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Wednesday, August 5, 2020

दमयन्ती | Angika Kahani | अंगिका कहानी | अनिरुद्ध प्रसाद विमल | Damyanti | Angika Story | Aniruddh Prasad Vimal

दमयन्ती | अंगिका कहानी | अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Damyanti |  Angika Kahani |  Aniruddh Prasad Vimal



चूल्हा ठियां बैठली छेलै दमयन्ती। चावल उबली रहलोॅ छेलै। डब- डब-डब। आगू में भुजिया बनाबै लेली भिन्डी आरोॅ आलू कटलोॅ धरलोॅ छेलै। एक मौनी में हरा कचोर करेली राखलोॅ छेलै,जेकरा पतला-पतला,गोल-गोल काटी केॅ सब्जी बनाना छेलै। मतुर आगु में हसुआ रहला के बादॉे दमयन्ती ओकरा काटी नै रहलोॅ छेलै। पता नै,की सोची रहली छेलै वें ?चुकुमुकु बैठली। चिन्तन आकि चिन्ता, दू में सें एक या फेरू दुनों एक्के साथ। ऊ बेफिकर कांही डूबली छेलै। बरामदा में हवा बही रहलोॅ छेलै, जेकरा सें ओकरोॅ माथोॅ के दू-चार पकलोॅ-अधपकलोॅ बाल फुर्र-फुर्र उड़ी रहलोॅ छेलै। 

सच्चे ऊ बहुत दुखी छेलै। बहुत जादा दुखी। यहेॅ कारण छेलै कि हर क्षण ओकरोॅ चमकै वाला गोरोॅ मुँह तेजहीन होय गेलोॅ छेलै। जिनगी के पैंतीसे वसन्त गुजरलोॅ होतै आभी। सुन्नर देह। आभियो ओकरा देखी केॅ अतना उमिर होय गेलोॅ होतै,शायतें कोय कहेॅ पारै। ‘पातर- पातर तिरिया मनहुं भावै, जिया हुलसाबै, के भाव आभियो तांय ओकरोॅ देह आरोॅ स्वास्थ में उमगी रहलोॅ छेलै। 

दमयन्ती सिरिफ चार बच्चा के माय छेलै। सतरह-अठारह के ही ऊ छेलै, जखनी ओकरोॅ बियाह होय गेलै।दमयन्ती सोचै छै-सालोॅ नै पुरलै कि एक ठोॅ बेटी होय गेलै।फेरू बिना रोकनें ई बाढ़ थोड़ोॅ रूकै वाला छेलै।शुरू होलै तेॅ ई चार्है पर आबी केॅ रूकलै। वहोॅ ई रं नै,अस्पताल जाय केॅ। भीषण कष्ट आरो दर्द सही केॅ नियोजन के आपरेशन कराय लेॅ पड़लै। बड़की बेटी आबेॅ सतरह के होय गेली छेलै। दू साल बाद एक बेटा होलै। हुनी तेॅ एतन्हैं पर संतोष करी लै लेॅ चाहै छेलै।मतुर सास, बड़की गोतनी आरो पास-पड़ोस के जोॅर- जनानी के बातोॅ में पड़ी केॅ पति सें जिद करी बैठलै- ‘एक टाका केॅ टाका कहै छै आरो एक बेटा केॅ कोय बेटा- बेटा कम सें कम दू हुवेॅ’..........यही आसोॅ में दू बेटी होय गेलै। 

दमयन्ती तखनिये सें बहुत दुखी होय गेली छेलै- बाप रे बाप। तीन बेटी केनां बिहा करबै। ई दहेज के भीषण युगोॅ में केनां पार लगतै ?बेटी देखै में कतनौ परी हुवेॅ, बिना दहेजोॅ के ओकरोॅ रूप-गुण के कोय पूछ नै।लड़का वाला केॅ पैसा चाहियोॅ। लड़की भी सुन्दर। लिखली- 

