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Saturday, September 30, 2017

सफर | Angika Kahani | अंगिका कहानी | Safar | Angika Story । कुंदन अमिताभ | Kundan Amitabh

सफर | अंगिका कहानी | कुंदन अमिताभ
Safar | Angika Kahani | Angika Story | Kundan Amitabh


वू मई महीना केरौ अंतिम सप्ताह छेलै । सुशांत क अचानक ही काम के सिलसिला मँ मुंबई सँ दिल्ली जाय केरौ प्रोग्राम बनाय ल पड़ी गेलै । ऐना त वू फ्लाईट सँ जाबअ सकै छेलै । लेकिन चूँकि दिल्ली मँ अगला दिन दोपहर मँ मीटिंग छेलै, ई लेली  राजधानी एक्सप्रेस सँ  ही जाना उचित समझलकै । साँझ क चली क रात भर केरौ सफर तय करी क भोरे-भोर दिल्ली पहुँची क फ्रेश होय क मेट्रो सँ द्वारका मीटिंग अटैंड करै ल पहुँची जाना रहै । जहाँ कोनो जल्दबाजी नै हुअय वहाँ हवाई जहाज केरो मँहगा टिकट खरीदी क सफर करला के बजाय ट्रेन सँ सफर करना ओकरा हमेशा ही अच्छा लगै छै । राजधानी एक्सप्रेस केरौ वातानुकूलित बोगी मँ रातको नीन भी पूरा करै मँ कोय बाधा नै होय छै। जहाँ दू टका सँ काम चलअ पारै छै त वहाँ दस टका खर्च करला स की फायदा ?


स्टेशन लेली घोअर सँ निकलै घड़ियाँ ओकरौ कनिआञ नँ याद पारलकै, "ट्रेन मँ बैठी क फोन करिहौ ।"  "जरूर" कही क सुशांत लिफ्ट दन्नें बढ़ी गेलो छेलै । जबै तलक नीचें उतरलै, ड्राइवर नँ समान कार मँ राखी देनअ छेलै । स्टेशन लेली निकलै मँ कुछू देर नै होलै । एक-सवा घंटा केरो रस्ता तय करी क सी.एस.टी. रेलवे स्टेशन पहुँची गेलो रहै । ‘‘समान सिनी बर्थ के नीचें लगाय दहो’’ सुशांत नँ पानी केरो बोतल क खिड़की लगाँकरो ऑयरन हुक सँ लटकैतें हुअय ड्राइवर सँ कहलकै ।


ट्रेन खुलै मँ अखनी लगभग आधा घंटा छेलै । ड्राइवर समान धरी क चल्लौ गेलौ छेलै । सुशांत लेली साइड वाला निचलका आरक्षित बर्थ प एगो जनानी आरू मर्दाना पहिनै सँ बैठलो छेलै । आपस मँ गपियाय रहलो छेलै । सुशांत एक दाफी सोचलकै कि कहिय्यै कि वू दूनू अपनो बर्थ प चल्लौ जाय । फेरू ई सोची क वू रूकी गेलै कि एक बार ट्रेन चालू होय जाय त वें सब अपनो-अपनो जग्घौ खुद्दे पकड़ी लेतै ।


तब तलुक सामने वाला सीट प जग्घौ बनाय क बैठी रहलै । तनी देर बाद सुशांत केरो  मोन फेरू सँ अपनौ आरक्षित बर्थ प बैठलौ महिला दन्नै देखै के होलै । ओकरा अंदाजा छेलै कि सामने वाला सीट प दिक्कत सँ बैठतें देखी क दूनू जन ओकरौ आरक्षित बर्थ छोड़ी क अपनौ सीट पकड़ी लेतै । राजधानी एक्सप्रेस मँ चलै वाला यात्री एतना त शिष्टाचार बरतथैं छै कि दोसरा के आऱक्षित जग्घौ प जाय क नै बैठै छै । जों बैठै भी छै त जेकरौ सीट छेकै ओकरा सँ जरूर आग्रह करै छै कि वू भी बैठी जाय । सुशांत नँ सोझे नै देखी क सामने वाला दीवार प लगलौ आयना मँ देखलकै जहाँ साफ-साफ लौकी रहलौ छेलै कि दूनू जन आपस मँ बात करै मँ कोन हद तक व्यस्त छेलै । ऐन्हौ बुझैलै जेना वू दूनू क कोय फिकिर नै कि वू दोसरा के सीट प बैठलौ छै ।


