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Wednesday, August 5, 2020

शुकरी | Angika Kahani | अंगिका कहानी | अनिरुद्ध प्रसाद विमल Shukari | Angika Story | Aniruddh Prasad Vimal

शुकरी | अंगिका कहानी | अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Shukari |  Angika Kahani | Aniruddh Prasad Vimal


विशना तनलोॅ लाठी नाँखी रोजनकै रं चौक के तिकोना वाला कलाली में प्रवेश करै छै आरोॅ घंटा, आधोॅ घंटा बाद धनुषे नाँखी झुकलोॅ होलोॅ, फागुन के अल्हड़ हवा में मदमस्त झुमतें लŸाड़ोॅ रं बदहवास, झुमतें, वड़वड़ैतें, कभी गुनगुनैतें, कभी गाली बकनें चललोॅ आबै छै। 

अक्सरहां ई समय साँझ के होय छै, जबेॅ सुरूज छिपी जाय छै। एन्होॅ यही लेली होय छै, कि विशना सुरूजोॅ सें डरै छै। रोशनी में पीवी केॅ बहकना सरेआम हँसी कराना छेकै। ऊ अपना यै उसूल पर बरसौं सें कायम छै। 

वैसें गाँव में विशना के कमी नै छै। कŸोॅ नी सालोॅ सें छौनी-छप्पर के अभाव में गिरी- गिरी केॅ ढही रहलोॅ ओकरोॅ बंगला पर यारोॅ के इन्तजार करतें महफिल, ओकरा देखतैं बाग-बाग होय जाय छै।...... आरोॅ फेरू चलै छै-महुआ के दौर। कांच के गिलासोॅ के खनखनाहट। पीतें-पीतें विशना दारूवाला केॅ गाली बकै छै-‘‘साला फुसना मादर......पानी मिलाय केॅ देनें छौ। तीन-चार बोतल पीबी गेलियै। झुरझुरी तक नै ऐलोॅ छै। बेईमान, पानी सें कभियोॅ केकरौह बरक्कत होलोॅ छै रे’’। 

दारू विशना नें मँगबैलेॅ छै। फुसना ओकरोॅ दोस्त छेकै। फुसना ऊपर सें नीचें तांय लहरी जाय छै- ‘‘की बोललै रे विशना। नमकहराम, रोजे पीबें तेॅ नशा कŸोॅ ऐतौ रे। बेटा, यहाँ दूधोॅ तक में पानी चलै छै। दूधोॅ में मछली देखलेॅ छैं ’’ ? 

‘‘दूधोॅ में मछरी......’’ ? पोखना अचरजोॅ सें पूछै छै। फुसना आपनोॅ मिजाज एकदम बदलतें बोललै-‘‘हों, दूध बेचै लेली नीलुआ बाजार गेलै। घरोॅ में बापें तेॅ पानी मिलैनें छेलै। आपनोॅ चाय- पानी के खर्चो निकालै लेली, बीच बहिसारोॅ के रास्ता में वहूं पानी मिलाय देलकै। जल्दीबाजी में चललोॅ गेलै बोकबा मछरी। वै दिनां, पुनसिया में कारू साव केॅ काटोॅ तेॅ खून नै’’। फुसना नै जानौं आरोॅ की-की बोलतियै कि तखनिये पोखना बीचै में टोकी देलकै-‘‘आबेॅ बिना गांजा के काम नै चलतौं। गांजा निकालोॅ भैया’’। 

विशना एक भर गाँजा के पुड़िया पोखना के हाथोॅ में थमाय दै छै। पोखना ओकरा में पानी दैकेॅ रटाय छै। छूरी सें गाँजा केॅ काटै-कुतरै छै। यही बीचोॅ में विशना गुल जलाय लै छै। साफी धोय छै। बीरना लौंगोॅ के फ्ररमाईश करै छै। तेॅ विशना हँसी केॅ कहै छै-‘‘बापें पीनें होतौ लौंग दैकेॅ गाँजा। फरमाईश रे, लौंग आनलोॅ छै’’। 