पढ़ली तेॅ रहबे करेॅ...। सोचथैं वें दैवोॅ केॅ कोसेॅ लागै छेलै। कखनू तकदीरोॅ केॅ कखनू आपना- आप केॅ। ठिक्के तेॅ हुनी कहै छेलै तखनी। जों हुनकोॅ कहलोॅ मानी लेनें रहतियै तेॅ अखनी आरो दू ठो के बेशी बोझोॅ तेॅ नै पड़तियै। फटल्हौ पर पिताम्बरी-पिताम्बरीये होय छै।कमोॅ सें कम खरचा, तहियो एक ठो केॅ निबटाबै में लाखोॅ सें कम नै। कतन्हौ कोताही,तहियो पचास हजारोॅ सें कम में निबटाबै के मतलब होय छै-गरीबोॅ घरोॅ में बेटी केॅ दै आना। अतना में नै तेॅ मनचाहा वर मिलेॅ पारै छै आरो नै तेॅ मनोॅ लायक खानदानी घोॅर।......बेटी बी0 ए0 करी रहलोॅ छै। लड़का कमोॅ सें कम एम0 ए0 तेॅ होन्हैं चाहियोॅ। नै करला पर लोगें की कहतै।कोय नै तेॅ गोतिया पड़ोसियॉं कहबे करतौं।बुच्ची काकी के मुंह के बंद करेॅ सकतै। फूहड़ छै फूहड़। एक नम्बर के मुंहफट। कहतै-‘‘जनमाय के शौक छेलै...’’ सोचथैं माथोॅ फाटै लागै छै दमयन्ती के.....ई तेॅ हुनी शुरूवे सें हमरा मानत्है छै एतन्है कि कभियो कमात नै करै छै। दोसरोॅ मरदाना होतियै तेॅ रोज कभाते होतियै। 

दमयन्ती आय आरो अखनी चूल्हा ठियां बैठली मिलाय- जुलाय केॅ यहो सब सोची रहलोॅ छेलै-हुनी तेॅ तखनियो आरो अखनियो यहेॅ कहै छै-‘छोड़ोॅ, जे होना छेलै,ऊ होय गेलै। व्यर्थ चिन्ता करै छोॅ। आबेॅ आगू सोचोॅ। माथा खराब करला सें को फायदा ! आबे ई गुड़ खैनें कि कान छेदेनै......’’। 

मतुर दमयन्ती पति के परेशानी देखै छै तेॅ औलबलाय जाय छै। विरासत में सात-आठ बीघा पुष्तैनी जमीन छै।पति सरोज बाबू सन सŸार के बी0 ए0 छै।एम0 ए0 भी करनें छै।नौकरी के उम्मीद नै देखी केॅ पच्चीस हजार डोनेसन दैकेॅ कालेज में रही गेलै। मतरकि ई कोशिशो बेकारे गेलै। सरकारें कोय्यो कालेजोॅ केॅ अब तांय मंजूरी नै देनें छै। दस साल तांय घरोॅ के आटा गील करी केॅ प्रोफेसरी करलकै,यै आशा में कि आय नै कल, कालेजोॅ में दरमाहा मिलतै ही,मतरकि तकदीरोॅ में ई होना नै छेलै। साल-साल भरी दौड़ी-धूपी केॅ लड़का जुटाना। ओकरोॅ नाम लिखाना। फेरू नकल करवाय केॅ ओकरा पास कराना। हुनकोॅ दम धुटेॅ लागलोॅ छेलै यै पेशा में।नकल-उकल करै के छूट दिलाबै के बदला व्यवस्था केॅ पैसा देना। अपने कालेजोॅ में सेंटर कराना। परीक्षा दै वाला सें थेथर होय केॅ रकम वसूलना आरो नकल कराय में मदद अलगे।परीक्षा हॉल में जबेॅ लड़का सिनी पोथा खोली-खोली केॅ लिखना शुरू करी दै छै, तेॅ सरोज बाबू केॅ खाली हँसिये नै आबै छै, बल्कि हिनकोॅ जमीरॉे टूटी-टूटी केॅ बिखरेॅ लागै छै।हुनकोॅ तेॅ हेने मन करतें होतै कि फाँसीये चढ़ी जाँव। आखिर कैन्हें नी करतै ? की यहेॅ दिनोॅ लेली हुनी दिन- रात एक करी केॅ पढ़लेॅ रहै। हुनका तेॅ यहेॅ लागै छै कि हुनी कॉलेजोॅ में रहिये केॅ की करी रहलोॅ छै...। 

