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Wednesday, August 5, 2020

करवट | Angika Kahani | अंगिका कहानी | अनिरुद्ध प्रसाद विमल | Karvat | Angika Story | Aniruddh Prasad Vimal

करवट | अंगिका कहानी | अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Karvat |  Angika Kahani |  Aniruddh Prasad Vimal



मझौनी रोड पर बाराटीकर पार होला के बाद जे ढलान छै,ओकरोॅ ठीक नीचें जीतनगर जेठौर पहाड़ोॅ के गोदी में कादरोॅ के एक बस्ती बसलोॅ छै।घरॉे के गिनती बीस-पच्चीस सें जादा नै होतै। गाँँव सें एकदम अलग। शायद गरीबी हिनका सिनी केॅ खुल्ले हाथोॅ मिललोॅ छै। खुललोॅ देह, नंग- धड़ंग।माघोॅ-पूसोॅ के भीषन जाड़ा में हिनकोॅ बच्चा सिनी आपनोॅ दोनों हाथ के मुट्ठी कांखी में दबैलेॅ तड़के सूरज उगै के पहिले दौड़ी पड़ै छै।आखिर दिशा मैदान भी तेॅ करनै छै। चारो तरफ बसबेरी। पछिया बयार । सांय- सांय रोॅ आवाज।माघ जाय पर छै।सरसों के फूल, पीरोॅ-पीरोॅ दूर बहियारी तांय फैललोॅ होलोॅ,झूमी-झमी केॅ मानोॅ फागुनोॅ केॅ बोलावा भेजी रहलोॅ छै। सूरज आधोॅ बाँँस ऊपर चढ़ी ऐलोॅ छै। गुल्ली खेलतें-झगड़तें बच्चा रोॅ शोर। तखनिये रमुआ के घोॅर में हल्ला होलै। जोर-जोर सें आवाज आबेॅ लागलै। कानै-गरजै के मिललोॅ-जुललोॅ स्वर एक साथ उभरलै।बच्चा-बूढ़ोॅ, औरत, मरद सब्भे दौड़ी पड़लै।

मांटी के छोटोॅ-छेटोॅ दीवारोॅ पर फूसोॅ रोॅ छौनी। टुटलोॅ ठाट- बांस। मुन्हां उजड़लोॅ। कै जगह सें ढ़हलोॅ दीवारोॅ केॅ फानी केॅ लोगोॅ नें रमुआ के ऐंगनोॅ भरी देलेॅ छै। रमुआ नें अभी-अभी आपनों घरवाली केॅ मारलेॅ छै। सोनमा गाली रोॅ बौछार करी रहलोॅ छै- ‘‘करमनासा, तोरा देहोॅ में कोढ़ी फूटौ। मारै वाला तोरोॅ हाथ लुल्होॅ होय जाव। रंगधारी बाबा खून बोकरबाय केॅ तोरोॅ जान लै लौं’’ सोनमा कानै भी छै आरू गारियॉे बकी रहलोॅ छै।

रमुआ रही-रही केॅ उफनै छै। तेज सांस चलला सें ओकरोॅ सांस बांसवन के सिसकारी रं बजेॅ लागै छै। वें बार- बार ओकरा गाली बक्कै सें मना करै छै। मतरकि सोनमा छै कि चुप रहै के नामे नै लै छै- ‘‘कमकोढ़ी कहांकारोॅ।’’ कमाय केॅ भरी पेट खिलाय के रग नै आरू मार रोज उठौना। देर रात केॅ मालिकोॅ के काम करी केॅ ऐतौं आरू रातभर फ्रों-फ्रों करी केॅ सुततौं ई बूढ़ा खूंसट। भियान होथैं बासी भात खाय लेॅ खोजतौं। चौॅर जबेॅ लानी के देबै नै करतै तेॅ बासी भात की हम्में भुखलोॅ रही केॅ देबै’’।

