बाँझऽ के बेटा | अंगिका कहानी | डॉ. उग्रनाथ मिश्र
Bhanjho Ke Beta| Angika Kahani | Angika Story | Dr. Ugranath Mishra
गौरी बीस बरस के युवती,जैसने सुन्दर छलीत, वैसने शील-स्वभाव के सुलक्षणा । एक बेरी इसकूल के इंसपेक्सन लेली जिला के शिक्षा अधिकारी श्री विश्वनाथ बाबू के खाय लेली अपनऽ घऽर अनलकात । परोसा करै खनी विश्वनाथ बाबू गौरी के सुन्दरता देखी क॑ मुग्ध भ॑ गेलात ।
खाना-पीना के बाद हुनी रवि बाबू क॑ कहलकात,“हेडमास्टर साहेब, हम्मं॑ अपन॑ के पास एगो प्रस्ताव रखै छियै ।”
रवि बाबू कहलकात,“ जी सर, कहलऽ जाय ।”
विश्वनाथ बाबू बोललकात,“हमरऽ बेटा शिवशंकर पटना कॉलेज मं॑ अँगरेजी के प्रोफेसर छ॑, आपन॑ मंजूरी दियै त॑ हम्मं॑ अपनऽ बेटा लेली आपन॑ के बेटी के हाथ माँगी रहलऽ छियै ।”
रवि बाबू मुस्कुराय क॑ बोललकात, “ सर, एक मिनट के समय देलऽ जाय ।”
ई कही क॑ रवि बाबू अपनऽ कनियानि सं॑ सलाह करै लेली अंदर हवेली गेलकात । सब्भे बात जानला के बाद रवि बाबू के कनियानि बोललकीत, “बड़ी भागमन्ती छै हमरऽ बेटी ! हमरा सिनी कहाँ-कहाँ भटकतियंऽ एकरा लेली । भगवती अनायास हीरा भेजी देलकीत । हुनकऽ दया अपरम्पार । ”
रवि बाबू तुरंत निकललात आरू विश्वनाथ बाबू कं॑ कहलकात, “ आपन॑ हमरऽ रं गरीब के भार उतारी देलियै । आपन॑ के हम्मं॑ ऋणी भ॑ गेलियै । हमरा लेली आपन॑ भगवान छिकियै ।” ई कहै खनी रवि बाबू के आँख लोर सं॑ डबडबाय गेलै ।
विश्वनाथ बाबू बोललकात, “ हेडमास्टर साहेब, ई रं भावुक नञि होइयै । हम्मं॑ आपन॑ के कोनो उपकार नञि करल॑ छियै । बीहा त॑ भगवान रचै छऽत । हम्मं॑-आपन॑ त॑ खाली माध्यम छिकियै ।” ई कही क॑ विश्वनाथ बाबू खुशी-खुशी विदा भ॑ गेलात।
वर-कन्या क॑ मिलैलऽ गेलऽ, जनम कुंडली के मिलान होलऽ, कन्या निरीक्षण होलऽ, हथपकड़ी आरनि रस्म रेवाज सब पूरा करैलऽ गेलऽ । शुभ मुहूर्त मं॑ गौरी-शिवशंकर के बीहा धूमधाम सं॑ संपन्न होलऽ । रवि बाबू अपनऽ औकात भरी दान-दहेज देलकात । विश्वनाथ बाबू बेटा-पुतोहू क॑ देखी क॑ जुड़ाए गेलात । रवि बाबू बेटी के अच्छा घऽर-बऽर देखी क॑ गदगद् होलात । गौरी, शिवशंकर रं पति आरू शिवशंकर, गौरी रं पत्नी पाबी क॑ अपनऽ–अपनऽ भाग्य सराहलकात । पति-पत्नी के आपसी प्रेम दिन॑-दिन बढ़लऽ गेलऽ ।
पाँच बरस त॑ जीवन प्रेमपूर्वक खुशी-खुशी बितलऽ । विश्वनाथ बाबू रिटायर करी गेलात । दोनों बूढ़ा-बूढी बेटे संग पटना मं॑ रह॑ लगलात । बेटा-पुतोहू खूब सेवा-टहल करलऽ कर॑, लेकिन मौत के कोनो ठेकाना नञि । एक दिन बूढ़ा-बूढ़ी आठ बजे भोरे ताँय नञि उठलकात त॑ बेटा-पुतोहू जगाब॑ लेली गेलऽ, लेकिन बूढ़ा-बूढ़ी ई संसार छोड़ी चुकलऽ रहत । माय्ये-बाप मं॑ भगवान के दरसन करैवाला शिवशंकर जी क॑ दुखी मऽन सं॑ अंतिम संस्कार कर॑ पड़लऽ ।