... कै बार तेॅ हुनी हमरा कही चुकलोॅ छै-‘‘हमरा लागै छै-हम्में बिना ओदवायन के खटिया रँ बनी गेलोॅ छी।बाप रे,आदमी केॅ की होय गेलोॅ छै।एŸोॅ झूठ कोन दिनोॅ लेली बोलै छै।विधान परिषदोॅ, पंचायतोॅ में बैठी केॅ जनता के प्रतिनिधि बोलै छै कि राजकोषोॅ में पैस्है नै छै। इस्कूल -कॉलेज के शिक्षक जबेॅ भी धरना-अनशन पर बैठै छै, तबेॅ मोॅर मिनिस्टर यहेॅ बोलै छै,मतरकि साल भर होतें मँहगाई के नामोॅ पर आपनोॅ वेतन आरो सुविधा दुगना-तिगुना बढ़ाय लै छै। एक तेॅ इन्द्र, दोसरोॅ हाथोॅ में बज्र। जबेॅ ओकरे हाथोॅ में सबटा अधिकार सिमटलोॅ छै तेॅ कौनें रोकेॅ सकेॅ’’। 

......सरोज बाबू के कहलोॅ सब बात दमयन्ती केॅ बड़ी तेजी सें याद आबेॅ लागै छैं। हुनकोॅ स्वातंत्रता सेनानी दादा रोॅ जमीर...देश लेली हुनकोॅ करलोॅ गेलोॅ सेवा आरॉे त्याग...... जबेॅ सरकारोॅ केॅ पेंशन वाला कागज लौटेतें कहनें छेलै- ‘हम्में भारत माय रोॅ सेवा पैसा लेली नै करनें छेलियै। माय के सेवा कॅे मूल्य में ऑंकै वाली ई सरकार आन्हरोॅ होय गेली छै। स्वार्थ में लहालोट......। 

कि हठाते दमयन्ती के धियान डबकतेॅ चौॅरोॅ पर जाय छै- डब-डब-डब। भात होय गेलोॅ छै।वें मॉंड़ पसाबै छै। अनमने भाव सें दालोॅ के डेकची कोयला के चूल्होॅ पर चढ़ाबै छै।पैहिलें सें खौललोॅ दाल जल्दिये खौलेॅ लागै छै। दमयन्ती केॅ लागै छै- वहोॅ तेॅ हेन्हैं कोयला के भट्टी पर चढ़ली खौली रहलोॅ छै।ओकरा अभी-अभी चूल्हा पर चढ़ैलोॅ आगिन बनलोॅ बर्तन आरो आपना में कोय भेदे नै बुझाबै छै।कहीं दमयन्तीये तेॅ नै छेकै जे चूल्हा पर चढ़ी गेलोॅ छै...। 

ओकरा याद आबै छै कि बियाह सें पैन्हें वें मास्टरी वास्तें ट्रेनिंगोॅ करनें छेलै। सच पूछोॅ तेॅ ओकरोॅ ससुर आरोॅ भैसुरें यहेॅ देखी केॅ ओकरा आपनोॅ घरोॅ के पतोहू बनैलेॅ छेलै कि लड़की ट्रेनिंग पास छै, दू-चार सालोॅ में नौकरी तेॅ हो्रय्ये जैतै।ओकरोॅ बाद,फेनू सोचन्हैं की छै। हुनका सिनी नें बिना कुछ लेनें-देनें ही शादी करबाय देनें छेलै।मतरकि होलै की? आय सतरह- अठारह साल बीतला के बादोॅ नौकरी के काहूं नौकरी के दरेस तक नै छै। ... हों, व्याह के पाँचवे सालोॅ पर एकठोॅ चान्स मिललोॅ छेलै, मतरकि हिनीये खर्चा-वर्चा के नामोॅ पर नाँकी देलकै।स्थितियो तेॅ पैसा दैके नहियें छेलै।..... आरोॅ आबेॅ तेॅ भौकन्सीये नै निकलै छै... ...तबेॅ हिनी कहनें छेलै कि नौकरी तेॅ लाइने सें सबकेॅ होय के नियम छै। आबेॅ ई नियम कहाँ गेलै! आबेॅ जौं होबोॅ करतै तेॅ पच्चीस-तीस हजार पूजा-प्रसाद देलेॅ बिना कहाँ...। 