बीरना बोलै कुछु नै छै, सिरिफ दाँत बिदोड़ी दै छै। 

आबेॅ गाँजा तैयार छै। चिलम में गाँजा भरी केॅ विशना ओकरा में लौंग खोसै छै। गुल सजाय, बम भोला केॅ चढ़ाय छै आरो शुरू होय जाय छै दौर। पारी पर पारी । एक-एक करी केॅ गाँजा कॅे सोटना। 

रात बहुते होय गेलोॅ छै। सब्भे एक-एक करी केॅ जाबेॅ लागै छै। विशना केॅ ओकरोॅ घरवाली कखनी सें खाय लेली बोलाय रहली छै। बच्चा सिनी खाय केॅ सुती गेलोॅ छै। दिन भरी के थकलोॅ- मरलोॅ गाँव के लोगोॅ सुती गेलोॅ छै। जगली छै तेॅ खाली शुकरी। बिना घरोॅ के मालिकोॅ केॅ खिलैनें वें केनां खैती।...... आरोॅ मालिक छै कि टेरमटेर। नशा में बेसुध। घंट्हौं नखरा के बाद विशना उठतै। मतुर एकरा सें विशना के जनानी शुकरी कभियॉे उकताय नै छै। एक दिनोॅ के रहेॅ तेॅ रहेॅ, ई तेॅ रोजकोॅ धन्धा छेकै। कŸोॅ उकतैती बेचारी ? उकताय केॅ जैती कहाँ ? 

विशना डगमगैतें होलेॅ उठै छै आरोॅ बहुते देरोॅ सें परोसलोॅ होलोॅ थाली पर ई रं बैठै छै जेनां वें खाय केॅ शुकरी पर बहुत बड़ोॅ उपकार करी रहलोॅ रहेॅ। नशा में पूरा बातोॅ ओकरोॅ मुँहोॅ सें नै निकलै छै। बात कभी आधोॅ आरॉे कभी पूरा निकलै, कभी वहू नै। है रं में शुकरी ओकरा संभालै, समझैबोॅ करै-‘‘औकाते भर पीयोॅ। अŸोॅ कैन्हें पीबी लै छोॅ’’। 

आरोॅ विशना गाली बकतें हुवेॅ बिछौना पर पसरी जाय छै। शुकरी हमेशे नरमीये सें पेश आबै छै, कैन्हें कि वें जानै छै जादा बोलला सें ओकरा गाली आरॉे मार के सिवा कुछु नै मिलतै। नशा आदमी केॅ पशु बनाय दै छै आरोॅ वें आपनोॅ मरद के पशु केॅ जगतें बहुते दाफी देखी चुकलोॅ छै। 

यहेॅ रं दुनॉे परानी के दिन बीती रहलोॅ छै। अतना कुछ होल्हौ पर विशना दिन-दिन भरी खेतोॅ में काम करै छै। विशना होॅर जोतै छै तेॅ शुकरी धान रोपै छै। विशना जेनां हुवेॅ, परिवारोॅ के सब्भे जरूरत पूरा करै छै, शुकरियो देह धुनी केॅ कमाबै छै। 

मतुर अतना कुछ करल्हॉै पर परिवारोॅ के आर्थिक स्थिति बिगड़ले चललोॅ गेलोॅ छै। समस्या सें घिरले रहै छै दुनॉे। 

संयोग देखोॅ कि समयें करवटोॅ नै फेरलकै। उमर बढ़लै। चार-पाँच ठॉे बच्चा होय गेलै। खाय-पीयै में तनियॉे टा कमी नै ठोॅ बच्चा होय गेलै।खाय पियै में तनियोॅ टा कमी नै अैलै। भाय में बटवारा होय गेलै। तीन बीघा जमीनोॅ में दू बीघा बिकी गेलै पियै के आदतोॅ वही रफ्तारोॅ में ऐलै। भाय में बटवारा होय गेलै। तीन बीघा जमीनोॅ में दू बीघा बिकी गेलै। पीयै के आदतो वही बढ़लोॅ चललोॅ गेलै। 

