परंपरा आरो संस्कार | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
आज काल केरऽ नई पीढ़ी केरऽ बच्चा से राष्ट्रीयता, नैतिकता, परिवार या धर्म केरऽ बात करलऽ जाय ते वू कुछ सवाल हमरो तरफ उछाले छै । जब बच्चा ई बातऽ पर प्रश्न उठाबे छै ते सावधानी से उत्तर दहऽ । परंपरा, संस्कार आरो मूल्य ई तीनों शब्द बच्चा के भारी लगे छै । लेकिन गहराई से देखऽ ते जीवन के लेलऽ तीन सरल स्थितियाँ आरो सफलता प्राप्त करे केरऽ तीन सहज साधन छै । परंपरा परिवर्तित होते रहे छै । संस्कार के निर्माण करै ले पड़े छै । आरो मूल्य स्थाई होय छै । जैसे अगरबत्ती जलैलऽ जाय ते परंपरा के रूप में ई पूजा केरऽ क्रिया छै । ओकरऽ सुगंध संस्कार छै आरो जों जलाबे केरऽ तर्क समझ में आबी जाय ते मूल्य शुरू होय जाय छै । परंपरा में तोरा पास ज्ञान होना चाहीव । फेरू तोहें प्रयास करे छऽ । जेत्ते ज्यादा संसारऽ में उतरते परंपरा, प्रयास सब भी ओतने ही काम ऐत्ते । केवल संसार केरऽ खोज आशान्ति देते । थोड़ऽ- थोड़ऽ खोज अपने भी करऽ । काहे कि स्वयं केरऽ खोज के बाद ही परमात्मा केरऽ खोज होय छै । अपनऽ खोज में ध्यान काम आबे छै । आरो ध्यान संस्कार से मिले छै । पहिला परिश्रम, दोसरऽ होले पुरूषार्थ, ध्यान एक पुरूषार्थ छै । परिश्रम जबे अपनऽ खोज में लगी जाय छै ते वही परिश्रम पुरूषार्थ बनी जाय छै । तीसरा चरण छै मूल्य । ध्यान के बाद जाबे छै समाधि आरो मूल्य एक प्रकार केरऽ समाधि छै । ओकरऽ प्रतीक परंपरा प्रयास छै । संस्कार पुरूषार्थ छै आरो मूल्य प्रतीक छै । जे हम्में या कोय भी व्यक्ति, वस्तुय स्थिति के अच्छा सही आरो महत्वपूर्ण होवे से जोड़े छिये । ई कमी नांय बदलते, संसार पाबऽ ज्ञान से, स्वयं केरऽ खोज ध्यान से आरो परमात्मा ।
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