शिवशंकर जी क॑ पिछला एक महीना सं॑ पेट मं॑ दरद होय रहलऽ छेलै । हुनि गौरी क॑ नञि बतलएलऽ करत, पेनकिलर खाय करी क॑ दरद सहलऽ करत । एक दिन जखनी दरद नञ सह॑ पारलात तब॑ गौरी हुनका डाक्टर कन ल॑ गेलकीत । जाँच सब सं॑ मालूम होलऽ जे लीवर कैंसर के आखरी स्टेज छेकै । ईलाज लेली एंड़ी-चोटी के पसीना एक करी देलकीत । दिल्ली – बम्बै के कत्त॑ नी चक्कर लागलऽ । ईलाज म॑ घऽर के जमा-पूँजी चुकी गेलऽ । गौरी अपनऽ गहनो-गुरिया बेची देलकीत, लेकिन होनी क॑ के टार॑ ल॑ पार॑ । दिल्ली केरऽ एगो अस्पताल मं॑ ऑपरेशन टेबुल प॑ शिवशंकर जी दम तोड़ी देलकात । गौरी छाती पीटी लेलकीत, कानतं॑-कानतं॑ लोरो सूखी गेलऽ । निःसंतान गौरी असहाय भ॑ गेलीत । गौरी के रोजियो-रोटी के लाला पड़ी गेलऽ ।
गौरी बी.एस.सी. पास छेलीत, ई ल॑ क॑ हुनका एगो प्राईवेट हाय इसकूल मं॑ साइंस टीचर के नौकरी मिली गेलऽ । लेकिन दरमाहा कम होला के कारन सं॑ गौरी प्राईवेट ट्यूसनऽ कर॑ लगलीत । ओकरा हाँ जे ट्यूसन पढ़ै ल॑ आबै छेलै ओकरा मं॑ दसमा क्लास के एगो लड़का श्रवण कुमार भी रहै जे पढ़ै मं॑ रेजी चक्कू रं तेज छेलऽ लेकिन माय-बाप के मरी गेला सं॑ टुअर भ॑ गेलऽ छेलै आरू पढ़ाय बीचे मं॑ छोड़ी देल॑ रह॑ । गौरी जब॑ भी ओकरा बारे मं॑ सोचै ओकरा हिरदय मं॑ श्रवण के प्रति अगाध ममत्व जागी जाय रहै । बहुत कम समय मं॑ ही गौरी क॑ पता चली गेलऽ छेलै कि समय आगू केरो जोर नै चलै छै । ओकरऽ अपनऽ सब काल के गाल मं॑ समाय गेलऽ छेलै । समय केरऽ भँवर बीच जीवन केरऽ नैय्या क॑ खेवै लेली कोनो पतवार चाहियऽ छेलै, जेकरा सं॑ सफर आरामऽ सं॑ कटी जाय । फेरू वू ई भी जानै छेली कि एगो बेसहारा जब॑ दोसरऽ बेसहारा के सहारा बनी जाय छै त॑ खुद क॑ भी सहार मिली जाय छै । श्रवण के बारे म॑ वास्तविकता जानला के बाद गौरी के मनऽ मं॑ ई विचार बार-बार आब॑ लगलै कि कैन्हं॑ नै श्रवण क॑ आपनऽ यहाँ रखी क॑ ओकरा खूब अच्छा सं॑ पढ़ैलऽ जाय, जेकरा सं॑ ओकरऽ जीवन मं॑ ओकरा माय-बाप ऐन्हऽ कोनो एकदम अपनऽ केरऽ कोनो कमी नै महसूस हुअ॑ पार॑ । बार-बार सोचै कि की ई संभव छै । लोगें-समाजें की कहतै ? कि श्रवण ई लेली राजी होतै कि एक बेटा रूपऽ मं॑ हमरा यहाँ रह॑ लगतै ? केना की करलऽ जाय ? ऐन्हऽ तरह-तरह के सवाल बार-बार मगजऽ मं॑ खदबदैतं॑ रहै छेलै ।
फेरू बिना कोनो जादा सोच-विचार के भगवान मं॑ आस्था रखतं॑ श्रवण क॑ आपनऽ बेटा जेकां ही मान॑ लगलै आरू ओकरऽ सुख-दुःख के ख्याल राख॑ लगलै । फेरू सं॑ श्रवण केरऽ नाँव इसकूली मं॑ लिखाय देलकै आरू ओकरऽ फीस आरनि खुद वहन कर॑ लागलै । गौरी के हमेसा ही ई चेस्टा रहै कि श्रवण केरऽ पढ़ाय मं॑ कोनो तरह के कमी नै रह॑ । श्रवण भी पढाय के साथ-साथ घऽर-बाहर के काम मं॑ गौरी के हाथ बटाँब॑ लागलै । कुछ ही दिना म॑ श्रवण अब॑ गौरी के घऽर केरऽ आपनऽ सदस्य बनी चुकलऽ छेलै ।
