आत्मा केरऽ योगदान | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
कोय चील केरऽ मुंह में बोटी या कोय चिडि़या केरऽ मुंहऽ में रोटी होवे आवे ओकरा उड़ते होलेऽ देखे ते लागे छै, ई बहुत दूर जाय रहलऽ छै । बस मनुष्य केरऽ भाग्य ऐह रंऽ होय गेलऽ छै । कभी- कभी ते लागे छै, कौन उड़ाय लै जाय रहलऽ छै, हमरऽ भाग्य के हमरा से? खूब प्रयास करै छिये कोय कसर नांय छोड़े छिये, योगा भी करे छिये । फिर भी काहे नांय मिले छै जे मिलना चाहीव । जबे एन्हऽ लागे छै, तबे हम्में निराश हुवे लागे छिये । एक बारीक कारण देखऽ ते पाभऽ ई समय हम्में सब बहुत ज्यादे भागै लागलऽ छिपै । भागते- भागते भी सब केरऽ इच्छा होय छै छलांग लगाबे केरऽ कुछ ते हमेशा उड़े केरऽ कोशिश में रहे छै, ई जे तेजी छै, अशांत करी के ही छोड़ते । मतलब ई नांय कि रूकी जाये या धीमऽ गति से चलै लागीय । मतलब एतना ही छै कि कुछ पड़ाव आरो जे अंतिम लक्ष्य छै, वहाँ थोड़ऽ विराम लै केरऽ वृत्ति बनाबऽ रूके- केरऽ वू स्थान कोय मंदिर होय सके छै । एकरऽ बाद चलभऽ ते तोरऽ चाल में तेजी ते होते, लेकिन अशांति नांय होते । केवल शरीर आरो मन से संचालित लक्ष्य केरऽ यात्र या कहऽ कि तोरऽ कैरिअर ई समय शरीर आरो मनऽ से जोड़लऽ होलऽ छै । एकरा कहीं न कहीं आत्मा से जोड़ऽ जैसे ही आत्मा केरऽ स्पर्श मिलते वू तोरा कुछ पड़ाव पर रूकै केरऽ समझाइश देतै । आरो जे लोग ध्यान योग करते होलऽ अपनऽ आत्मा से जुड़ते वू लक्ष्य पर पहुंची के आराम करना भी सिखी जेते । लोग लक्ष्य पर पहुंची के भी आदत नांय बदली रहलऽ छै । एकरे नतीजा छै सब कुछ मिलला के बाद भी अशांति । लक्ष्य केरऽ तरफ बढ़ते होलऽ शरीर आरो मनऽ से ज्यादे योगदान अपनऽ आत्मा के भी रखऽ फेरू देखऽ जे मिलथोंऽ वू अलग ही आनन्द दै के जैथों ।
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