आबेॅ विशना कमाबै सें भी मोॅन चुराबेॅ लागलोॅ छेलै। शुकरी खेतोॅ में असकल्लीये काम करै छै। मजूरी करै लेॅ जाय छै। बच्चा सिनी के देखभाल भी करै छै आरोॅ देर रात केॅ जबेॅ वें खाना बनाय केॅ फुरसत पाबै छै तेॅ विशना नशा में चूर घोॅर आबै छै, पैहलके नाँखी नखरा करै छै। आबेॅ तेॅ कभियोॅ-कभियोॅ अभावोॅ में चूल्होॅ नै जलै छै। शुकरी गिरस्तोॅ के घरोॅ सें करजा रूपोॅ में अनाज नै पाबेॅ सकै छै तेॅ निराश होय केॅ खाना बन्द करी दै छै। एन्हॉे परिस्थति में विशना सहानुभूति सें काम नै लैकेॅ मार-पीट पर उतरी आबै छै। शुकरी कानेॅ-कलपेॅ लागै छै। भाग्य केॅ कोसतें हुवेॅ कहेॅ लागै छै-‘‘हमरोॅ तेॅ दुनोॅ अरथ सें मरन छै। हमरा यें मरदें बचेॅ नै देतै। दुनियां में ई कदर के भी लोग होय छै की’’? 

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आय गाँमोॅ में परब छै। सुन्दर, स्वादिष्ट भोजन खाय-पकाय के दिन। केन्हौं केॅ पैचोॅ-उधार लैकेॅ शुकरी नें खाना पकैलेॅ छै। परबोॅ दिन घरोॅ में चुल्हा नै जलैला सें दरिद्री बढ़ै छै। बड़ोॅ तेॅ भुखलोॅ रहेॅ भी सकै छै, मतरकि बच्चा सिनी ? बच्चा केॅ केनां आरोॅ की कहि केॅ समझैलोॅ जाबेॅ सकै छेॅ- यही सोची खाना बनाय केॅ ऊ तैयार होलॅे छेली कि विशना आबै छै। वें पानी दै छै। चौका लगाबै छै। खाना परोसै छै। मतुर ई की ? आगू में परोसलोॅ भोजन देखतैं ऊ बरसी पड़ै छै-‘‘सौ दिनोॅ में तेॅ परब ऐलोॅ छै। रोजे-रोज रूखा- सूखा खैलियै। आइयॉे सिरिफ तरकारिये-भात बनाय केॅ आगू करी देल्हैं। साली...... हरामजादी......’’। 

शुकरी भी आबेॅ बरदाश्त करै के हालतोॅ में नै छै। जवाबोॅ में बोलै छै-‘‘निहोरा करी केॅ थक्की गेलियै, तबेॅ केकरॉे कन सें दोबरा पर तीन सेर चावल आनलियै। मंझली सें माँगी केॅ तरकारी। नमक- तेलॉे भी रंगीला भाय जी के दूकानोॅ सें उधार माँगी केॅ आनलेॅ छियै। तोहें तेॅ दिन भर मटरगस्ती करै छोॅ। कमाय के नाम ताँय नै लै छोॅ उल्टे हमरा पर गोस्सा करै छोॅ। आय तेॅ यहू होलौं। काल्ही सें फाकाकशी होंतौं’’। विशना गुस्साय लेॅ चाहै छै, मतुर ऊ गुस्साबै नै छै, चुपचाप खैतें रहै छै। शुकरी कहनें जाय छै-‘‘ठीक्के कही रहलोॅ छियौं। आबेॅ हमरा सें नै सहलोॅ जैतौं। चार-पाँच बच्चा के पेट पोसना आरोॅ ऊपरोॅ सें तोरोॅ ई धींगामस्ती। यै जीना सें तेॅ मरबोॅ बढ़िया’’। 