सुशांत  कखनू कनखी सँ सोझे त कखनू सामने लगलौ आयना सँ लगातार वू दूनू क अचरज सँ निहारै मँ लगलौ छेलै । महिला केरौ सुंदरता मध्यम स्तर के छेलै । उमिर लगभग पैंतीस-चालीस साल के त जरूर होतै । जौरें बैठलौ मरदाना उल्टा ओकरा सँ तनी कम उमर के लेकिन हट्टा-कट्ठा नजर आबी रहलौ छेलै । महिला अपनौ आसपास के वातावरण सँ बेखबर बात करै मँ व्यस्त छेलै । पूरे बर्थ पर अलग-अलग तरह के तीन-चार ठो बैग आरू कोच अटेंडेंट द्वारा देलो दू गो लोकल अखबार केरौ प्रति परलौ छेलै । महिला एगो पत्रिका खोली क ओकरौ पन्ना के उपर मोबाईल रखी क ओकरौ बटन दबाय क लगातार कुछ मैसेज लिखै मँ व्यस्त रहै । साथें बैठलौ मरदाना सँ आय कॉन्टैक्ट बीच-बीच मँ लगातार बनैले रखी रहलौ छेलै ।


दूनू के बातचीत करै के अंदाज आरू भाव-भंगिमा सँ एतना त॑ साफ छेलै कि दूनू पति-पत्नी नै छेलै । हाँ, वैन्हौ बनै के नाटक करी रहलौ छेलै । सुशांत सोचलकै कि ई सब बातौ सँ ओकरा की लेना-देना । ई त महिला यात्री होय के चलतें सामने वाला क एडजस्ट होय के समय द रहलौ छेलै ।  बीच-बीच मँ आमने-सामने केरौ बर्थ प बैठलो सह यात्री सिनी सँ बातचीत करी क वू ई अंदाज लगाबै के कोशिश करी रहलौ छेलै कि आखिर ओकरो सीटो प॑ जमलो दूनू जनौ के कोन बर्थ होतै ।


तनी देर आरू बितलै । घमैलौ बदन एसी केरौ ठंडक पाबी क सामान्य होय गेलौ छेलै । लगलै अबअ अपनौ सीटो प जाय क सुस्ताना चाहिय्यौ । ई बीच वू कंपार्टमेंट मँ एगो आरू आरक्षित सवारी आबी गेलौ छेलै ।  कुली नँ समान सीटो के नीचें राखै लेली सुशांत क उठाय देनै छेलै । उठथैं सुशांत नँ एक बार फेरू अपनो बर्थ दन्ने वू लोगो क उचटलो नजर सँ देखलकै । दूनू एगो पत्रिका केरो पन्ना पलटै  मँ व्यस्त छेलै ।  अबअ  हर हालत मँ अपनो सीट पकड़ना छेलै ओकरा ।


जबै वू अपनो बर्थ दन्नें बढ़ै प छेलै , तभिये वू जनानी सथें बैठलो मरद उठी क वॉशरूम दन्नें बढ़ी गेलो रहै । सुशांत अबअ  महिला सँ संवाद स्थापित करी रहलो छेलै ।  महिला सँ संवाद करै के उद्देश्य सँ ओंय शालीनता सँ पूछलकै, ‘‘ऐक्सक्यूज मी मैडम, आपनै अपनौ सीट प चल्लौ जैईयै ?’’ महिला नँ  सपाट नजर सँ सुशांत क देखलकै ।  ऊच्चौ कद-काठी केरो व्यक्ति, गोरौ रंग आरू उन्नत ललाट , कुल मिलाय क आकार-प्रकार सँ संभ्रांत, सुशिक्षित पर स्वभाव मँ तनी टा सकुचाहट रखै वाला आदमी । महिला नँ बिना कुछ बोललें फेरू नजर नीचें करी लेलकै ।


