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Sunday, December 18, 2016

हरा क्रान्ति | Angika Kahani | अंगिका कहानी | Hara Kranti | Angika Story | गोरे लाल मनीषी | Gore Lal Manishi

हरा क्रान्ति | अंगिका कहानी | गोरे लाल मनीषी
Hara Kranti | Angika Kahani | Angika Story | Gore Lal Manishi

खखरू बलॉकऽ के इनारा पर अलमुनिया वाला लोटा में पानी ल॑ क॑ पोटरी के सत्तू सानी क॑ खाय ल॑ बैठी गेलऽ । इ त॑ खखरू के पुरानऽ आदत छेकऽ । कहूँ जाय, लोटा-डोरी, सत्तू के पोटरी नैं छूट॑ पार॑ । ओकरा होटल-तोटल के खाना अच्छा नै लागै छै । होटलऽ म॑ बासी-कूसी आरो साफ-सफैयत के कोय ठेकानऽ नैं । एक त॑ जातो द॑, दोसरऽ गललऽ-पचलऽ खैला सें संतोखो नै होल्हौं । लोटा-डोरी भी बराबर साथ रहन्हैं । कऽन ठेकानऽ कखनी कहाँ मऽर मैदान या प्यासे लगी गेलऽ ?


खखरू आबरी जिद्द ठानी क॑ ब्लॉक ऐलऽ छै । घऽर लौटवै त॑ खाद लैय्ये क॑ । आय वहाँ ऐनें ओकरऽ चौथऽ दिन छेलै । आय साम तक में त॑ खाद जरूर मिली जाना चाहियऽ । आव॑ त॑ अपना जानतें कोय बिध बाकी नै रहलै । मतर हों, सरकार बहादुर के ऐन कानून भी अलबत्ते छै । खाद लेना छौन त॑ दू-तीन ठोरे फारम भरऽ । उ त॑ छतरधारी छेलऽ जे फारम भरी द॑लकऽ । नै त॑ फारम भराय भी दू टाका लागिए जैथिअ॑ । फनू जमानत दारी के एक टाका । भीयलडब्लू दू टका में पहचान करलखौं आरू लिखी देलखौं कि तोरा कन बीज-खाद के पैसा बकाया नै छौं, आरू तोंय कोपरेटी के मेम्मर नै छेखौं, तभिये काम हुअ॑ पार॑ ।


वैसें त॑ जेकरा सनी कन बीज-खाद वला रूपया बाकी छेलै वहूँ सनी दू-दू रूपया द॑ क॑ लिखाय लेलकऽ भीयलडब्लू सें । बाकी रहौन या नै, बिना लिखैने तरान नै । भीयलडब्लू सें नै लिखाबऽ त॑ फनू कोपरेटीके सिकरेटरी सें लिखाबऽ कि तोंय कोपरेटी के मेंबर नै छेकऽ । बारहऽ तितम्बा छै । खखरू त॑ बड़ा होशियारी करलकऽ जे लिखाय लेलकऽ । ऐन्हों एक-दू टाका त॑ कत्त॑ ऐथैं-जैथैं रहतै । काम होय गेला पर मलाल नै आबै छै । सरकारियो काम कहीं बिना खरचा करनें होलऽ छै ?


कर्मचारी सें हम्में एक्खै टका में काम निकासी लेलौं । बड़ी नै-नै करतें-करतें गोड़-मोड़ पकड़ला पर लिखै ल॑ तयार होलऽ कि हमरा कन मालगुजारी बाकी नैं छै । बिना देनें त॑ उपाय्यो नैं छेलै । पाँच बरसऽ सें मालगुजारी दिहै नै पारन॑ छियै । कत्त॑ की करौं ? नेपाल जा कपार साथैं । पौर साल कत्त॑ आस लगाय क॑ रोपऽ करलौं । धान की जोर लागलऽ रह॑ । धान जेकरा कहै छै । रंगत कत्त॑ फोहगरऽ ? गौछी त॑ ओनैलऽ जाय रहै । मुंगार ऐन्हों फड़िल॑ रहै कि एक्खे गौछी में कटनिया के मुट्ठी पूरी जैथियै । हमरा नजरी के सामनें जी काढ़ी क॑ धान मरी गेलै एक पानी के वास्तें । हथिया नै बरसलै । हाहाकार मची गेलै । सौंसे इलाका के लोग जेरऽ बान्बीं-बान्हीं रोज -के -रोज एक अठवारऽ लगाय एक पहऽर रात रहथैं जलखै कलौवऽ ल॑ ल॑ क॑ बड़ुआ डैमऽ पर पानी के उपाय करै वास्तें जाय रह॑ आरू जब॑ एक पहर रात बीत॑, सौंसे गाँव ठाँय-ठाँय सूती जाय त॑ लौट॑ । हमरा गामऽ सें आरू कोय नागा हुअ॑ त॑ हुअ॑ हम्में एक्को रोज नै ।


