‘‘ विमल जी केॅ चिन्हलोॅ की नै। दुमका में कैक दफा हिनी ऐलौ रहै।’’ मुस्कुरैतें हुवें हुनी बोललै। हुनका बोली में मधु से भी जादा मिठास हर पल हर परिस्थिति में भरलोॅ रहै छेलै। आय ऊ मिठास के बोध कुछ अधिक ही हमरा होलै आरोॅ हम्में दुनोॅ हाथ जोड़ी केॅ प्रणाम करतें हुवें कहलियै-‘‘भाभी ! गोलहटी भी तेॅ हम्में ई दोसरोॅ दफा ऐलोॅ छियै। वै दाफी तेॅ अंगना, बारी, घोॅर-दुआर सगरोॅ घुमी घुमी देखैंने छेल्होॅ।’’
१३ अप्रैल २॰॰९ केॅ हम्में हृदयाघात के शिकार होय गेलियै आरोॅ आॅपरेशन लेली एम्स, दिल्ली जाय लेॅ पड़लै। वाहीं ईलाज के दौरान मित्र अश्विनी ने भागलपुर सें सूचना देलकै कि ३ मई २॰॰९ केॅ अंगिका साहित्य रो सूर्य महाकवि सुमन सूरो हमरा सिनी के बीच नै रहलै।’’दुख आरो व्यथा के अथाह सागर में डूबी गेलोॅ छेलियै हम्में। ढेर सीनी याद जे हुनका साथें बितैने छेलियै, माथा में घूमेॅ लागलै। आँखी में लोर आरो माथा में अतीत के ऊ सब क्षण एक-एक करी केॅ आबेॅ लागलै।
1984 में समय साहित्य सम्मेलन के दोसरोॅ महाधिवेशन के अवसर पर हुनी पुनसिया ऐलोॅ छेलै। यै अधिवेशन में डाॅ0 तेजनारायण कुशवाहा आरो श्री भुवनेश्वर सिंह भुवन केॅ कर्ण पुरस्कार आरो हुनका ‘सुमित्रानन्दन पन्त कुल कलाघर’ सम्मान से सम्मानित करला पर हुनी कहलेॅ छेलै कि ‘‘अंगिका भाषा लेली पुनसिया सम्मेलन सें शुरू करलोॅ गेलोॅ ई प्रयास सें अंगिका साहित्य लेखन केॅ ताकत मिलतै। प्रोत्साहन, सम्मान, पुरस्कार आरो भव्य कवि सम्मेलन के जे सिलसिला यहाँ से शुरू होलोॅ छै ऐकरा सें अंगिका भाषा के विकास में तेजी ऐतै।’’
हमरा याद छै, जबेॅ सम्मेलन के महामंत्री के हैसियत सें हम्में हुनका यात्रा व्यय दियेॅ लागलियै तेॅ हुनी हाथ जोड़ी के कहलेॅ छेलै-‘‘ विमल जी। आय सें हम्में तोरोॅ होय गेलिहौं। अपना आदमी केॅ यात्रा-व्यय नै देलोॅ जाय छै। हर अभियान में तोंय हमरा अपना साथें पैभेॅ।’’
तब सें लैके आय तांय जतना कार्यक्रम करलियै हुनी विषम से विषम परिस्थिति में भी आपनोॅ उपस्थिति औतन्है अधिक अपनापन के साथ दर्ज करलकै। 1986 में आयोजित सम्मेलन के तेसरोॅ महाधिवेशन में जबेॅ अंगिका साहित्य सेवा लेली हुनका ‘कर्ण पुरस्कार’ देलोॅ गेलै तेॅ मंच सें बोलतें हुअें हुनकोॅ आँख लोराय गेलोॅ छेलै-‘‘आय ई पुरस्कार पाबी केॅ हमरोॅ मोॅन हर्ष आरो विषाद दुनोॅ सें भरी ऐलौ छै कि आय जौं अंगिका भाषा में अकादमी के स्थापना होलोॅ रहितयै तेॅ वें ई पुरस्कार केॅ प्रेरणा आरो चुनौती दुनोॅ रूपोॅ में स्वीकार करतियै। सम्मेलन द्वारा चुनी-चुनी केॅ अंगिकासेवी साहित्यकार केॅ पुरस्कृत करै के ई प्रयास के जतना प्रशंसा करलोॅ जाय, कम छै।’’
