उद्देश्य | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
काशी में गंगा किनारों एक संत केरऽ आश्रम छेले । आश्रम में कइठो शिष्य शिक्षा लै रहलऽ छेले । आखिर वू दिन आबी गेले, जाबे शिक्षा पुरी होला पर गुरू जी शिष्य के अपनऽ आशीर्वाद दे के विदा करे वाला छेलात । सुबह गंगा स्नान केरऽ बाद गुरू शिष्य पूजा करे ले बैठलात । सभे ध्यान मग्न छेला, कि एक बच्चा केरऽ आवाज सुनैले, बचावऽ बचावऽ बच्चा नदी में डुबलऽ जाय रहलऽ छेले । आवाज सुनी के गुरू देव केरऽ आँख खुली गेल्हें । गुरू जी देखलक कि एक शिष्य पूजा छोड़ी के बच्चा के बचाबे के लेलऽ नदी में कुर्दा पड़ले, बड़ी मशक्त करी के बच्चा के बचाय ललके । आरेा सभी शिष्य आंख बंद करी के ध्यान मग्न बैठलऽ रहले । पूजा समाप्त होला पर गुरू जी शिष्य सब से पुछलका, तोरा सनी डुबते होलऽ बच्चा केरऽ आवाज सुनैलऽ छेलऽ । शिष्य सनी कहलके, होंऽ गुरू जी सुनैलऽ ते छेले, गुरूजी पुछलका तंबे तोर मनऽ में की बिचार उठलौ ? शिष्य कहलके भगवान करेऽ पूजा में ध्यान मग्न छेलिये, लेकिन तोरऽ एक मित्र पूजा छोड़ी के नदी में कुदी पड़ले । शिष्य कहलके वें पूजा के अधर्म करलऽ छै । गुरू जी बोले अधर्म वे नांय, अधर्म तोरा सनी करलऽ छें ? पूजा पाठ कर्म धर्म केरऽ एके उद्देश्य छै प्राणियों केरऽ रक्षा करना । तोहें सब विद्या में पारंगत भेले लेकिन धर्म केरऽ सार नांय समझे पारले । परोपकार आरो संकट में फंसलऽ दोसरा केरऽ सहायता से बढ़ी के कोय धर्म नांय छै ।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.