जऽन रोज इलाका भर के किसानें मीटिंग करलकऽ कि रूपया वीघा चंदा करी क॑ डैमऽ के आपीसर क॑ जों देलऽ जाय त॑ पानी मिल॑ पार॑ , हम्में वोहो रोज पीछू नै रहलौं । मतर दू-चार ठो अछरकटुवऽ छबायरकऽ चलतें सब खराब होय गेलै ।


खैर, दुखे-सुखें दिन कटिये गेलै । धान अबकियो कोय कम नै लागलऽ छै । तनटा पाँड़े थानऽ आरू बुढ़िया वला में कमजोर छै जरूर । आय जों खदवा मिली जाय तब॑ नें मल्ली माय क॑ देखाय दियै कि देखऽ सरकारें किसानऽ क॑ क॑तना मदद करै ल॑ तयार छै, मदद लेबैय्या खड़ा होना चाहियऽ । देश-दुनिया के बात त॑ तोंय कुछु जानै बूझै छऽ नै आरू बातै पीछू टाँग अड़ावै छऽ । मल्ली माय के याद ऐथैं ओकरऽ ध्यान घरऽ पर चल्लऽ गेलऽ । कल्पना में देखै छ॑ कि ऊ बड़ी अबेर क॑ पहुँचै छ॑ घऽर । बड़ी ताव सें केवाड़ी में धक्का दै छ॑ । मल्ली माय सूती गेली छ॑ । अकचकैली निनवाहती पूछै छ॑ मल्ली माय - के ?


'दोसरऽ के ? खोल केवड़ा । एकदम मरी क॑ सूतै छऽ ? लागै छौन दिन भर पहाड़ ढाहै छऽ ' गरजलऽ खखरू ।


हड़बड़ाय क॑ खोललकी केवाड़ मल्ली माय । 'अंय ! अन्हार कैन्हें ! ढिबरी की होल्हौंन ? '


'तेल झड़ी गेलऽ छै ।' गल्लऽ दाबी क॑ बोलली मल्ली माय ।


'बस तेल झड़ी गेलै । दौलतपुर कत्त॑ दूर छेलै ? तेल नै लान॑ पारल्ह॑ ? लबर-लबर बात बनाय में होय छौन्ह ? तोरा सनी क॑ ब्लॉक जाय ल॑ पड़ौं तब नें बुझावौन्ह कि काम कना होय छै । ' खखरू झाड़लकऽ ।


यही ध्यानऽ म॑ मगन खखरू कुच्छू सोचतिह॑ की पुकार होलै, 'खखरू मंडल' । ओकरऽ ध्यान टुटलऽ । हड़बड़ाय गेलऽ ऊ । बचलऽ सत्तू वैं कुतवा क॑ द॑ देलकै जे कखनी सें वैंठां घुर-फुर करबऽ करै रह॑ । झब दक॑ जना-तना हाथ धोय क॑ दौड़लऽ बड़ा बाबू लग । भलुक मुँहों बढ़ियाँ सें नै धुव॑ पारलकऽ । गौवां सिनी बड़ी कही सुनी क॑ रोकनें रह॑ बड़ा बाबू क॑, नै त॑ हुनी त॑ औन-पौन करबऽ करै रह॑ दोसरऽ नाम पुकारै ल॑ । हपसलऽ-धपसलऽ पहुँचै छै खखरू ।


'आते हैं बाबू खाद लेने और सिधिया जाते हैं सरकस देखने । अब आकर ऐसे खड़ा हैं, जैसे फोटो खिचाना है ।' गरमैलात बड़ा बाबू । हुनी चश्मा के उपरऽ द॑ क॑ प्याज रं आँख देखाय क॑ गुर्रैलात आरू झपटी क॑ बायाँ हाथ खींची क॑पूछलकात - टिप्पे मार न ? आरू पूछतैं-पूछतैं बुढ़वा ओंगरी में काजर लगाय क॑ टिप्पा ल॑ लेलकऽ आरू परमिट रऽ कागज धराय देलकऽ । आब॑ खखरू क॑ जीहऽ - में - जी ऐलऽ ।