‘‘......तेॅ मरै सें रोकै के छौ’’। 

विशना के ई जवाब सुनी केॅ शुकरी केॅ अतनै दुख होय छै कि हतप्रभ होली ऊ ताकतें रही जाय छै। ओकरोॅ भीतर एक आँधी उठेॅ लागै छै। ओकरा लागै छै आबेॅ सचमुचे ओकरोॅ कोय नै छै। सब बेरथ छै। ई रं सब कुछ सही केॅ हर परिस्थिति केॅ पचाय जाय के कीमत में ओकरा तिरस्कार आरोॅ घृणा के सिवा आरॉे कुछु नै मिललोॅ छै। कŸार्व्य भावना सें प्रेरित होय केॅ परिवारिक जिम्मेदारी के हिमालय केॅ आपनोॅ माथा पर ढोय चलै के ओकरोॅ हिम्मत, विशना के एक्के झटका सें चरमराय केॅ टूटी जाय छै। आँखोॅ के आगू एक अन्धेरा छाय जाय छै आरॉे जेना ऊ ओकरोॅ गहराई में उतरली चललोॅ जाय छै। 

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विशना आय बिना पूरा खैलैं सुतै लेॅ चललोॅ जाय छै। शुकरियोॅ परोसलोॅ थरिया केॅ निर्विकार भाव सें उठाबै छै आरॉे सुरक्षित जगहा पर राखी केॅ आपनें बच्चा सिनी के नगीचोॅ में आबी केॅ पटाय जाय छै। 

वें कखनूं बच्चा केॅ देखै छै आरॉे कखनूं अस्थिपंजर होलोॅ आपनोॅ देहोॅ केॅ। सोचै छै-अतना कुछु करियोॅ केॅ की पैलकी वें। ऊ जै डालोॅ केॅ पकड़ी केॅ संसार रूपी ई महासमुन्दर तैरी केॅ पार होय लेॅ चाहनें देलै, वै डालोॅ, के कल्पनै करी केॅ ऊ सिहरी उठै छै। आपनोॅ विश्वास पर पछताबेॅ लागै छै। कलताँय तेॅ हर निराशा में ओकरा यहेॅ लागै छेलै कि ओकरोॅ मालिक ऐतै आरॉे ओकरोॅ जेठोॅ के दुपहरिया नाँखी तपी रहलोॅ दुखोॅ पर आपनोॅ स्नेह के हाथ राखी केॅ शीतल करी देतै। कुछु साल पहिलके तेॅ बात छेकै कि ऊ जबेॅ- जबेॅ मान करी बैठै तेॅ विशना लाख नशा में होलौ पर, अन्त में आबी केॅ ओकरा मनाबै। मतुर आय दोसरोॅ बात छै। आधोॅ रात बीती गेला के बादोॅ ऊ नै आबै छै, शुकरी निराश होयकेॅ धीरें-धीरें फेनू बीतला बातोॅ केॅ स्मृति में डूबी जाय छै। ओकरोॅ आँखी के आगू ओकरोॅ दाम्पत्य जीवन के तेरह बरसोॅ के लम्बा अन्तराल घूमी जाय छै। 

...... बीहा के पहिलोॅ रात भी ऊ पीबी केॅ ही ऐलोॅ छेलै। लेकिन तबेॅ वें गाली नै बकनें छेलै। कŸोॅ प्यार करनें छेलै, यै आदमी नें। मतरकि दिन बीतलोॅ गेलै, ओकरोॅ आदमियॉे बदली गेलै।मतरकि कैन्हें नी हम्में बदललियै ? कैन्हें हमरोॅ प्यार छप्परोॅ पर पसरलोॅ कद्दू के लोॅत नाँखी विस्तार पैतें चललोॅ गेलै ? 

