सुनो | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
सुनो ----------- तोहें कुच्छु सुनल्हऽ की ? नांय ----------- लेकिन हम्में ते साफ सुनलिये अभी अभी समुन्दर ने कहलके मोती के किनारां पर नांय गहराई में खोजऽ । नदी ने कहलके, प्रेम चाहे छऽ ते हमरा सरिखे निर्मल होय जा । पहाड़ ने कहलके, शिखर जीतै केरऽ सपना मैदानऽ में खड़ा होय के पूरा नांय होय सके छै । आगु बढ़ऽ आरो छलांग लगाबऽ पंछी ने कहलके हमरऽ उड़ान कैद नांय करऽ काहे कि जीवन केरऽ गीत आजाद पांखऽ फड़फड़ाहट में छिपलऽ होय छै । चौपाया जानवर ने कहलके तोरऽ हमरऽ बीच अन्तर बता इंसानियत केरऽ छै । ओकरा बनैलऽ रखऽ । गाछ ने कहलके टांगा कुदाल माथा पर छाँह नांय करी सकते । एक बीचा रोपऽ एक गाछ अभाबऽ आरेा भगवान ने कहलका, अपनऽ चेहरा से उदासी केरऽ रंग पोछी दहऽ । काहे कि जिन्दगी के पास आरो भी बहुत तरह केरऽ रंग छै । कहलके ते माटी, रौद (धूप) हवा, वर्षा आरो भी रास्ता बहुत कुछ छै । लेकिन कहे से पहले हम्में बस ऐतने कहे ले चाहे छी कि सुनऽ ।
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