रमुआ मालिकोॅ के होॅर जोतै वाला पैना हाथोॅ में उठैनें सोनमा के ओर फानै छै। तभिये बटेसर लपकी केॅ ओकरोॅ हाथ पकड़ी लै छै-‘‘नै मार रमुआ एकरा। तोरोॅ घरोॅ में रोजे यहेॅ रं झगड़ा होय छौं। जनाना छेकै, कोय जानवर तेॅ नै, कि जबेॅ चाहोॅ तबेॅ लाठी लै केॅ पिली पड़ोॅ’’।

बटेसर कादर टोला के मुख्य आदमी छेकै। पंच परधान, कोय ओकरोॅ बात नै उठावै छै।वें जे फैसला करी दै छै,की मजाल कि कोय टस-मस करी लियेॅ। रमुआ पैनोॅ एक कोना में फेंकी केॅ उच्चोॅ आवाजोॅ में बटेसर केॅ सखियारै छै- ‘‘हम्में तेॅ रूकी गेलियै चाचा। जनानी होय केॅ ई कहिया रूकतै ? एकरोॅ बदजाती नै देखै छौं ? केना टपाटप हमरोॅ कुल- खानदानोॅ केॅ खैलेॅ जाय रहलोॅ छै। यहेॅ हाल रहलै तेॅ हम्में एक दिन एकरोॅ गल्लोॅ टीपी देबै, हों’’।

‘‘तहूॅं एकरा बड्डी मारै छैं रमुआ।ई रं घरोॅ केॅ नै चलैलोॅ जाय छै।मरद होय केॅ तोंय अकबकैभैं तेॅ काम केनां चलतौं’’।बटेसर ई कहतें हुवें रमुआ केॅ अपना साथें लैकेॅ बाहर निकली गेलै।

सोनमा एैंगन्है सें गरजी केॅ बोललै- ‘‘बटेसर काका ! हमरोॅ गुजारा यै मरद के साथें नै होतै। हमरोॅ हिसाब- किताब अलग करी देॅ। ई हमरोॅ कोय नै। माय नै रहलै, बाप मरी गेलै, नैहर उजड़ी गेलै, तेॅ यैं सोचै छै कि हम्में कहॉं जैबै ? के जग्घोॅ देतै हमरा? निःसहाय जानी केॅ यैं हमरा सताय छै’’।.........आरो सोनमा कहतें-कहतें कानेॅ लागलै।जार-बेजार। ढाढ़ मारी- मारी केॅ। ओकरोॅ कानबोॅ आसमान छुवेॅ लागलै।

बटेसरें रमुआ केॅ आपनोॅ घोॅर लै आनलकै। भींजला नरूआ पर बैठैतें बटेसरें कहलकै- ‘‘परेम-उरेम कुच्छु समझैं छैं रमुआ ?परेम बड्डी खराब च्ीज होय छै। यें आदमी केॅ अंधा बनाय दै छै। तोरोॅ जनानी तोरा सें नै जीतना सें परेम करै छौ।तोंय ओकरा जानोॅ सें मारी देभैं,तहियो वें जीतना केॅ नैं छोड़तौ’’।

रमुआ ई सुनतैं सुन्न होय गेलै। अब तांय वें यहेॅ समझी रहलोॅ छेलै कि बस्ती में यै बारें में कोय नै जानै छै। वें तेॅ ई बातोॅ केॅ जानियो केॅ साल भरी सें पचैनें होलोॅ छेलै।सोनमा केॅ समझाय-बुझाय केॅ जबेॅ ऊ थक्की गेलै, तबेॅ हिन्नें महिना भरी सें मारना-डँगाना शुरू करनें छै-‘‘जीतन्है जोॅड़ छेकै एकरोॅ। वें हमरोॅ घोॅर बरबाद करी देलकोॅ’’। सोचतें-सोचतें रमुआ के गल्लोॅ भरी ऐलै।