की जनानी जात के यहेॅ नियति छेकै ? हम्में आपनोॅ आदमी के खराब आदत रोॅ विरोध करियॉे के तेॅ देखलियै। बदला में की मिललै ? मारे तेॅ मिललै हमरा। अतीत आरॉे वŸार्मान, दुनोॅ ओकरा सामना में छेलै। एकोॅ लेली पछतावा छेलै आरॉे दोसरा पर रोना। 

...... भोरे उठथैं विशना झनकलोॅ बाजार चली दै छै। आरॉे बच्चा सिनी जगथैं रोटी लेली शुकरी केॅ घेरी लै छै। राती के जे भात विशना के थाली में बचलोॅ छेलै, झगड़तें- कानतें बच्चा के बीच ओकरा बांटी केॅ शुकरी मुक्ति पाबी लै छै। 

...... बहुत देरी के बाद विशना लौटै छै। गोस्सा में तमतमैलोॅ। मुँह देखी केॅ बच्चा सिनी डरी जाय छै। बाजार सें आनलोॅ सामान- चौॅर, दाल, चिकसोॅ आरोॅ तरकारी शुकरी के आगू में पटकी केॅ ऊ बक्के लागै छै-‘‘ले पकाव खाना। बापोॅ घरोॅ सें ऐलोॅ छौ। तोरी माय के ......’’। 

शुकरी विरोध पर उतरी आबै छै-‘‘हमरी माय की बिगाड़लेॅ छौ हमरी माय केॅ गारी कैन्हें दै छौॅ। बच्चा जनमैलेॅ छौ तोंय तेॅ खिलैतै कौनें? बीचे में विशना चीखी पड़ै छै- ‘‘चुपचाप खाना पकाव। रंडी नाँखी जुवान चलैंभैं तेॅ काटी केॅ फेंकी देबौ’’। 

शुकरी झगड़ा बढ़ाय लेॅ नै चाहै छेलै। ऊ नरम होय जाय छै-‘‘कŸोॅ कठोर छोॅ तोंय। भगवानें नै करेॅ कि कोय औरतोॅ केॅ एन्होॅ मरद दियेॅ। विहानी के गेलोॅ सांझ पड़ला पर घोॅर ऐलौॅ छोॅ। हम्में दू साँझोॅ सें खाना नै खैलेॅ छियै आरॉे तोंय जोर-जबरदस्ती पर तुललोॅ छोॅ। आय हमरा सें खाना नै पकेॅ सकतौं’’। 

‘‘खाना तोरोॅ बापें बनैतौ। घूरी केॅ आबै छियौ। खाना नै मिललौ तेॅ कच्चा चबाय जैबौ’’। विशना ई कहतें हुवें ऐंगना सें बाहर चली दै छै। टृटलोॅ मनोॅ सें, केन्हौॅ केॅ शुकरी खाना पकाबै छै, करतियै भी की बेचारी। बच्चोॅ लेली तेॅ जिन्दा रहना जरूरिये छेलै। 

राती विशना जी भरी केॅ दारू पीयै छै आरॉे दिनकोॅ सब गोस्सा शुकरी पर उतारी दै छै। चीख- पुकार सुनी केॅ पड़ोस के लोग सिनी शुकरी के रक्षा में जुटी आबै छै। विशना टोला भरी के जमा लोगोॅ केॅ चेतावनी दै रहलोॅ छै-‘‘आइन्दा फेरू कोय हमरोॅ ऐंगना ऐलोॅ छैं तेॅ अच्छा नै होतां’’। 

यै पर गाँवोॅ के एक ठोॅ बूढ़ी जनानी ओकरा जवाबोॅ दै छै- ‘‘जहिया सें ऐली छै बेचारी, तोरोॅ उत्पाŸो सहतें बेदम होय रहली छै। ई तेॅ यहेॅ जनानी छेकौ जें बरदाश्त करै छौ। दोसरी कोय होतियै तेॅ मरी गेलोॅ रहतियै आकि भागी केॅ चल्लोॅ जैतियौ। बाल- बच्चेदार होले। आबेॅ तेॅ रहम करलोॅ करें बेटा’’। 