ढक्कन सें ढकलोॅ डेकची के दाल दमयन्तीये साथें लगातार बाजी रहलोॅ छेलै।कि हठाते ढक्कन एक बारी जोरोॅ सें बाजी उठलै। शायद भांप नें जोर लगैनें छेलै। ओकरोॅ धियान टूटी गेलै।तियोंन चढ़ाबै के तैयारी में दमयन्ती के हाथ होन्हैं के तेजी सें चलेॅ लागलै जेना कि बटन दबैतैं कोय बटनवाला मशीन चली उठलोॅ रहेॅ।तियांन में प्याज काटी केॅ देना छै,जै वास्तें वें हँसुआ केॅ आपनोॅ गोड़ोॅ के पंजा सें दबैनें बैठी रहै छै।वही सें पैन्हें प्याज छीलै छै, फेनू काटै आरो कुतरबॉे करै छै। 

आभी तांय सरोज बाबू खेतोॅ पर सें लौटी केॅ नै ऐलोॅ छै। दमयन्ती सोचै छै-रोपा होला के बाद ई कनियां नक्षत्र में पानी केरोॅ टायठोॅ पड़ी गेलोॅ छै।हरियर फसल सूखी रहलोॅ छै।नहर-पटवन के की !नहरोॅ में पानी तभीये आबै छै, जबेॅ ऊपरोॅ सें भगवानें दै छै। दमयन्ती पीड़ा से बुदबुदाबै छै-आग लगलोॅ छै सरंगोॅ में। भगवानोॅ केॅ दया-माया नै छै। एŸोॅ-एŸोॅ खर्च करी केॅ खेती करलेॅ छियै आरोॅ वै पर दैवा कसाय बनलोॅ होलोॅ छै। ...... मजदूरीयोॅ के दरोॅ में कŸोॅ बढ़ोतरी होय गेलोॅ छै। जे काम चार मजूरोॅ सें होय जाय छेलै, ऊ आबेॅ आठोॅ मजूरोॅ सें मुश्किल सें हुवेॅ पारै छै। ... आदमी के ईमान बिगड़ी गेलोॅ छै, आकि खाद नें काम करै के ताकते हरण करी लेलेॅ छै। के कहेॅ पारेॅ ? मतरकि आपनोॅ खेत आकि ठेका पर काम करै वखती कहाँ सें मजूरोॅ में अतेॅ ताकत आबी जाय छै। दमयन्ती ई सब सवाल केॅ सोचथैं सिहरी उठै छै। 

...किसानोॅ केॅ दुख आरॉे परेशानी के सिवा कुछुवे नै। सब भार किसाने पर। किसानोॅ के कोय माय-बाप नै। नै नीचें, नै ऊपर। आन सालोॅ नाँखी यहू बारगी खादोॅ के दाम डेढ़िया बढ़ी गेलै। वाह रे कृषि प्रधान देशोॅ के सरकार...... तभिये दमयन्ती हठाते पीड़ा सें कराही उठलै। हँसुआं औंगरी केॅ निवाला बनैलेॅ छेलै। लाल-लाल खून छर-छर गिरेॅ लागलोॅ छेलै। भीतर सें तेॅ कटलिये छेलै, बाहरोॅ सें कटी गेलै।भीतर आरोॅ बाहर, दुनोॅ जगह के पीड़ा मिलत्हैं, ओकरोॅ आँखी सें लोरोॅ बहेॅ लागलै। अतन्हौं पर दाल तेॅ उतारनैं छेलै। वें दाल के डेकची उतारै छै। तियांन कॅे तैयारी लेली लोहिया चूल्हा पर चढ़ाबै छै। तेल दैकेॅ मसाला भूजै छै।छन-छन-छनाक-छन। नमक हल्दी डालला के बाद वै में पानी डालत्हैं लोहिया छनकेॅ लागै छै। दुनों के पीड़ा एक होय गेलोॅ छै। छन-छन करतें दमयन्ती एकटक लोहिया में छनकतेॅ सब्जी केॅ देखै छै। 

