कजरी | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
हरि- हरि सावन में कजरिया खेले नइहरवा जेबे हो पियवा- 2
1- कारी कारी बदरिया, घिरी- घिरी ऐले, झमाझम बरसे बूंद मनमा हुलसे हो पियवा । हरि- हरि सावन में -----------
2- चारो ओर हरिअर - हरिअर जैसे लागे विछावल, मखमल खेत कियारी भरी गेले, दा पुर शब्द लागे सुहावन हो पियवा, हरि- हरि सावन में -------------
3- दादा से बड़का दादा ऐलऽ छथिन विदागररी करावे ।श्
डोलिया सजा दऽ ओहार लगा दा हरिअर चुन्दरी मंबादऽ होवियव हरि- हरि सावन में--------------
4- सखी सहेली सब देखते होती डगरिया -
बहिनपा ऐती सावन में कजरिया खेले हो पियवा ।
हरि- हरि सावन में कजरिया खेले नइहरवा जेबे हो पियवा ।
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