‘‘तोंय टपटप कथी लेॅ बोली रहलोॅ छैं। चुपचाप जोॅ। आपनोॅ रास्ता देखें ’’। 

बुढ़िया फदकलोॅ चली दै छै। मरद सब गुमसुम। जनानी सिनी फुसफुसैलोॅ आपनोॅ-आपनोॅ घोॅर जाबेॅ लागै छै। शुकरी कपसी-कपसी केॅ कानतें रहै छै। 

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करजा के बोझोॅ सें दबलोॅ विशना आबेॅ जमीन बेचै के बात करेॅ लागलोॅ छै। गरामिन विकास बैंक सें तीन हजार रूपया के ऋण लैकेॅ ऊ फंसी चुकलोॅ छेलै। हजारोॅ के बनलोॅ टमटम पाँच सौ में बिकी गेलै आरोॅ घोड़ा तेॅ बैंक मैनेजर्हैं दलाली करी केॅ एन्होॅ खरीदबाय देलकै कि रास्ता में जे गिरलै तेॅ फेरू उठलै ही नै। गरीबोॅ के कोय नै होय छै ई दुनियां में। घोड़ॉे गेलै आरोॅ बैंकोॅ के करजा के किस्तोॅ चुकाना छेलै। ओकरा हौ दिन अब तांय याद छै, जबेॅ सोलह सौ के घोड़ा सात सौ में बेची केॅ हटिया सें विशना घोॅर घुरलोॅ छेलै। आबेॅ तेॅ कुरकी-वारण्ट तक के नौवत आबी गेलोॅ छै। शुकरी के लाख मना करलौ पर वें नै मानलेॅ छेलै। 

शुकरी कहतें रहलै-बचलोॅ पैसा बैंकोॅ के खाता में जमा करी दहौ। हाथोॅ में रहतौं तेॅ खर्च होय्ये जैतौं। मतरकि विशना केॅ तेॅ जेना पेंसा सें जानी दुश्मनी छेलै। सब खाय-पीबी केॅ खतम करी देलकै। 

जमीन बेचै के बात सुनी केॅ ई दाफी शुकरी कड़ा विरोधोॅ पर उतरी आबै छै। वें निश्चय करी लै छै कि कोय भी हालतोॅ में जमीन बेचै लेॅ नें देबै। एक्के बीघा जमीन तेॅ बचलोॅ छै। एकरौ बेची केॅ खाइये जैतै तेॅ बचतै की ? 

यै बातोॅ केॅ लै केॅ दुनोॅ परानी में रोज के झगड़ा हुवेॅ लागलोॅ छै। विशना गाय आरॉे बैलोॅ केॅ बेचै के बात करेॅ लागलोॅ छै आरॉे जबेॅ विशना मवेशी केॅ बेचै लेॅ हटिया लै जाबेॅ लागै छै तेॅ शुकरी रास पकड़ी लै छै आरॉे ओकरा छोड़वे नै करै छै। विशना मारी केॅ थक्की जाय छै। बच्चॉे सिनी मार खैतें माय के तरफोॅ सें तैयार होय जाय छै। मार खैतें माय के देहोॅ पर गंगिया लेटी जाय छै। शुकरी के कहना छै- ‘‘जमीन, गाय आरॉे बैल बेची केॅ कŸोॅ दिन चलतौं। देहोॅ में मांटी लगाबोॅ। मजूरी करोॅ। सब्भैं मिली केॅ कमैबै, बाँटी केॅ खैबै। है दारू पिबोॅ छोड़ी दहौॅ’।’मतरकि विशना केॅ ई मंजूर नै छै। आखिर रोजे-रोज के ई किचकिच सें तंग आबी केॅ शुकरी आपनोॅ भैसूर आरोॅ दियोरोॅ सें आपनोॅ पति के जादती पर रोक लगाबै लेली मदद माँगै छै। मतरकि कोय भी आगू बढ़ी केॅ आपनोॅ माथा पर झगड़ा मोल लै लेली तैयार नै होय छै। गाँवोॅ के मुखिया केॅ तेॅ सरकार रूपी कामधेनु केॅ दुहै सें ही फुरसत नै छेलै। आपनोॅ लूटै-कमावै के धुनोॅ में एतनै व्यस्त छेलै कि केकरॉे वाजिबॉे बात मुखिया केॅ सुनै के फुर्सते नै छेलै। पांचे सालोॅ में ओकरा आपनोॅ अर्थव्यवस्था केॅ मजबूत आरॉे ठीक-ठीक करी लेना छेलै। 

