अपनऽ भीतर भक्ति के बनाय रक्खऽ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
पहले पारिवारिक जीवन में कोय एक बोड़ऽ उम्र केरऽ आदमी घरऽ केरऽ मुखिया होय छेले । वू जे बोले छेले आदेश बनी जाय छेले, आरो ओकरा माने ले पड़े छेले । समाज आरो राष्ट्र केरऽ जीवन में भी ऐहे छेले कि नेतृत्व आरो निर्णय कुछ ही लोगऽ केरऽ हाथऽ में होय छेले । धीरे- धीरे समय बदलले आरो परिवारऽ में शक्ति निर्णय केरऽ बहुत केन्द्र बनी गेले । परिवारऽ में जेत्ते सदस्य छै सब केरऽ अपनऽ अपनऽ राय महत्वपूर्ण होय गेले । आरो परिणाम में कलह (झगड़ा) हाथ लगले । ऐहे लेलऽ कलह (झगड़ा) पैदा होय रहलऽ होवे ते एक काम करते रहिहऽ आरो वू छै विकल्प केरऽ प्रयोग । जों तोरा कोय निर्णय लेना होवे ते ई नांय मानऽ कि तोहें जे कही देल्हऽ, वेहे होय जाय । विकल्प खुले रखिहऽ, ई समझिहऽ कि एन्हऽ होना चाहिवऽ । लेकिन, होय सके छै कि ओकरा से सभे सहमत नांय हुवे । जबे एन्हऽ माने छऽ कि हम्में विकल्प पर टिकलऽ रहबऽते हमरा अहंकार बाधा पहुँचाबै छै । सामने वाला अपनऽ अहंकार केरऽ कारण तोरऽ राय मानी रहलऽ होथों । अहंकार टकराबे से ही कलह (झगड़ा) शुरू होय जाय छै । ऐहे से पारिवारिक जीवन में भक्ति बनैलऽ रखऽ । हम्में हमेशा ऐहे कहे छिहों कि व्यवसायिक जीवन में भी भीतर केरऽ भक्ति के खतम नांय होवे ले दे । तोहें केतनो बोड़ऽ अधिकारी होय जा उचऽ पदऽ पर होवऽ । अपनऽ भीतर भक्ति बनैलऽ रखऽ जे भक्ति करे छै वेहे हमेशा अपनऽ ऊपर एक शक्ति के मानै छै । भक्ति केरऽ शुरूआत होय छै । तोहें छें, हम्में कहीं भी नांय ऐहे छिकै भक्ति केरऽ अर्थ । एकरा से समापन होय छै । नांय तोहें छै, नांय हम्में छी । जों कोय तोरऽ बात नांय माने या तोरऽ मन पसंद काम नांय हुवे, तबे तोहें मानी लै छऽ कि संभवतः भगवान के ऐ हे मंजूर छेन । ऐहे आत्म स्वीकृति तोरऽ अहंकार के गलाय के जीवन के कलह मुक्त करी दै छै ।
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta
Shastri
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