‘‘की लागलोॅ छै ? तोंय छोड़ी कैन्हें नी दै छैं यै जनानी केॅ’’।

‘‘केना छोड़ी दियै काका।बड़ी मुश्किल सें औरत मिललोॅ छै हमरा।

चार-पॉंच साल तांय भटकलोॅ छियै। भिनसरबेॅ गेलोॅ जबेॅ रात केॅ आठ-नौ बजेॅ तांय मालिकोॅ के काम करी केॅ घोॅर लौटै छियै तेॅ ओकरोॅ छूला भर सें सब्भे थकौनी मिटी जाय छै। गोड़ोॅ- हाथोॅ में तेल दै वाली भी तेॅ होना चाहियोॅॅ’’।

‘‘तोरा याद छौ, ई तोरोॅ दोसरी जनानी छेकौ। एकरा सें पहिनें लगभग जीतनै सें बात तय होलोॅ छेलै। मतरकि तोरोॅ मालिक दबंग छेलौ।हुनके किरपा सें ई बियाह होलौं...।आरो तोंय मालिकोॅ के यही किरपा के कारण देर रात तांय हुनकोॅ द्वारी पर खटै छैं। सोनमा केॅ समय चाहियोॅ आरो तोरा समय नै छौं। जों तोहें घरोॅ में समय देभैं तेॅ पेट नै भरतौं। उमर होलौ। आबेॅ कŸोॅ खटभैं’’। बटेसर के अनुभव बोली रहलोॅ छेलै। रमुआ सब समझी केॅ भी चुप छेलै । कुछु थोड़ोॅ देर बाद वें जुबान खोललकै-‘‘हम्में जीतना पर केश करबै काका, तोरा पंचैती करै लेॅ पड़थौं’’।

काका केॅ माथा में ई बात बिजली नांखी चमकलै- ‘‘औरत मरद के सबसें बड़ोॅ कमजोरो होय छै। ’’ रमुआ ओकरा कोय्यो हालतोॅ में नैं छोड़तै। आरो रमुआ कोय हेना-होना नै, सोनमा के बापोॅ केॅ नकदी दैकेॅ आनलेॅ छै। मालिक सें लै केॅ पूरे- पूरी पांच सौ देनें छै। ठट्ठा नै छेकै कि छोड़ी केॅ चल्ली जैतै।

अबेर होय रहलोॅ छेलै। रमुओ केॅ काम पर जाना छेलै। बटेसरें ओकरा समझैलकै- ‘‘देख भाय ! समझ सें काम लेॅ। तोंय कामोॅ पर जो। हम्में जीतना केॅ समझैबै।’’

रमुआ जबेॅ घोॅर ऐलै तेॅ वातावरण शान्त होय चुकलोॅ छेलै। सोनमा माथा पर हाथ धरनें ऐंगना के धूप्है में पुआल पर पसरली छेलै। रमुआ के मोॅन टोकै के होलै मतुर टोकेॅ नै सकलकै।पैना हाथोॅ में लेलकै आरो मालिकोॅ के यहॉं काम लेली चली देलकै।सोनमा हिन्नें जीतना के यादोॅ में डूबी गेलै जबेॅ दिल दुखै छै, हिरदय केॅ ठेंस लागै छै तेॅ जे बहुत करीब होय छै, ओकरे याद मनोॅ केॅ तसल्ली दै छै। सोनमा जीतना में समाय गेलै। आबेॅ सिरिफ जीतना आरो ऊ छेलै। कांही कुछ नै छेलै। जीतना में ऊ छेलै आरो ओकरा में जीतना। ओकरोॅ अणु-अणु जीतनमय होय गेलै।

