ऐले दीदी प्रणाम, हम्में बोली रहलऽ छिहों । हम्में पुछलिये तोहें कौन बोली रहलऽ छऽ ? फोन नैकी भौजी केरऽ छिके । हम्में सोचऽ में पड़ी गेलिये, भौजी किरंऽ फोन करलकी, भाय केरऽ फोन ते आय तक नांय ऐले । फेरू अचानक भौजी केरऽ फोन । मनऽ में कै तरह केरऽ बिचार आबे लगले । काहे कि हमरऽ भाय केरऽ दोसरकी कनियाय छेली । पहिलकी कनियाय के तलाक दै देलऽ छेले । वहिलकी भौजाय केरऽ सोच बड़ी खराब छेल्हें । वू नेहरा से सोचिये के ऐलऽ छेली कि ससुरार परिवार केरऽ केकरऽ से संबंध नांय बनाना छै । माय- बाबू जी आरो से कहियो नांय जुड़ली हमेशा मुँह बनले रहे छेल्हें । हमरा सब से दूरी बनाईये के रखलकी माय के एतना परेशान करे छेली कि माय के फरक करी के दम लेलके दिनऽ दिन दूर होते चलऽ गेली, हमरऽ बीहा में थोड़ऽ अनबन कि होऽ गेलऽ आग में घी पड़ी गेलऽ । हमरा भाय बहीन केरऽ बीचऽ में कहिवे नांय पार्ट वाला गढ़ा बनाय देलकी । भाय छेली ते रिश्ता केरऽ बीच में कड़ी केरऽ काम करे छेली । भाय के मरला के बाद सब खतम होय गेलऽ । हम्में अपनऽ भाय के राखी बांधना छोड़ी देलां । भाय केरऽ बाद भौजी होय छै, जे रिश्ता नाता के जोड़ी के रखे छै । लेकिन वू भौजाय से भगवान बचाबथ । आत्म सम्मान के रोकी लेलीये बिना बोलले किरंऽ जैबऽ । अचानक ध्यान टुटले देखे छिये वू हैलो हैलो करी रहल छै । हम्में कहलिये होंऽ कहऽ की कही रहलऽ छऽ । भौजी कहलकी कल्ह राखी केरऽ त्योहार छैन ? हमरा सब तरफ राखी में बेटी के नैहरा बुलाबे केरऽ परंपरा छै । ऐ हे से तोरा न्योता दै रहलऽ छिहों । कल्ह जरूर से जरूर अईहऽ हम्में कुछ नांय बोले पार लिये हमरऽ खामोसी समझते होलऽ बोलली, दीदी, जे होले से होले वू सब बात भूली जाहऽ पहिले केरऽ कडुवऽ बात याद करी के मनऽ में कडुवाहट ही आबे छै । हम्में अपनऽ रिश्ता नाता केरऽ नया शुरूआत करबे । हमरा अपने केरऽ इंतजार रहते । बेटी राखी के दिन नैहरा में ही अच्छा लागे छै । ई कहते होलऽ फोन काटी देलकी । हुन्कऽ ई बात से हमरा सच में बहुत खुशी लागलऽ । हमरऽ मालिक (पति) सांझ के घऽर ऐला, सब बात बतैलिहें, हुन्हीं कहलका जबे नैहरा से ऐते प्रेम आदर से बोलैलऽ छोंऽ ते जरूर जाना चाहीवऽ । कत्ते साल केरऽ बाद हम्में भाय के लेलऽ राखी खरीदलां । मन बहुत प्रसन्न होय रहलऽ छेलऽ । वहाँ जाय में झिझक भी होय रहलऽ छेलऽ, अपने के सम्भारत होलऽ वहाँ गेलिये । देखे छिये भाय भौजाय दोनों हमरऽ इन्तजार करी रहलऽ छै । जैसे हीं द्वारी पर पहुंचलिये भौजाय गला लगाय के हमरऽ स्वागत करलकी, घऽर भीतर लै गेली, खानायीन । बहुत अच्छा से खियलकी । भाय केरऽ माथा पर टीका लगाय के राखी बांधलिये, भाय गौर से राखी के देखलके आरो फफकी के कान्दे लागले । कत्ते दिनऽ के बाद तोहें राखी बाँधल्हऽ, ओकरा कान्दे देखी के हमहुं कान्दे लागलिये । भाय बहीन गला लगी के खूब कान्दलिये, बरसऽ केरऽ बाद जे मिललऽ छेलिये । भौजी दूर खड़ी धीरे- धीरे मुस्कुराय रहलऽ छेली । हम्में भौजी के पास गेलिये से गला लगलिये । हमरा हुन्हीं हमरऽ पूरा नैहरा जे वाप देलऽ छेली ।
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