तभिये गाय डिकरै छै।सरोज बाबू अभी तांय बहियारोॅ सें लौटी केॅ नै आबेॅ पारलेॅ छै। पूरब के आकासोॅ पर सूरज हाँसेॅ लागलेॅ छै। ऊ बच्चा सिनी के स्वाभावोॅ पर चिढ़ि उठै छै। गाय के नादी में कुट्टी-पानी नै छै। गोस्सा में आबी केॅ ऊ चींखी उठै छै-‘‘कहाँ गेलोॅ छैं गे छौड़ी। कामकोढ़िन। एक्कॉे काम करै लेॅ नै चाहै छै। आयकल के बच्हौ कŸोॅ विचित्र होय गेलोॅ छै।माय-बाबू रोॅ दुख आरोॅ परेशानी सें कोय्यॉे सरोकार नै।जवान होय गेली छै मतरकि कोय लूरे नै। हम्में नंग-तंग होय रहलोॅ छी आरोॅ तोंहे बाप के देलोॅ पलंगोॅ पर पसरली होली छै’’। 

सच्चे में ई लड़की सिनी कोय कामै नै करै लेॅ चाहै छै। यही कारनें दमयन्ती वै सिनी पर नाराज रहै छै। ऊ बोलतें चललोॅ जाय रहलोॅ छै। विष सें बुझालोॅ बाण नाँखी ओकरोॅ शब्द जुबान सें बाहर निकली रहलोॅ छै। ई बच्चा सिनी कुछ समझबोॅ तेॅ करेॅ।कहावतॉे छै-‘की बच्चा होलोॅ सयानोॅ,दुख होलोॅ वीरानोॅ।’ 

मतरकि मुन्नी नै आबै छै।वहीं सें पेटोॅ दर्दोॅ के बहाना करी दै छै।दमयन्ती माय छेकै-वहेॅ माय जेकरोॅ मनोॅ में ममता के सागर उमड़ै छै। भीतरे-भीतर ऊ कहीं सें पिघली उठै छै-बच्चा सिनी वास्तें। वहेॅ बिहा- शादी ... मतरकि अकाल के दिनोॅ में सरंगोॅ के उड़ियैतें मेघे नाँखी होकरोॅ भावोॅ खतम होय जाय छै...। 

दमयन्ती जानै छै कि मुन्नी केॅ झूठ-मूठ बहाना बनाय केॅ बात केॅ टाली दै के आदत छै। ऊ मनेंमन सोचै छै-दरदे नी छै,कोनो जान तेॅ नै जाय रहलोॅ छै।हल्का फुल्का है रं के दरद टाली केॅ भंसा में मदद तेॅ करले जावेॅ सकेॅ छै। 

दमयन्ती कुनमुनैली होली उठै छै। गाय केॅ कुट्टी आरॉे दान्हौ दै छै आरोॅ बोललॉे चललोॅ जाय छै-‘‘बच्चा सिनी केॅ चनफट होना चाहियोॅ। गोसांय उगै सें पहिलें चाहियोॅ की घूमेॅ-फिरेॅ।बेटी जात छै, बुहार-सुहार करलोॅ करै! बŸार्न-बासन मांजी केॅ जों खाना बनाबें तेॅ हम्में दूसरोॅ काम नै समेटी लियै।तोहीं बोलें,हम्में सब्भे टा काम वहेॅ बेचारा पर केना छोड़ी दियै। 