हुनी अंगिका साहित्य अकादमी के स्थापना लेली बहुतेॅ प्रयासरत छेलै। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने दुमका हिजला मेला में आयोजित ‘भाषा संगम’ के अधिवेशन में हिनका आश्वासन भी देलेॅ छेलै, मतूर अंगवासी के सपना पूरा ने हुअेॅ पारलै। यही मंच से हमरा हुनी ‘बलिनारायण पुरस्कार’ भी देनें छेलै। सादा जीवन, उच्च विचार के हुनी छहाछत मुरती छेलै। शांत, सरल, निश्छल। दुनिया के छल-प्रपंच से दूर। अंगिका के विकास हुनकोॅ सपना छेलै। प्रेम आरो अपनापन बांटना कोय हुनका सें सीखेॅ। ‘भाषा संगम’ हेनोॅ महत्वपूर्ण संस्था के महामंत्री, लेकिन हुनका कोय अभिमान नै। साधारण धोती-कुरता। हाथोॅ में सम्मेलन के फाईल या कोनोॅ हुनके लिखलोॅ किताब आमंत्रित कवि सीनी केॅ हस्ताक्षर करी केॅ बांटतें महाकवि सुमन सूरो के पहचानना मुश्किल। एक नजर में ई कहना कठिन कि ‘पनसोखा’, ‘रूप-रूप-प्रतिरूप’ आरो ‘उध्र्वरेता’ जैन्होॅ उत्कृष्ठ काव्य के रचनाकार हिनिये छेकै।
1987 के नवम्बर महिना में हम्में आपनोॅ प्रबन्ध काव्य ‘‘कागा की सन्देश उचारै’’ के पाण्डुलिपी लैके भूमिका लिखबाय वास्तें हिनकोॅ दुमका स्थित आवास पर गेलोॅ छेलियै। साथ में अमरेन्द्र भी छेलै। सात बजे संध्या सें 10 बजे रात ताँय हमरोॅ प्रबन्ध पूर्ण मनोयोग आरो धैर्य के साथ हुनी सुनलकै। अभिभूत होतें हुअें हुनी कहनें छेलै-‘‘अंगिका में प्रेम आरो श्रृंगार पर एक टा श्रेष्ठ प्रबन्ध के जरूरत छेलै जे तोहें पूर्ण करि देलोह। ई तोरोॅ कालजयी रचना छेकोंह।’’ सूरो जी में सच कहै केॅ क्षमता छेलै। भाषा पर हुनकोॅ पकड़ अतनै मजबूत छेलै कि कम शब्दोॅ में ढेर सीनी बात अभिव्यक्त करी दै छेलै। भीतर-बाहर कहीं भी हुनका में बड़बारगी नै छेलै। बड़बोलापन सें नफरत छेलै हुनका। हमरा प्रबन्ध पर भूमिका या समीक्षा लिखै के सम्बन्ध में हुनी कहलकै-‘‘हमरा सें बेसी बढ़िया है काम डाॅ0 अमरेन्द्र से होतै। ना-नुकुर नै। अंगिका लेली है काम हुनका करना छै।’’
आरो हुनी प्रबन्ध के फलैप पर छपै लेली छोटोॅ, अति संक्षिप्त आपनोॅ मन्तब्य, बेवाक प्रतिक्रिया लिखी के दै देलकै। आय कोय भी ऊ आशंसा पढ़ी केॅ कहतै कि हुनी जे सोॅ डेढ़ सोॅ शब्दोॅ में लिखनें छै ऊ कोय शायद सोॅ पृष्ठ में भी नै लिखेॅ पारतै। कहन के ई सामथ्र्य हुनका अनवरत अध्ययन, मनन आरो चिन्तन से प्राप्त होलोॅ छेलै।