......ओकरा याद एैलै, जबेॅ ऊ नई-नई यै बस्ती में ऐली छेलै। यहेॅ दू- तीन बरस पहिलकोॅ बात छेकै। साथें वहॉे छेलै। जीतना हँसी केॅ ही कहनें छेलै-‘‘रामो भाय जी, संभारी केॅ राखिहौ। कहीं हम्में लैकेॅ भागी नै जहियौं।... कनियाय तोरोॅ भौजी हमरी। आधोॅ हिस्सा तेॅ बिना पूछले’’। आरो बुतरू सिनी हुलासोॅ सें भरलोॅ गावॅे लागलोॅ छेलै-

कनियाय-मनिमाय झींगा-झोर,

कनियाय माय केॅॅॅॅॅॅॅ लै गेलै चोर।

गाँव-टोला के रिवाजोॅ सें ऊ भौजी लागतियै। हेनै केॅ हँसी में कहि गेलोॅ छेलै जीतना।मतरकि सुगबुगाय गेली छेलै सोनमा।धक् सें करी उठलोॅ छेलै ओकरोॅ जी। बिŸा भरी घोघोॅ सें झांकी केॅ वें देखनें छेलै जीतना केॅ। जीतना के आंखी में कुछ एन्हे छेलै, जे ओकरा अच्छा लागलोॅ छेलै। कहाँ

नाटोॅ,थुलथुल, गिरतें उमर के रमुआ आरो कहाँ लम्बा,पातरोॅ छवारिक नाँखी, खिलखिल करतें जीतना।

धीरें-धीरें वें जीतना केॅ चिन्ही गेलोॅ छेलै।यहेॅ ओकरोॅ जीतना छेलै। एकरहै सें ओकरोॅ बियाह होय के बात तय होलोॅ छेलै। गरीब बापें पैसा के लोभोॅ में बेची देनें छेलै ओकरा। आरो तबेॅ मन्हैमन वें जीतना केॅ चाहेॅ लागलोॅ छेलै। एक दिन दुकानी सें एैतें जीतना ओकरा टोकी देलेॅ छेलै-‘‘तोही हमरी कनियाय होय वाली छेलौं नी। बोलोॅ आभियों बनभौ’’। सुनथैं ओकरोॅ कनपट्टी गरमाय गेलों छेलै आरो ऊ ‘‘धत्’’कही केॅ भागी गेली छेलै।

............. कि हठाते सोनमा के दिल-दिमागोॅ पर एक-एक करी केॅ ऊ सब प्रेमोॅ के क्षण नांची गेलोॅ छेलै.......ठीक तीन-चार महिना बाद जीतना एक रोज ओकरोॅ घोॅर ऐलोॅ छेलै।धरोॅ में कोय नै छेलै। ओकरा संभलै के मौका देनें बिना जीतना ओकरा आपनोॅ मजबूत बांही में भरी लेनें छेलै आरो तहिया सें लै केॅ आय तांय सोनमा ओकरोॅ मजबूत बांही सें अपना-आप केॅ मुक्त नै करेॅ पारलोॅ छेलै। उ रमुआ के बांही में होय केॅ भी नै हुवे पारै छै।

जीतना नगीचे के एक सरकारी फारम में मजूरी करै लेॅ जाय छै। आठ बजे दिन सें लै केॅ पांच बजे साँझ तांय। बस्ती पहुॅंसतें- पहुॅंचतें जाड़ा के दिनोॅ में सुरूज डूबी जाय छै।गरमी में तेॅ बांस भरी सुरूजोॅ के रहतैं ऊ आबी जाय छै।ऊ फारम सें सीधा बस्ती खाली सोनमा लेली आबै छै, कैन्हेॅ कि यहेॅ एकदम सुन्नोॅ आरो खाली समय होय छै। यै बेरियां रमुआ आपनोॅ मालिक के काम पर होय छै।

ऊ दिन ऐन्हैं ऊ सोनमा ठियां ऐलै। ओकरा देहोॅ पर पियार सें आपनोॅ होथ राखी केॅ कहलकै-‘‘सोनमा, चलोॅ उठोॅ। मुंह-हाथ धोय लेॅ।