दू पैसा जोगाड़ै वास्तें ऊ आदमी नें कॉलेज छोड़ी केॅ कचहरी पकड़नें छै। 

ऊ एक आदमी पर कŸोॅ काम छै। भिनसरबे उठी केॅ कुट्टी-पानी देलकै, ओकरोॅ बाद खेतोॅ पर गेलै। आबेॅ धड़फड़ करतें ऐतै आरो वकीलाय करै वास्तें बांका भागतै। गाँव सें बीस किलोमीटर दूर। दिन भर हट्टॉे-हट्टोॅ होय केॅ रात केॅ आठ बजे सें पहिलें नै आबेॅ सकतै। बच्चा के छेकोॅ-काम-धाम करलकोॅ। गोड़-हाथ चरफरोॅ रहलोॅ।आदमी जŸोॅ समांग केॅ बचाबै छै ओतन्हैं रोगोॅ देहोॅ में होय छै।हे भगवान, दुनों आदमी ई बच्चा सिनी वास्तें बैल होय गेलोॅ छी आरॉे एकरासिनी केॅ कोय दया-माया नै। 

दमयन्ती कुट्टी-पानी दै केॅ फेरू चूल्हा के नगीचे आबी केॅ बैठी गेलोॅ छै।तनाव आरोॅ गुस्सा सें भरलोॅ ओकरोॅ मुंह लहाश जलाय केॅ ऐलोॅ कनकठियॉं नाँखी होय गेलोॅ छै।कŸोॅ दयनीय बनी गेलोॅ छै परिवारोॅ में माय के हालत। हड्डी-पसली एक करी केॅ दिन-रात कमैतें रहोॅ, तेॅ बड़ी बढ़ियां। करी-धरी केॅ जवान-जवान बुतरू केॅ खिलाबोॅ तेॅ-माय। खून के घूट पीबी केॅ रही जाय छै ऊ। 

ऊ स्वंय आपन्है आप सें झगड़ै छै।ऊ खुद केॅ समझाबै छै। पढ़ै-लिखै में भी जों अच्छा निकलतियै तेॅ समझतियै कि चलोॅ कोय बात नै- पढ़ै तेॅ छै।कुल-खानदानोॅ के नाम करतै। दस-बीस हजार घूस दै करी केॅ नौकरी लगाय देतियां।यहाँ तेॅ आबेॅ फस्टॉे डिवीजन वाला तक केॅ नै पूछै छै। चपरासी के नौकरी लेली देवतॉे तरसै छै। 

वें आपनोॅ समय केॅ याद करै छै-तबेॅ की परीक्षा में नकलोॅ तक होय छेलै ?कोय्योॅ जानै तांय नै छेलै। रात-रात भरी लड़का पढ़ै छेलै। ओŸाॉे कड़ाई पर फस्टे ऐलोॅ छेलै दमयन्ती। बाबूजी चाहतियै तेॅ वही समय नौकरी लागी जैतियै।बेटी जानी केॅ ससुराल के माथा पर थोपी देलकै। ससुर नें भी मनोॅ सें नै चाहलकै। ऊ समय एŸोॅ भीड़ तेॅ छेलै नै। आसानिये सें होय जैतियै। आयकोॅ पढ़ैवॉे केॅ दमयन्ती फालतूवे समझै छै- पढ़ुआ में कोय लूरे- ज्ञान नै।नै तेॅ बोलै-बाजै के आरोॅ नै तेॅ उठै-बैठै के। एकदम अछरकटुआ। यहेॅ हमरी मुन्नी, नकल करियोॅ केॅ सेकेन्ड ऐलै। बच्चा पढ़ै लेॅ ही नै चाहै छै- हेनोॅ वक्त पर दमयन्ती केॅ एक पिहानी याद आबी जाय छै-‘मुरूखें करेॅ हरान, अछरकटुआ मारेॅ जान’......करमनासी केॅ पढ़ैन्है काल भै गेलै। मुरूख रहतियै 