‘‘कागा की सन्देश उचारै’’ 1988 में छपलै, जेकरोॅ लोकार्पण दुमका मंच सें हुनकै हाथोॅ से होलै। यै प्रबन्ध के हिन्दी अनुवाद ‘साँवरी’ नाम सें करी केॅ 2007 में जबेॅ धनंजय मिश्र आरो हम्में हुनका प्रति दै लेली हुनकोॅ गाँव गेलियै तेॅ आनन्द विभोर होय गेलोॅ रहै हुनी, देर ताँय दिल्ली से छपलोॅ किताब के फलैप पर आपनोॅ वहेॅ प्रतिक्रिया पढ़ी केॅ।
1989 में आयोजित सम्मेलन के पंचम महाधिवेशन, जेकरा में दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, लखनऊ, पंजाब सें विद्वान कवि आरो साहित्यकार ऐलौ छेलै, वै में हुनी सर्वभाषा कवि सम्मेलन मंच सें अंगिका में वहेॅ आपनोॅ पुरानोॅ कविता पढ़तें हुअें उदघोष करनें छेलै -‘‘बोलबै आपनोॅ बोली, जों कोय मारतै गोली, बोलबै आपनेॅ बोली।’’
नाटोॅ कद, लाल गोरोॅ वरण, गोल-गलंठ मुँहोॅ पर बड़ोॅ-बड़ोॅ आँखी के बीचोॅ में छूरिया नाक आरो पान चबैतें, यै वामन के तेज सें मंच चमत्कृत आरो स्तब्ध होय गेलोॅ रहै। मंच पर उपस्थित कवि के अनुरोध पर जबेॅ हुनी आपनोॅ दू कविता-‘कालिदास के मेघदूत कब तक लौटे के बात छै’’ आरो मन में एक्के बात दुल्हनियां कारी छै की गोरी छै’’ सुनैलकै तेॅ सच कहै छियौं, मंच पर आसीन सब कवि अंगिका कविता के सामथ्र्य पर विस्मय विमुग्ध छेलै।
27 वर्ष ताँय महाकवि सुमन सूरो के आशीर्वाद अभिभावक बतौर बड़ोॅ भाय हमरा उपर रहलै। आय भी हमरा पास हुनकोॅ लिखलोॅ सौ से अधिक चिट्ठी सुरक्षित छै, साथ ही कत्ते नी हुनकोॅ साथ जीलोॅ क्षण। एक समय छेलै, दुमका, पुनसिया आरो हमरोॅ गाँव एक होय गेलोॅ रहै। सम्मेलन के दशमोॅ महाधिवेशन में हुनकोॅ ऐबोॅ हम्में जीवन भर नै भूले पारौं। रात भर गरमी आरो मच्छड़ सें परेशान आपनोॅ आधोॅ धोती ओढ़ी केॅ घुड़मुड़ियाय केॅ हुनकोॅ सुतबोॅ। हम्में अंतरिम व्यवस्था के बात जबेॅ कहलियै तेॅ हुनी कहलकै-‘‘सभ्भे लेली जे व्यवस्था छै, हमरोॅ वही में रहना चाहियों। यहेॅ रं चलै छै। तोहें चिन्ता नै करोॅ। घन्टा दू घंटा के बात छै।’’ हुनकोॅ ई समरस भाव आरो सभ्भे के साथ मिली केॅ एक्के रंग रहै-जीयै के कला हुनका व्यक्तित्व आरो कृतित्व दुनोॅ में विद्यमान छेलै। आय हुनकोॅ महाप्रयाण सें अंग आरो अंगिका ने निसंदेह एक महान साहित्यकार आरो अभिभावक खोय देनें छै। ई विशाल महिमामय व्यक्तित्व आरो काव्य प्रतिभा के कमी रो पूर्ति भविष्य में संभव नै छै।
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