बिनैय्या सें परमिट पढ़बैलकऽ - 'तीन बोरा यूरिया ।' खखरू त॑ फूली क॑ कुप्पा । कोय खेल बात छेकै ? सरकारी खाद उठाय लेबऽ सबसें सपरै वला काम नै छेकै । उत हम्हीं ऐन्हों पितमरूवऽ छौं जे ठेहनियाय गेलियै त॑ लैय्ये लेलियै खाद । नै त॑ इडिल-मिडिल करलऽ त॑ गामों में क॑ गो छ॑ । ऊ सब के मुँह गाम्हैं में जत्त॑ चल॑, गामऽ सें बहरैथैं बिलाय होय जाय छऽत ।


खखरू सीना तानी क॑ सिधियैलऽ गोदामऽ हिन्न॑ । गोदाम बलाँ सनी बैठलऽ गप झाड़बऽ करै छ॑ । - खिड़की द॑ क॑ हुलकी क॑ देखलकऽ खखरूँ । एथनैं में खखरू देखै छ॑ कि बी.डी.ओ. साहब के चपरसिया ठो मलकलऽ ऐलऽ आरू कोठली में जाय क॑ गोदाम-मनीजर के हाथऽ में एगो पुर्जी दै छ॑ । मनीजर साहब पुर्जा पढ़ी क॑ कियालऽ क॑ गरजै छऽत - 'बुलाकी ! यूरिया की बिक्री बंद । दस-पाँच बोरा जो बचा है, एमेले साहब लेंगें । बी.डी.ओ. साहब खबर किहीन हैं ।'


सुनथैं खखरू के त॑ कंपकंपी छूटी गेलऽ । बाहरऽ के साँस बाहरैं, भीतरऽ के साँस भीतरैं ! अधपेटऽ खाय क॑ उठलऽ रह॑ जे अखनी ताँय भूख बुझाइये रहलऽ रह॑, मतर इ बात सुनथैं ओकरऽ भूखो खतम भ॑ गेलऽ ।


बड़ी हिहरूवऽ होय क॑ परमिट आरू साथे-साथ एगो रूपया धरावै छ॑ बुलाकी क॑ । बुलाकी तनियो टा कानों नय पटपटैलक । उलटे कुन्हरैलऽ - ' चलऽ चलऽ, यूरिया खतम भ॑ गेलै । एक हफ्ता में फनू माल ऐतै त॑ एहिय्यऽ ।'


'बड़ा बाबू कहन॑ छै, ऐ परमिट पर पाँचे रोज तक के अन्दरैं खाद उठैलऽ जाव॑ पार॑ । ओकरऽ बाद त॑ इ तमादी होय जैतै । सब करलऽ धरलऽ माटी में मिली जैतऽ बुलाकी बाबू ' - बड़ी हियाव करी क॑ खखरू लिहौरा करै के कोशिश करलकऽ ।


मतर बुलाकी त॑ ब्लॉकऽ के सोधलऽ कियाल छेलऽ न॑ ? वें तनियो टा ध्यान नै देलकऽ एकरा बातऽ पर ।


'होल्हौंन बहस करलऽ । तमादी त॑ होइये जैतौन । आपनऽ उपाय करऽ । हमरा सें कुछ नै हुअ॑ पारथौना ' बुलाकी नें निठरे रं जबाब द॑ देलकऽ ।


खखरू के मनऽ में होलऽ कि भोक्कार पारी क॑ काने लागौं । ओकरऽ हियाव नै होलऽ कि अखनी आवे घऽर जाँव । हतोपरास होय क॑ वहाँ सें बहरैलऽ आरू बलॉकै के आगू में जे बगीचवा छै, वहीं मे घासऽ पर गमछा विछाय क॑ पटाय रहलऽ खखरू । वैंजाँ स॑ बलॉकऽ के भीती में सटलका हरा क्रान्ति वला पोस्टर सोझे झलकलऽ । ओकरा मे दाँत खिसोड़तें किसानऽ के फोटो देखी क॑ ओकरा बड़ी धुन बरलऽ । ओकरा मनऽ में होलऽ कि पोस्टर नोची क॑ फेंकी दौं । मतर बेकार ' इ क्रान्ति त॑ ऐसौं मरलऽ गनती में छै ' इ सोची क॑ ओकरा औढ़ करै ल॑ कऽर फेरी क॑ मुँह घुराय लेलकऽ आरू भुलावै के कोशिश कर॑ लागलऽ ।


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