बैगन | अंगिका लघु कहानी | रामनंदन विकल
Baigan | Angika Kahani | Angika Short Story | Ramnandan Vikal
गौरिया अपनों बारी में बैंगन तोङी रहलो छेलै। रास्ता सें कारू ओझा जाय रहलो छेलै।
गौरिया के बैगन तोङतें देखी कें कहलकै-बैगन तोङै छै रे? गौरिया कहलकै-हों चाचा ।
कारू ओझा परछत्ती के पारो सें अपनों गमछी फेंकी देलकै आरो कहलकै- पहलो फोर ब्रामण कें दान ।
गमछी में बाॅध बाॅध।
गौरिया कहलकै आय ते पहलो दाफी तोङी रहलो छी ।
घरो में तरकारी नै छै हम्मं नै देभौ ।
कारू ओझा कहलकै- श्राप दे देभौ रे गौरिया नाश होय जैबै रे ।
कारू ओझा केरो बात सुनतें -सुनतें गौरिया केरो माय पिछवाङी रास्ता सें बारी में घुसतें होलैं बोललै- के छै के छै हमरो बेटा केंश्राप
दैवाला? कारू ओझा कें देखो के कहलकै- तोहं।
कंटाहा ब्राह्मण । यहाँ की कोय मरलो छै जै तोरा दान देभौं आरो कारू ओझा केरो गमछी उठाय कें परछत्ती सें बाहर फेंकी देलकै । गमछी केरो आधो हिस्सा नल्ली में गिरी गेलै। सन-सन पिल्लू गमछी में लटपटाय गेलै ।
गौरिया माय भनभनैतें रहली आरो बैगन तोङै लागली ।
कारू ओझा गमछी केरो दोसरो कोना पकङलें एक-ले-दू-ले-तीन।
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