स्वास्थ्य केरऽ कुन्जी | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
हाथ- पैर में तकलीफ होय के कारण डॉक्टर ने हमरा बिहाने बिहाने टहले केरऽ सलाह देलऽ छै, लेकिन काम धंधा करेऽ व्यस्तता आरो बिहाने केरऽ ठंढा केरऽ कारण घरऽ से निकलना मुश्किल लागे छेले । डॉक्टर केरऽ बात याद आते रहे छेले कि जों तोहें नांय चलभऽ बुलभऽ ते दवाय चले गाजथोंन । हुन्कऽ ऐहे बात डराय देलऽ छेले । तबे हम्में अपने आप बिहाने बिहाने टहले के लेलऽ तैयारी करलिये, तै करलिये कि जल्दी उठबे, समय केरऽ ध्यान रखबै, घरऽ केरऽ सब काम, जेना कि बच्चा के इसकूल (स्कूल) भेजना, टिफिन तैयार करना, पति के आफिस भेजना ई सब ते करबे करे छिये । दोसरऽ दिन हम्में बिहाने बिहाने उठी गेलिये आरो अकेले ही एक छड़ी पकड़ी के घुमे ले निकली गेलिये । टहले में बहुत अच्छा लगले । साफ स्वच्छ हवा केरऽ कारण देहऽ में फुर्ती केरऽ एहसास होले । आरो लोगऽ से मिलना जुलना भी होय गेले हिन्ने हुन्ने केरऽ बातऽ से मनोरंजन भी हुवे लागले, हाथ, पैर केरऽ दरद (दर्द) भी रोज दिन केरऽ घुमे- फिरे से कम हुवे लागले । हम्में एकरा मंत्र बनाय लेलिये कि रोज आधा घंटा घुमे ले जाबे । एकरा से कै फैदा भी छै । बिहाने घुमे से दिन भर ताजगी बनलऽ रहे छै । आरो अबे रोज अपने आप नीन्द आसानी से खुली जाय छै । हम्में ई परिवर्तन से जानलिये कि सब कुछ हमरऽ हाथऽ में ही छै, बस बहाना बनाबे ले छोड़ी के, अच्छा आदत के लेलऽ तैयार रहना चाहीवऽ । स्वस्थ शरीर खुशी केरऽ भंडार छिके ।
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