देखोॅ, आय हम्में तोरा लेली की आनलेॅ छियौं।’’ ई कहि जिलेबी के दोना सोनमा केॅ थमाय,ऊ आपनोॅ घरोॅ दिशा चललोॅ गेलै।सोनमा ऊ दिन सचमुचे में भोरे सें भुखली छेलै। वें बिना कुछ सोचलें पहिलें जिलेबी केॅ आपनोॅ मुँहोॅ में एक- एक करी केॅ डालना शुरू करलकै। जिलेबी पेटोॅ में पहुँचतैं सोनमा तरोताजा होय गेलै। अन्हार हुवेॅ लागलोॅ छेलै।ओकरा ई पता छेलै कि आय रमुआ जल्दिये घोॅर ऐतै आरो ऊ ऐबोॅ करलै।खाय के सामान घरोॅ में पटकी ऊ पंच-परधान बटेसर के घरोॅ हिन्नें चल्लोॅ गेलै। आरो सोनमा भंसा- भात बनाय में अनमना सें रोजाना नॉंखी जुटी गेलै, कैन्हेॅ कि नैं बनाय के मतलब छेलै, बिना कोय कारणें झगड़ा, गाली आरोॅ मार खाना।

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रात में पंचायत बैठलै। बटेसर काका के घरोॅ के आगू पुरनका आमोॅ गाछी के नीचेॅ बनलोॅ गड्ढा में आगिन सुलगैलोॅ गेलै। लाल टह-टह आगिन केॅ घेरी सब्भे बैठलै। बातच्ीत हुवेॅ लागलै। सबटा आरोप जीतना पर छेलै। गाछ के पतला छोटोॅ रं फेड़ी सें रोशनी लटकाय देलोॅ गेलोॅ छेलै।केकरोॅ घरवाली केॅ फुसलाय केॅ प्रेम करबोॅ की कम बड़ोॅ अपराध छेलै ?......ई पंचैती छेलै।सब्भेॅ आपनोॅ समझोॅ सें बोली रहलोॅ छेलै। पंचैती के आड़ोॅ में सब्भें केॅ खुली केॅ बोलै के मौका मिली गेलोॅ छेलै। वैसें जीतना के दबंगपना के सामना केकरौ कुछु बोलै के हिम्मत नै होय छेलै। आय सब्भैं आपनोॅ भड़ास निकाली रहलोॅ छेलै। सबसें बादोॅ में जीतना केॅ बोलै के मौका देलोॅ गेलै-‘‘आपनें बस्तीवाला सिनी केॅ पहिलें तेॅ दू परेमी बीचोॅ में पड़न्हैं नै चाहियोॅ। कोय्यो औरत जोरू होय के पहिलेॅ सिरिफ औरत होय छै। ओकरा हांसै-बोलै, प्यार करै के हक छै।सब्भे सें पहिलें आपनें सिनी केॅ वहीं चेतना चाहियोॅ जहॉं पैसा के ताकतोॅ पर कोय बापें आपनोॅ बेटी केॅ ज्यादा उमर के लड़का सें बियाह करै छै......सोनमा हमरा चाहै छै। हमरा सें प्यार करै छै। हम्में दोनों आपसोॅ में मिलतौं छियै।...... तेॅ फेरू की कहियौं ? सोनमा हमरा दै देलोॅ जाय। हम्में पंच भाय के बीचोॅ में सोनमा सें बियाह करी केॅ घोॅर लै जाय के वचन दै छियौं’’।

सुनथैं, बटेसर गोस्सा में लाल होतें बोललै-‘‘तोंय नाजायज बोली रहलोॅ छैं। ई पंचोॅ के अपमान होय रहलोॅ छै’’।

