बेटी पीहु | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
हम्में सब खुश छेलिये, लेकिन बाबूजी नारजा होय रहलऽ छेलात । आबे वाला मुसीबतऽ के समझी रहलऽ छेलाता । बेटी पीहु के साठ (60) हजार महीना दरमाहा आरो गाड़ी मिली रहलऽ छेले । केन्हऽ बाप छऽ खुश होय केरऽ जग्धऽ पर नाराज होय रहलऽ छऽ ? हम्में पुछलिहें। हुन्हीं गुस्सा में बोले लागला, पीहु कोय विदेश से पढ़ी के नांय ऐलऽ छै । नांय कोय एन्हऽ योग्यता छै । ई सब जे मिललऽ छै । ओकरऽ रूप के कारण, बाबू जी केरऽ गुस्सा देखी के पीहु भी सहमी गेले । हमरऽ समर्थन मिलला के कारण, वू काम पर जाय लगले । आज सुबह पीहु ने कहलके माय हमरा एक पार्टी में जाना छै । आबे में देर होय सके छै, तोहें चिन्ता नांय करी हें । बाबूजी बोले जग्धऽ बताय दे, हम्में लेबे जाय जेबो । हमरा हुन्कऽ बातऽ पर गुस्सा आबी गेले, अरे अबे पीहु कोय बच्चा थोड़े ने छै । फेरू वहाँ ओकरऽ बॉस रहथीन ने ? वू छोड़ी देथीन । रात केरऽ एक बजी गेले, पीहु नांय ऐली, पुोन भी बंद आरो केकरो नम्बर भी नांय छेले । बाबू जी घरऽ में चक्कर लगाय रहलऽ छेलात । हम्में हुन्का से कहलिहें बैठी जा न ? हमरा से भी सुतलऽ बैठलऽ नांय जाय रहलऽ छेलऽ । हम्में थकी के कुर्सी पर बैठी गेलिये । रात ढलान पर छेले । ऐतने में पीहु आबी गेले, हम्में चैन केरऽ सांस लेलिये । वू अपनऽ घरऽ में जाय के सुती रहले । सुबह पीहु पास जाय के बोलले माय, बाबू जी केरऽ बात सही छेले । हम्में घबड़ाय गेलिये, पीहु से पुछलिये तोहें ठीकते छें न ? पीहु बोलले बिल्कूल, एकदम ठीक, तोरऽ बेटी ऐते भी कमजोर नांय छै । लेकिन अबे ई नौकरी एकदम नांय । दुनियाँ में बहुत काम छै । हम्में देखलिये, पीहु केरऽ बाबूजी अखबार पढ़ते होलऽ मुस्कुराय रहलऽ छथिन ।
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