तेॅ कामोॅ करतियै।देहोॅ में मांटी तेॅ लगैतियै।फैंकड़ा-पिहानी तेॅ नै पढ़तियै। 

दमयन्ती आपनोॅ विचारोॅ केॅ केन्हौं केॅ नै रोकेॅ पारी रहलोॅ छै। सोचै छै-पैसा होय जाय तेॅ कल्हे विदाय करी दियै। ई कमकोढ़िन लेली तेॅ घरोवार अच्छै ढूॅंड़ेॅ लेॅ लगेॅ, नै तेॅ सब्भे दिन लाते खैतेॅ रहतै।...... मतरकि केना करियै जल्दी-जल्दी बिहा ? पैसोॅ तेॅ ओतना नै छै। ई वकीली नौकरी सें तेॅ नोनॉे तेल चलना मुश्किल छै।आमदनी की होतै-खाक।मड़ुआ सें दोबर तेॅ वकीलेॅ छै।एक मोकील पर चार-चार वकील।दू-चार टका लेली पिल्लु जेहनोॅ खजबज करतें रहै छै, लिखला-पढ़ला के बादोॅ। 

तभिये जरैहनी गंध सें दमयन्ती चौकी उठै छै। तियांन लागी गेलोॅ छेलै। चूल्हा सें नीचें तियौन उतारतेॅ ओकरोॅ आँख लाल- लाल दहकतें कोयला के आगोॅ पर पड़ै छै। वें एकटक ऊ आग केॅ देखेॅ लागै छै। ओकरा लागै छै कि ऊ लहकलोॅ आगिन ओकरोॅ देहोॅ केॅ जलैतें होलेॅ करेजा के भीतर पेट तांय समैलोॅ चललोॅ जाय रहलोॅ छै। 

ढक्कन सें ढॅंक्लोॅ भात कहीं गीला नै हो जाय, से वें वहेॅ अनमनोॅ भावोॅ सें भातोॅ केॅ झोलै छै,फेरू लोहा के छड़ोॅ सें कोयला के आगिन केॅ नीचेॅ गिराबेॅ लागै छै ताकि ओकरा ठंडा पानी सें बुझाय केॅ दोसरोॅ बार फेनू सें काम में लेलोॅ जाबेॅ सकेॅ।तभिये छन-छन के आवाजोॅ सें ओकरोॅ धियान फेरू एकबार टूटी जाय छै। तियोंन काटै वखती जे औंगरी कटी गेलोॅ छैलै वही सें खून के बूॅंद टप- टप गिरेॅ लागलोॅ छेलै। शायद भात झोलला के कारणें ऊ कटलोॅ औंगरी पर कुछु जादा बल पड़ी गेलोॅ छेलै आरोॅ वही सें खून के रिसना फेरू शुरू होय गेलोॅ छेलै।सच तेॅ यहेॅ छेलै कि वहेॅ खून के जलै सें होय वाली छिछयैनी गंध सें दमयन्ती के धियान भंग होय गेलोॅ छेलै। 

वें हड़बड़ाय केॅ भात दिस देखै छै। लाल-लाल लहू के बूंदोॅ सें तब तांय सब भातेॅ लाल-लाल बनी गेलोॅ छेलै। खून के रिसाव केॅ बन्द करै लेली वें आपनोॅ दोसरोॅ हाथ केॅ औंगरी सें ओकरा दबैतें हुवेॅ कराही उठै छै। कि तभिये ओकरोॅ मोॅन एकबारगिये बहियार दिशा दौड़ी जाय छै जहाँ सें अभियॉे तांय ओकरोॅ पति नै लौटलोॅ छै। आरोॅ जेकर्है लेली वें एत्तेॅ तन-मन सें खाना बनाय रहली छेलै-आबेॅ हुनी की आरोॅ केना खैतै ?-सोचथैं,दमयन्ती के माथोॅ घुमें लागै छै आरॉे वहेॅ चिन्ता में दुनों हाथोॅ सें आपनोॅ माथोॅ पकड़ी के एकबार फेरू ऊ दुख के समुन्दर में डूबी जाय छै। 


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संपर्क : 
अनिरुद्ध प्रसाद विमल 
संपादक : समय/अंगधात्री समय साहित्य सम्मेलन, 
पुनसिया, बाँका, बिहार-813109. मोबाईल : 9934468342.

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