‘‘पंचोॅ के अपमान केनां भाय ?की अपना जात-विरादरी में ऐन्होॅ नै होय छै।बटेसर मुखिया जी के बेटी मंतो ने दू घोॅर छोड़लकै। दू-दू बियाह केॅ ठुकरैलकै आरो यहेॅ पौरकां साल तेसरोॅ शादी करलकै। गॉंव एन्होॅ शादी सें भरलोॅ पड़लोॅ छै आरो हमरा कहै छोॅ कि बड़का अपराध होय गेलै। के- के चिकनोॅ छै ? केकरा घरोॅ में की होय छै, के नै जानै छै ? जीतना के आवाजोॅ में गोस्सा आरो प्रार्थना दोनों भावोॅ के मिश्रण होय गेलोॅ छेलै।

जीतना केॅ बोलतै देखी केॅ समरा बोललै-‘‘ई पंचैती एक दोसरा पर कोचड़ उछालै लेली नै,तोरा आरो सोनमा के संबंधोॅ केॅ लैकेॅ होय रहलोॅ छै। हम्में सब्भें एकमतोॅ सें निर्णय लै छियै कि तोंय ई बस्ती छोड़ी केॅ चल्लोॅ जो। तोंय रमुआ के घरवाली केॅ......’’।......

......कि तभिये सोनमा बिफरलै। पंचायत में बैठलोॅ सब्भे के धियान ओकरा तरफ गेलै।सोनमा टनटनाय उठली छेलै-‘‘समरा की बोलतै! बोलतैं लाज लगना चाहियोॅ। अबकिये साल तेॅ ऐकरोॅ भौजांय दोसरोॅ बियाह करनें छै।......आरो महिनोॅ नै बीतलै कि एकरोॅ भाइयोॅ ......। फेरू यें हमरा की कहै छै ?दोसरा पर चोट करै में आदमी यहेॅ रं खुश होय छै। पहिलें आपनोॅ मुँह तेॅ देखी लेना चाहियोॅ’’।

एतनां सुनथैं समरा बमकी उठलै। मार-पीट के नौबत आबी गेलोॅ छेलै।हल्ला-गुल्ला मची गेलोॅ छेलै। केन्हौं केॅ मामला बटेसर काका सभालेनें छेलै।शांति होथैं पंच- परधानें फेरू सें सोनमा केॅ बोलै के मौका देलेॅ छेलै। ई दाफी सोनमा ने शांत आरो विनम्र भाव सें कहना शुरू करलेॅ छेलै-‘‘हम्में जीतना के साथें आपनोॅ शेष बचलोॅ जिनगी गुजारै लेॅ चाहै छियै,एकरे प्रार्थना हम्में पंचोॅ सें करै छियै। हम्में सच कहै छियै कि हम्में अब तांय बीसॉे बार मनेमन रमुआ के हत्या करलेॅ होबै। हमरा ई पापोॅ सें बचावोॅ। हम्में विहानैं बटेसर काका सें कहि देनें छियै कि यै मरदोॅ के साथें आबेॅ हम्में नै रहबै। तबेॅ फेरू जोर-जबरदस्ती पर आपनें सिनी कैन्हें उतरी गेलोॅ छियै’’ ?

आखिर में बटेसर काकां फैसला सुनैलेॅ छेलै-‘‘ई फैसला आदमी के वशोॅ के नै। देवता करतै। फुलैस होतै, तेॅ सोनमा केॅ गोसांय रंगाधारी के सीधे स्वीकृति मिली जैतै। फुलैस नै होला पर ओकरा रमुआ के साथें रहै लेॅ पड़तै। अन्तिम फैसला हुवै तांय सोनमा हमरोॅ सुरक्षा में हमरोॅ घरोॅ पर रहतै’’।

