पत्थर केरऽ जीवन कथा | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक छोटऽ सन कहानी हमरऽ बड़ी प्रिय छै कि महल केरऽ निकट कुछ बच्चा सनी खेली रहलऽ छेले, खेल- खेल में पथल केरऽ ढेरी से एकटा पथल उठाय के राजमहल केरऽ झरोड़ा के तरफ फेंकी देलके, पथल जबे उठै लागलऽ, ते वें नीचे पड़लऽ होलऽ पथलऽ से कहलकऽ दोस्त, हम्में आकाश केरऽ यात्र पर जाय रहलऽ छी, नीचे पड़लऽ पथल चुपचाप डाह (ईर्ष्या) में सुनते रहलऽ, करतलऽ भी की ? निशि्ंचत जाय रहलऽ छेलऽ वू पथल बहुत ऊपर जाय ले चाहे, छेलऽ लेकिन ओकरा पास पांख नांय छेले । आरो वू कहियो उड़ैले नांय पार तलऽ । लेकिन आज ओकरऽ ढेरी केरऽ एक पथल बिना पांख केरऽ उपर जाय रहलऽ छेलऽ । फेंकलऽ गेलऽ वू पथल, लेकिन वे कहलकऽ कि हम्में आकाश यात्र पर जाय रहलऽ छी । ऊपर गेलऽ आरो महल केरऽ झरोखा से टकरैलऽ आरो काँच चकनाचूर होय गेलऽ पथल कहलकऽ हम्में केते बेर मना करलऽ होवे कि हमर रास्ता में कोय नांय आवें, नांय ते हम्में चकनाचूर करी देबौ । अबे देखें चकनाचूर होय के पड़लऽ रहें ? काँच टुकरा होय के कान्दी रहलऽ छेले । पथल भीतर गेलऽ आरो कालीन पर गिरी पड़लऽ गिरते ही कहलकऽ बहुत थकी गलां, एक शत्रु के भी नाश करलां । बड़ी दूर से एलऽ छी थोड़ऽ आराम करी ले छी । पथल कहलकऽ केतना अच्छा लाये छै रे महल लागे छै हमरऽ आबै केरऽ खबर पहिले ही मिली गेलऽ छेले, मकान मालिक कत्ते भलऽ आदमी छै, कालीन बिछाय के रखलऽ छेले, स्वागत केरऽ पूरा इन्तजाम करी के राखलऽ छेले, कत्ते अच्छा लोग छै, अतिथि प्रेमी ? पहिले से ही व्यवस्था करी के रखलऽ छेले, शायद पता चली गेलऽ छेले कि हम्में आबे वाला छिये । आखिर हम्में कोय छोटऽ मोटऽ पथल ते नांय छियै, हम्में विशिष्ट छिये, साधारण पथ जमीन पर पड़लऽ रहे छै । जे महापुरूष होय छै पथलऽ में, वेहे आकाश केरऽ यात्र करे छै । हमरऽ स्वागत में इन्तजाम करलऽ छै ते ठीके छै । तभिये महल केरऽ नौकर काँच टुटे केरऽ आवाज सुनलके, दौड़लऽ होलऽ वहाँ पहुँचलऽ । पथल के हाथऽ में उठाय लेलकऽ, पथल ने अपन मनऽ में कहे लागलऽ कत्ते प्यारऽ लोग छै, धन्यवाद- धन्यवाद ओकरऽ हृदय में उठले । घऽर केरऽ मालिक कत्ते अद्भूत छै अपनऽ विशेष प्रतिनिधि के भेजलऽ छै । ताकि वू हमरऽ स्वागत करे ताकि अपनऽ हाथऽ में उठाबे आरो प्रेम करे । नौकर ने वू पथल के वापस खिड़की से नीचे फेंकी देलकऽ पथल लौटते वक्त कहलकऽ अबे चलों अपनऽ घऽर, दोस्ती सनी केरऽ बहुत याद आबी रहलऽ छै । वू वापस पथल केरऽ ढेरी में गिरलऽ नीचे आरो पथल सनी टकटकी लगाय के ओकरा देखी रहलऽ छेले । नीचे गिरते ही कहलकऽ दोस्त तोरा सनी केरऽ बहुत याद आबे छेलऽ माने छिये कि हम्में जमीन पर खुला में पड़लऽ रहे छी, आरो वहाँ हमरा महल केरऽ स्वागत मिललऽ लेकिन हम्में ठोकर मारी देलिये । करी देलिये त्याग वू महल केर अपनऽ घऽर अपनऽ घऽर छै । पराया घऽर पराया घऽर छै । ई बात आरेा छै तोरा सब के साथ जीना आरो रहना, महल केरऽ मालिक ते हाथऽ में उठाय के प्यार करे लागला । लेकिन हम्में हुन्कऽ मोहऽ में नांय पड़लां । हम्में कहलिहें हम्में ते घऽर जेबऽ बड़ी मुश्किल से आबे ले देलका । हुन्हीं ते हाथ से पकड़लऽ होलऽ छेला, लेकिन हम्में चलऽ ऐलिये । बड़ीयाद आवे छेलऽ तोरासनी केरऽ सब पथल ओकरऽ बात गौर से सुनी रहलऽ छेलऽ । आरो वें कहलकऽ एन्हऽ कभी नांय होलऽ छै हमरा वंशऽ में, इति हास में ई घटना मुश्किल से कभी- कभी घटे छै कि हमरा में से कोय आकाश केरऽ यात्र करे छै ।
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
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