महिला केरो ऐसनो आचरण सँ सुशांत के अचरज तनी टा आरू बढ़ी गेलो छेलै । दरअसल ट्रेन कंपार्टमेंट मँ घुसला के लगभग आधा घंटा बाद भी अपनौ आरक्षित बर्थ पर बैठै के कोशिश मँ हुनी पैलकै कि उक्त महिला नँ ओकरौ बात क जानी-बुझी क अनसुना करी देलै छेलै । सुशांत द्वारा महिला सँ हटै लेली दुबारा आग्रह करला प  कि हुनी त ओकरो बर्थ पर बैठलौ छै । महिला न ई तथ्य सँ अनजान रहै के नाटक करतें हुअय जबाब देलकै, " ई त  हमरो बर्थ छेकै ।"  जबअ सुशांत नँ सख्ती सँ कहलकै, “मैडम, ई बी-१० कोच छेकै आरू ई कोच केरौ ई बर्थ के टिकट हमरे नाम स॑ कंफर्मड् छै, ऐसनो हुअय नै सकै छै कि रेलवे द्वारा एक्के बर्थ पर दू जनो के टिकट कंफर्मड् करी देलो गेलौ हुअय ।


सुशांत अचानक सँ सख्त होय गेलो छेलै । बहुत बार लोगौ के नम्र व संभ्रात व्यवहार क ओकरो कमजोरी समझलो जाय छै आरू दोसरें ओकरौ नाजायज फायदा उठाबै के कोशिश करै छै । सुशांत क लगलै ओकरा सथें ऐसने होय रहलौ छै । ई लेली अचानक सँ ओंय सख्त रूख अपनाय लेलै छेलै । सुशांत केरौ विनम्र आग्रह क सख्तता मँ बदलतें देखी क महिला नँ आग्रह के लहजा मँ ओकरा स बात कहअ लागलै । कहअ लागलै, “हम्में दूनू एक्के सथें यात्रा करी रहलौ छियै, पर एगो टिकट ई कोच मँ आरू दोसरो बी-२ कोच मँ, पर कुली नँ गलती सँ दूनो के समान यहै बोगी मँ रखी देलकै । की आपनै बी-२ कोच के बर्थ पर चल्लौ जैबै ? ”


एक क्षण लेली त ओकरा वू महिला यात्री प ई बात लेली गुस्सा आबी रहलौ छेलै कि जानी बूझी क दोसरा के बर्थ प बैठी क वें फेरू ओकरा गलत कैन्हें बोली रहलौ छेलै कि ओकरा पता नै छै । सुशांत क ओकरा प॑ गुस्सा ई लेली भी आबी रहलौ छेलै कि ओकरो सीट प बैठी क ओकरे उपर रौब जमाबै के कोशिश मँ लगलो छेलै । औपचारिकता के नाते भी ओकरा लेली सीट छोड़ी क हटै के बजाय अपनो पुरूष मित्र के साथ ओकरे सीट प बैठी क बात करलें जाय रहलो छेलै । सुशांत  अपनो आरक्षित बर्थ प अपनऽ लेली बैठै के जग्घो बनाय करी केन्हौं क बैठी गेलो छेलै ।


एगो महिला केर सहुलियत क ध्यान मँ रखी क अखनी तलक सीट बदलै लेली वें सामंजस्य बैठाबै ल जे विचार करी रहलो छेलै, अचानक सँ महिला केरो चंट व्यवहार नँ ओकरा मँ बदलाव लानी देलअ रहै । सुशांत बोललै, " भई अगर हमरा दोसरो कोच मँ जाना भी होतै त टी.टी.ई. स अपनऽ टिकट चेक करैलै बगैर नै जैबै ।" मुंबई आरू पूरे जीवन केरो रेलसफर मँ ई तरह के दृश्य सुशांत पहलो बार नै खाली देखी रहलो छेलै बल्कि ओकरौ सामना भी करी रहलौ छेलै । ई अप्रत्याशित त छेलबे करलै अचंभा भी पैदा करी रहलौ छेलै । अंदर सँ ई महिला ओकरा कुछ सामान्य त नै लगलै । एगो आदमी के हृदय मँ महिला लेली सॉफ्ट कॉर्नर रहै के वू महिला फायदा उठाय ल चाही रहलौ छेलै ।