तेसरोॅ दिन सोमवार पड़ै छेलै। वहेॅ रोजे फुलैस होतियै।रात बहुत होय गेलोॅ छेलै।ठार बरसेॅ लागलोॅ छेलै।सब्भे आपनोॅ घरोॅ दिशा तेजी सें जाबेॅ लागलोॅ छेलै। हिन्नेॅ सोनमा नें रात वहेॅ रॅं काटलेॅ छेलै, जेनां नदी किनारा में कोय पियासलोॅ। दिन भरी तेॅ ऊ केन्हौं केॅ रहलोॅ छेलै। रात ऐलै। रमुआ यै बीचोॅ

में एक दाफी ऐलै। जीतनौं अगले-बगल मंडरैतें रहलोॅ छेलै। तबेॅ बटेसर नें दोनों केॅ समझैलेॅ छेलै कि एक रोजोॅ के तेॅ सवाल छै। आबेॅ गोसांय देवता के इच्छा पर भरोसा करना चाहियोॅ। आबै-जाबै या बतियाबै के छूट दूनों में सें केकरौ नै मिलतौ’’। धीरें-धीरें गाँव शान्त होय गेलोॅ छेलै।

निशि-भग रात। रात के शांति खाली कुŸा केॅ भुकबा सें भंग होय रहलोॅ छेलै। लाचार सोनमा बाहर आबी गेलोॅ छेलै। रात गदराय गेलोॅ छेलै। चाँदनी बाँसोॅ के झुरमुटोॅ सें कनखी के भाषा में समझाय रहलोॅ छेलै।ओकरोॅ मोॅन होय रहलोॅ छेलै कि ऊ सरपट दौड़ी जाय आरो दौड़लिये चलली जाय जीतना के घरोॅ तांय।घरोॅ के पछियारी कोना में खाड़ी वें सोची रहलोॅ छेलै-दीदी के सुनैलोॅ परी आरो जादूगरनी के किस्सा कि केनां लागी जाय छेलै ओकरा पांख आरो ऊ उड़ेॅ लागै छेलै सरंगोॅ में।

.........आरो सच्चे ऊ उड़ेॅ लागली छेलै। घरोॅ में सब्भे सुतलोॅ छेलै। ओकरा फरांकत मिली गेलै। जीतना के द्वारी पर दस्तक भेलोॅ छेलै। जीतनोॅ नै सुतेॅ सकलोॅ छेलै।दुनों एक दोसरा सें वहेॅ रॅं मिललै जेनां जनम- जनम के बिछुड़लोॅ मिलतें रहेॅ। गूॅथी गेलोॅ छेलै दोनों एक दोसरा सें। थोड़ोॅ देरी के बादोॅ में सोनमा नें हिदायत सें भरलोॅ आवाजोॅ में कहलेॅ छेलै-‘‘ देखियोॅ, हिम्मत नै हारियोॅ। हमरा कोय भी अलग नै करेॅ पारेॅ। तोंय मरद छेकौ नी।तोहरै पर सोनमा छै’’।स्वीकृति में जीतना सोनमा केॅ आरो मजबूती सें बांही में कस्सी लेलेॅ छेलै।

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आखिरसोॅ में फुलैस होय के दिन भी ऐलै। सांझैं सें तैयारी शुरू होय गेलै। गोसांय के पिंडा मांटी सें नीपलोॅ गेलै। अखरोॅ गोबरोॅ के चौका पड़लै। धूप जलैलोॅ गेलै। अरबा चौॅर केॅ कुटलोॅ गेलै। आबेॅ फुलैस राखै के तैयारी हुवेॅ लागलै। जनानी सिनी मिली-मिली गीत गाबेॅ लागलै। झांझर, मांझ पर अलाप शुरू होलै आरो ढोलकोॅ पर थाप पड़ेॅ लागलै। ढाक्-ढाक् ढक् धिना-धिना। झालौं साथ देलकै। थप्- थप् टन् टनाटन टन्। कादरोॅ के गीत बेसुधी में थिरकेॅ लागलै।

