परोपकार के लेलऽ नियम तोड़ना अपराध नांय छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
पांचऽ पाण्डव केरऽ एके कनिय छेली द्रोपदी । महर्षि व्यास केरऽ आज्ञा से पांचऽ भाई केरऽ बीच नियम बनैलऽ गेलऽ छेला कि जबे एक भाय द्रौपदी केरऽ साथ रहता त समय दोसरऽ भाय वहाँ नांय जाता । एक समय केरऽ बात छै, युधिष्ठिर द्रौपदी केरऽ साथ आराम करी रहलऽ छेलात । बाहर अर्जुन बैठलऽ छेला । एकरा ब्राह्मण केरऽ करूण पुकार सुनाई पड़ल्हें, कुछ लुटेरा ब्राह्मण केरऽ गो धन लुटी के भागलऽ जाय रहलऽ छेलै । ब्राह्मण ने अर्जुन से सहायता मांगलका । अर्जुन सांप छुछुन्दर के भांति में पड़ी गेल । सोचै लागला, ब्राह्मण के किरेऽ मदद करलऽ जाय दुविधा में छेला कि हुन्कऽ धनुष बाण वेहे घरऽ में छेले । जहाँ द्रौपदी आरो युधिष्ठिर आराम करी रहलऽ छेले । अर्जुन के कुछ नांय सुझी रहलऽ छेल्हें । हिन्ने लुटेरा आंखी से ओझल होय रहलऽ छेले । अर्जुन हारी- पारी के नियम तोड़ै केरऽ सोचलका । आरो धीरे से घरऽ केरऽ किवाड़ी खोललक, जहाँ युधिष्ठिर आरो द्रौपदी बैठलऽ छेली । अर्जुन धनूष बाण लैके चोरऽ के पीछु दौड़ला, चोर देखलक अबे हम्में पकड़ाय जाबऽ, गौधन छोड़ी के भागलऽ । अर्जुन ब्राह्मण के गौधन सही सलामत जिम्मा लगाय देलका । अर्जुन युधिष्ठिर से नियम भंग केरऽ बात बताने होलऽ क्षमा मांगलका । नियम केरऽ अनुसार दंड केरऽ रूपऽ में बारह बारस राज्य से बाहर जाय केरऽ आज्ञा मांगलका । युधिष्ठिर ई सुनी के एकदम व्याकुल होय गेला । अर्जुन से कहलका, हे अर्जुन माने छी तोहें नियम तोड़ी देल्हऽ अपनऽ स्वार्थ के लेलऽ नांय बल्कि परोपकार के लेलऽ । ब्राह्मण केरऽ गौधन बचाय के तोहें पुजा से मिलै वाला अपयश से हमरा बचाय लेल्हऽ यदि परोपकार के लेलऽ नियम तोड़ै ले पड़ते अपराध नांय मानलऽ जाय छै । तोहें दंड केरऽ नांय बल्कि यश केरऽ पात्र छिक्हऽ ।
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