आखरी में शुकरी लखना ठियां जाय केॅ कानें लागै छै-‘‘आबेॅ खानदानोॅ आरॉे जात- विरादरी के पगड़ी उतारी चली जैभौं। वै समय है नै कहियोॅ कि भौजी अनरथ करी देलकै। तोरा पर आसरा लगाय केॅ एैली छियौं। हमरोॅ फैसला करै लेॅ लागतौं’’। लखन सोची केॅ कहै छै- ‘‘हमरा कुछु करला पर तोंय दुनोॅ तखनी एक्के होय जाव तेॅ लोगें हमरा की कहतै’’। 

‘‘एन्होॅ नै होतै। हम्में वचन दै छियौं’’। 

‘‘एन्होॅ लागै छौं कि मारपीटोॅ करै लेॅ पड़ेॅ। घोॅर छोड़ी केॅ भागेॅ लागतौं तबेॅ’’ ? लखन नें परीक्षा लै छै। 

‘‘हम्में करेजा पर पत्थर राखी लेबै’’। शुकरी के आवाजोॅ में दृढ़ता छै। 

शुकरी चली आबै छै। दुपहर के समय छेकै आरॉे घोॅर लौटी पहिलें तेॅ वें जंडोॅ ताबा पर भूंजी केॅ बच्चा सिनी केॅ खिलाय छै आरॉे आपनौ खाय छै। फेनू कै दिनोॅ सें रूकखोॅ-सुखखोॅ खाय रहलोॅ बच्चा लेली ऊ खाना बनाय में जुटी जाय छै। हौ दिन-रात भरी शांति छै। होना केॅ बहुŸो देर अंट-संट बकतें रहै छै विशना। घरोॅ में कोय कुछु जवाब नै दै छै। 

विशना विहानी सुती केॅ उठै छै। मोॅन भरी केॅ गांजा पीयै छै आरोॅ खुट्टा में जोरलोॅ बैलोॅ केॅ फेनू खोली केॅ लै जाबेॅ लागै छै। शुकरी दौड़ली आबै छै आरोॅ आगू में आबी केॅ खाड़ी होय जाय छै। शुकरी आपनोॅ बोली में थोड़ोॅ गोस्सा लानतें कहै छौं। बैलोॅ के कोय हालतोॅ में हम्में नै लै जाबेॅ देभौं।’’ प्रतिरोध में खाड़ी शुकरी केॅ देखी विशना के गोस्सा दुगना भड़की उठै छै आरो शुकरी के झोंटोॅ पकड़ी केॅ ओकरा लात-घूसा सें मारेॅ लागै छै। 

शुकरी के कानै के आवाज सुनी केॅ लखन ऐंगना में चललोॅ अइलै आरो विशना केॅ समझाबेॅ लागै छै। आसपासोॅ के ढेर सिनी लोगॉे जमा होय गेलोॅ छै। शुकरी कानी-कानी केॅ कहेॅ लागै छै-‘‘ यें दू बीघा खेत बेची केॅ खैलकै। हम्में कुछुवो नै बोललियै। गाय-बैल हम्में मेहनत-मजूरी करी केॅ खरीदनें छियै। जेनां होलै, घर- परिवार चलैलियै। ई मरद होय केॅ भी 