हुन्नें मुंबई राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन दिल्ली रवाना होय लेली मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन केरो प्लेटफॉर्म पर सरकना शुरू करी चुकलऽ रहै । रेंगना शुरू करथै गाड़ी स्टेशन, शहर पीछू छोड़तें आगू बढ़लौ जाय रहलौ छेलै ।  हिन्नें सुशांत केरो मनौ मँ तरह-तरह के भावना व उत्सुकता उद्वेलित हुअय लगलो छेलै । पत्नी क फोन करना भूली क सथें बैठलो महिला सँ पूछअ लागलै, "आपनै क कहाँ तलक जाना छै ?" महिला दन्नें सँ कोय जबाब नै पाबी क वें अगला सवाल करलकै, "जे बर्थ अदला-बदली करना छै ओकरो कोच नंबर आरू बर्थ नंबर की छेकै? "


जबाब दै के जग्घौ प साथ बैठलौ महिला सहयात्री, अप्रत्याशित रूप सँ सुशांत प जोर-जोर स चिकरे आरू गरियाबै लगलो छेलै । बोलअ लागलै, “ हमरा नै बैठना ई मनहूस के सामने । हमरा सँ टी. टी. ई. आरू पुलिस ऐसनौ बात करै छै आरू पूछै छै कि कहाँ जाना छै, कोन बर्थ छेकै हमरौ ।" चिकरी-चिकरी क बोलअ लागलै, " चोर लोग ही  एना पूछै छै। हम्में त करोड़ों मँ कमाबै छियै, चोर कहाँकरो, भिखमँगा कहाँकरो । फेरू कोच अटेंडेंट क सामान ढोय लेली पुकारतें खुद अपनो समान उठाय-पुठाय क दोसरो कोच दन्नें रवाना होय गेलौ छेलै । अटेंडेंट नँ साफ-साफ कही देलै छेलै कि ओकरा लगाँ समान ढोय के समय नै छै ।


सुशांत तनी देर लेली हतप्रभ रही गेलै । ओंय त ऐसनो कुछ नै पुछने छेलै । आखिर जे जरूरी छेलै ओतना त पूछै ल पड़तै । लेकिन फिर भी महिला तरफो सँ ऐन्हऽ प्रतिक्रिया केरो अंदेशा नै छेलै । ओंय ऐसनो कुछ नै बोलले छेलै कि सामने वाला क लज्जित होय ल परअ । उल्टा महिला के मुँहो स अपना लेली गंदा-गंदा गारी सुनला के बाद भी सुशांत अपनो नाम के मुताबिक एकदम शांत रहलै । ओंय सोची लेनअ छेलै, प्रतिक्रिया देला स कोय फायदा नै । महिला सहयात्री केरो शिकायत भरलौ लहजा मँ ओकरा अपमानित करी क भावनात्मक ब्लैकमेलिंग करै के मानसिकता क समझै मँ सुशांत न देर नै करलकै । महिला के ऊपर गुस्सा करला के बजाय सुशांत क ओकरा प तरस आबी रहलौ छेलै । महिला केरौ कोय धात काम नै ऐलो छेलै । सुशांत नँ अपनो अहम क तनियो टा नै आगू आबै देलकै । कंपार्टमेंट के सहयात्री सिनी भी सहमी गेलो छेलै । ओकरो चिकराहट आगू केकरो हिम्मत नै होलै कि सुशांत के पक्ष मँ कुछ बोलअ पारअ । गलत चीज के विरोध मँ जों भीड़ नै ठारौ होय छै त गलत तत्व केरौ मनोबल बढ़अ लगै छै । ऐसने मनोबल केरौ शिकार बाद मँ भीड़ भी होय जाय छै आरू पल भर मँ सब कुछ स्वाहा होय जाय छै । नैतिकता के पाठ खाली पढ़ै लेली नै होय छै, ओकरा समय प अमल मँ भी लानै ल परै छै, नै त पछतावा के सिवा कुछ हाथ नै लागै छै ।