गौरी क॑ लागलऽ जेना जिनगी केरऽ मेला मं॑ पहलकरऽ जनम के हेरैलऽ बेटा ई जनम मं॑ मिली गेलऽ रह॑ । देखतं॑-देखतं॑ मैट्रिक के परीक्षा होय गेलऽ रहै आरू अब॑ रिजल्ट भी आबी गेलऽ छेलै । श्रवण फर्स्ट डिवीजन ल॑ क॑ मैट्रिक पास करलकऽ । पूरा नतीजा निकलला प॑ मालूम होलऽ जे वू जिला भरी मं॑ फर्स्ट ऐलऽ छै । गौरी खुशी सं॑ उछली गेलीत आरू सत्यनारायण के पूजा कराय क॑ मोहल्ला भर मं॑ प्रसाद बाँटलकीत । श्रवण क॑ आगू पढ़ाबै लेली गौरी क॑ काफी दिक्कत झेलै ल॑ पड़लै । लेकिन हार नै मानलकै । एक समय ऐन्हऽ भी ऐलै जब॑ श्रवण डॉक्टर बनी गेलऽ छेलै । गौरी के आपनऽ जीवन केरऽ एगो बहुत बड़ऽ उद्देश्य पूरा होय गेलऽ रहै । गौरीं श्रवण के एगो सुन्दर आरू सुशील लड़की सावित्री सथं॑ बीहा कराय क॑ आपनऽ लालसा पूरा करलकीत आरू माय व सास के रूप मं॑ अपनऽ सब आशीष श्रवण आरू सावित्री प॑ उढ़ेली देलकीत ।
डॉ. श्रवण क॑ सरकारी अस्पताल मं॑ ऑर्थोपेडिक सर्जन के नौकरी मिली गेलऽ । हुनी प्राईवेट प्रैक्टिस सेहो शुरू करलकात । पाँच-छौ साल के भीतर अपनऽ मकान-गाड़ी भ॑ गेलऽ । गौरी के खुशी के ठेकाना नञि रहलऽ जब॑ सावित्री जौआँ संतान क॑ जनम देलकीत- एगो गुलाब रं बेटा आरू एगो जूही रं बेटी । पोत-पोती केरऽ दुलार-मलार मं॑ गौरी मगन रहय लगलीत ।
समय भल्लऽ तरह सं॑ कटी रहलऽ छेलै । एक दिना सास क॑ टहलाबय लेली सावित्री नगीचे के पार्क मं॑ ल॑ गेलीत । तनी देर बाद गौरी बोललकीत, “हे कनियानि, आब॑ चलऽ, हमरऽ पोता-पोती कानतं॑ होतऽ, ओकरा सिनी क॑ भूख लागी गेलऽ होतै ।” सास-पुतोहू पार्क सं॑ मेन रोड प॑ आबी गेलीत । हठात् एगो बाइक पीछू सं॑ गौरी क॑ धक्का मारी देलकऽ । गौरी एत्त॑ जोर सं॑ गिरलकीत जे रीढ़ के हड्डी टुटी गेलऽ । सावित्री तुरंत पति क॑ फोन करलकीत । सब काम छोड़ी क॑ डॉ. श्रवण गाड़ी ल॑ क॑ पहुँची गेलात आरू अस्पताल ल॑ जाय क॑ पलास्टर आरिन करी क॑ उचित उपचार अपने हाथं॑ करलकात । छौ महीना तलक गौरी दरद सं॑ कराहतं॑ रहलकीत ।
श्रवण-सावित्री जी जीनऽ सं॑ माय के सेवा मं॑ लागलऽ रहत । माय बोललऽ करत, “बाप रे बाप, माय गे माय, हे भगवान, आब॑ दरद सहलऽ नञि जाय छै, आब॑ उठाय ल॑ ।” श्रवण-सावित्री बोल-भरोस देलऽ करत, “हे माय, एहनऽ बात कैहन॑ बोलै छत, हिनी जल्दिये ठीक भ॑ जेतीत । ” माय कहलऽ करतीत, “ नञि रे सरबन, नञि हे कनियानि, तोंय दोनो प्रानी हमरा सेवा लेली दिन-रात एक करी क॑ अपनऽ जिनगी बरबाद नञि करं॑ ....कनियानि के सोहाग अचल रह॑.......पोत-पोती के जिनगी सुक्खऽ सं॑ भरलऽ रह॑....।” ई रं आसिरबाद के झड़ी गौरी लगैलऽ करत । श्रवण-सावित्री बोललऽ करत, “हे माय, हमरा सिनी सातो जनम मं॑ हनकऽ ऋण नञि चुकाब॑ पारबऽ ।”
गौरी बोन-कैंसर के शिकार भ॑ गेलीत आरू कुछुये महीना मं॑ सुरधाम चल्लऽ गेलीत । श्रवण-सावित्री के अपार दुक्खऽ के वर्णन नञि हुअ॑ पार॑ । लेकिन सामाजिक नियम निभावय ल॑ लाग॑ । डॉ. श्रवण माय क॑ मुखाग्नि द॑ क॑ अंतिम संस्कार करलकात । माय के स्मृति चिर स्थाई राखै लेली श्रवणें गौरी के एगो संगमर्रमर के प्रतिमा बनबाय करी क॑ पूजा –घऽर मं॑ स्थापित करैलकात । सब दिन पूरा परिवार नहाय-धोय क॑ फूल-अक्षत-चंदन-अगरबत्ती सं॑ पूजा करी क॑ हाथ जोड़ी क॑ प्रार्थना करलऽ करत;
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके,
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते ॥
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