बैठी केॅ खैतें रहलै। यें मारी केॅ हमरोॅ देहोॅ केॅ पकाय देलकोॅ। हम्में विरोध नै करलियै।...... मतुर आय हम्में चुप नै रहबै। तोरा सिनी केॅ फैसला करै लेॅ लागतौं। यै राकसोॅ सें हमरा बचाबोॅ’’। 

एतना सुनतैं विशना लाठी लै केॅ लपकै छै-‘‘कहोॅ, के बापें बचाय छै’’। लखन बचाय लेली शुकरी के आगू आबी जाय छै आरॉे चलेॅ लागै छै लाठी-तड़-तड़... तडा़-तड़। 

आरॉे कुछुवे देरी में दू-चार लाठी खाय केॅ विशना कब्जा में आबी जाय छै। चोटैलोॅ विशना बोलेॅ लागै छै-‘‘एकरोॅ मतलब छेकै कि ई जनानी केॅ हमरोॅ कोय जरूरत नै’’। 

‘‘जनानी खाली लात-जूता खाय लेली नै होय छै’’। शुकरी तमकली बोलै छै। 

कमजोरें गाली बकै छै। से विशनौ गाली बक्केॅ लागै छै-‘‘बिना धग्गड़ोॅ के रहबैं तोंय। बोली दहीं दसोॅ के बीचेॅ में। आइये फैसला होय जाय। हम्में घोॅर छोड़ी केॅ चल्लोॅ जैबै’’। 

लखन बीच्हे में बोलै छै-‘‘तोरा जाय लेली के कहै छौं। आदमी नाँखी रहोॅ। कमाय केॅ परिवारोॅ केॅ पोसोॅ आरॉे की ? तोंय जानी- बुझी केॅ धोॅन लुटैनें छोॅ। तोरा कोय बैकोॅ सें टमटम- घोड़ा लैकेॅ सलाह नै दै रहलोॅ छेल्हौं। बचलोॅ पैसा तोंय पीबी केॅ खतम करी देल्हौ। ई करजा तोरा कमाय केॅ दै लेॅ लागतौं। ... आरोॅ सुनी लेॅ, रोज-रोज के है मारपीट आबेॅ टोला वाला नै सहतौं। रहना छौं, तेॅ ठीकोॅ सें मिली-जुली केॅ रहोॅॅ’’। लखन नें निर्णय सुनैलकै। 

‘‘नै तेॅ......’’? विशना गोस्सा में बोललै। 

‘‘गाँव छोड़ी केॅ चल्लोॅ जा। तोरा कारणें सौसें टोला बर्वाद होय रहलोॅ छै’’। 

भीड़ोॅ में खाड़ी शुकरी केॅ विशना ताकलकै-हताश, अेकिचन, मतुर विद्रूप आँखोॅ सें शुकरी कहै लागै छै-‘‘ई आदमी के हिरदय में दया- धरम कुछुवोॅ नै छै। लखनोॅ के कहलानुसार, ई ठीक सें घरोॅ में रहेॅ तेॅ ठीक या नै तेॅ एकरोॅ चल्लोॅ गेला में ही हमरोॅ कल्याण छै। बिना मरद के भी जनानी रहै छै। समझबै, हमरा मरद नै छै’’। 

......आरॉे अतना कही केॅ शुकरी कानलोॅ-कानलोॅ तेजी सें घरोॅ के भीतर चल्लोॅ जाय छै।

 Angika Kahani
 
संपर्क : 
अनिरुद्ध प्रसाद विमल 
संपादक : समय/अंगधात्री समय साहित्य सम्मेलन, 
पुनसिया, बाँका, बिहार-813109. मोबाईल : 9934468342.

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