एक दन्नें त सुशांत वू महिला केरौ हर हरकत क बरदाश्त करी रहलऽ छेलै । दोसरो दन्नें मने मोन ओकरौ विश्वास डगमगाय रहलौ छेलै ई सोची-सोची क कि आगू सँ कोय भी यात्री के प्रति सहृदय भाव सँ हुनी केना पेश होतै, दोसरा के खास करी क महिला के तकलीफ क समझी क कोच आरू बर्थ अदला-बदली करै ल हरदम तैयार केना होतै । अपनौ सहृदयता चलतें बेचारा ऐसनौ स्थिति त कहिय्यो नै पैदा हुअय देतै । सोचअ लगलै कि बोगी मँ घुसतैं जों अपनौ बर्थ प बैठै के जिद करतियै त स्थिति कुछ आरू होतियै । महिलां ओकरा प हावी होय लेली सोचै भी नै पारतियै । लेकिन मोअन ई बात प भी बार-बार आबी क टिकी जाय रहै कि एगो के चलतें सब्भे लेली नकारात्मक विचार बनाय लेना कोनो भल्लौ बात नै । लेकिन एगो बात त साफ छेलै कि पहलो बार ओकरा एहसास होलै कि महिला भी अपनो छिछोरा हरकत सँ आदमी क परेशानी मँ डालअ सकै छै ।


सोचतें-सोचतें, खैतें-पीतें कखनी सूतै के घड़ी आबी गेलै पता ही नै चललै । लेकिन बोगी मँ चढ़ै घड़ियाँ स ल क अखनी घड़ियाँ तलक ओहय महिला केरो हरकत न ओकरो मगज मँ जग्घो बनाय लेनअ छेलै । भर रात ठीक सँ सूते भी नै पारलै । गहरैलौ नीन त नै ऐलै । सोतें-जगतें करवट बदली-बदली पटैलो रहलै आरू रात कखनी बीती गेलै, पता भी नै चललै ।  भर रात ई बात केरो डोअर लगलो रहलै कि कखनू भी वू महिला ओकरा बदनाम करै के मानसिकता सँ आबी क कहीं कोहराम नै मचाबै लागअ । सुतला के पहिनें सुशांत नँ जरूर अपनो पत्नी क फोन करी क साँझको घटना के बारे मँ बतलाय देनअ रहै, जेकरा सँ कोनो अनहोनी घटला प घटनाक्रम पहिनै सँ पता रहअ । अपनौ दिमाग केरौ बोझ क हल्का करै लेली भी सुशांत लेली ई जरूरी होय गेलौ छेलै । पत्नी क बड़ी तकलीफ होलो छेलै । फोन प हिदायत देनअ छेलै, "ऐसनो घटना सँ घबराबै के जरूरत नै छै, हाँ सतर्क जरूर रहना चाहिय्यो ।"


राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन अबअ राजस्थान पहुँची गेलौ छेलै । तनी देर मँ यूपी आरू ओकरो बाद दिल्ली पहुँचै वाला रहै । कोय वॉश रूम जाय मँ व्यस्त रहै त कोय अपनो समान समेटी क रखै मँ । सुशांत भी टूथ-ब्रश मँ पेस्ट लगाय क वॉश रूम दन्नें बढ़ै के तैयारी करी रहलो छेलै कि सामने सँ कोच अटेंडेंट ऐतें दिखाय परलै । लगीच आबी क सुशांत क बतलाबै लगलै, "साहेब !  वू जे लेडीज पसेंजर छेलौं आरू ओकरा सथें जे मरदाना पसेंजर छेलौं दूनू जिमा मँ कोनो टिकटे नै छेलै । दूनू बोगी मँ ही कुछ सामान-वमान चोराय-ओराय क बीच के कोनो इसटेशन प  उतरी जाय के योजना सँ राजधानी एक्सप्रेस मँ चढ़लौ छेलै । वू त भल्लौ कहौ दोसरौ बोगी के एगो पसेंजर के, जेकरो शिकायत प पुलिसें ओकरा राथै क पकड़ी क ल गेलै ।"


सुशांत नँ मोबाईल  केरौ ईंटरनेट ऑन करी क देखलकै, राजधानी एक्सप्रेस सही समय सँ तनी टा आगू ही नई दिल्ली दन्नें सरपट दौड़लो जाय रहलौ छेलै ।

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