बाँया तरफ एक ओरी में सोनमा बैठली छै। दूतरफा अन्दाजोॅ में जीतना आरो रमुआ।‘रंगाधारी बाबा की जय’ के आवाजोॅ सें वातावरण गूंजेॅ लागलै। सोनमा, रमुआ आरो जीतना तीनों लगातार बाबा नामोॅ केॅ सुमरी रहलोॅ छेलै।

‘‘जय हो गोसांय बाबा, पत राखिहोॅ ई भिखारिन के’’ मनेंमन सोनमो कहलकै।

गीत जोर-जोर सें गूँजी रहलोॅ छेलै-‘‘पछियें से ऐतै रंगाधारी बाबा,देर न करिहोॅ आहो गोसांय बाबा। देही में नाम्हतै, जगता के तारतै, होवे जे करतै फुलैस हे सजनी......।’’

शनिचरा कादर पर गोसांय नाम्हतै। ऊ नहाय-धोय केॅ वै ठिठुरतें ठंडोॅ में भींगलोॅ कपड़ा में बैठलोॅ छै। चारॉे तरफ लोगोॅ के भीड़ छै। सब्भैं आचरजोॅ सें देखी रहलोॅ छै। आभी तांय शनिचरा देहोॅ पर गोसांय कैन्हैं नी ऐलोॅ छै।तखनिये शनिचरा के देहोॅ में थिरकन ऐलै।ऊ झूमेॅ लागलै। मांटी पर लोटेॅ लागलै। ओकरोॅ देह ऐंठेॅ लागलै। जी बिŸा भर अकड़ी केॅ बाहर निकली ऐलै।झांझ, मादल आरो जोरोॅ सें बाजेॅ लागलै। फुलैस होय के भरोसा में सब्भे करेजोॅ थामी केॅ बैठलोॅ छै। मतुर ई की ? घंटा भर अरदासोॅ के बादॉे फुलैस होय के नाम नै लै छै। भीड़ोॅ में तरह-तरह के बात हुवेॅ लागलोॅ छै। सोनमा आरो जीतना सुन्न होलोॅ जाय रहलोॅ छै। निराश दुन्होॅ के माथा के रेखा तनी गेलोॅ छै। मतरकि रमुआ के चेहरा खिली गेलोॅ छै।

शनिचरा के देहोॅ पर ऐलोॅ गोसांय के आगू में बटेसर अरदास होय छै। करूणा सें ओकरोॅ ठोर थरथराय उठै छै-‘हुकुम देॅ बाबा। हमरा रास्ता नै मिली रहलोॅ छै। सोनमा...’’ ? वाक्य पूरा होय के पहिलें शनिचरा जोरोॅ सें चीखै छै- ‘‘देखै नै छैं। फुलैस नै होलै। सोनमा केॅ रमुआ के साथैं रहना छै’’।

............... कि तमतमैली तखनिये सोनमा उठलै। बगलोॅ सें एक ठो बड़ोॅ नॉंखी चेपोॅ उठैलकै आरो फुलैस पर दै मारलकै। फुलैस गिरी केॅ बिखरी गेलै आरो ऊ तमतमैलोॅ आवाजोॅ में बोललै-‘‘देखोॅ बटेसर काका, फुलैस होलै कि नै होलै, हम्में चललियौं जीतन के साथ। देखियै, हमरा के रोकै छै’’।

आरो ऊ जीतना केॅ लेन्हैं जीतना के घरोॅ दिशा चली देलकै। केकरहौ में अतना हिम्मत नै छेलै कि जीतना के साथें जैतें सोनमा केॅ रोकी लेॅ।


शुकरी | अंगिका कहानी संग्रह | अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Shukari | Angika Story Book| Aniruddh Prasad Vimal

  
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संपर्क : 
अनिरुद्ध प्रसाद विमल 
संपादक : समय/अंगधात्री समय साहित्य सम्मेलन, 
पुनसिया, बाँका, बिहार-813109. मोबाईल : 9934468342.

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