प्रगति में बाधक होय छै अपनऽ प्रशंसा अपने करै में | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
जे आदमी महान होय छै, वू आदमी हमेशा सावधान रहे छै, वू कभी केकरो मोका पर अपनऽ प्रशंसा में रूचि नांय लेबे लागी जाय । जवानी में नेपोलियन साहित्य में ज्यादे रूचि राखे छेला, बू समय- समय पर लेख भी लिखे छेला । एक वार नगर केरऽ विद्वानऽ ने वहाँ केरऽ नागरिक से लेख आमंत्रित करलऽ छेला । सर्व श्रेष्ठ लेख पर इनाम केरऽ भी घोषणा करलऽ गेलऽ छेले । एकरा में अनेक लेख जमा गेेले । एक लेख नेपोलियन केरऽ भी छेले । नेपोलियन केरऽ ही लेख सर्वश्रेष्ठ घोषित करलऽ गेले । कुछ समय केरऽ बाद नेपोलियन सम्राट बनी गेलऽ, कई बातऽ के लगभग भूली चुकलऽ छेलऽ । नेपोलियन केरऽ मंत्री के ई बातऽ केरऽ जानकारी कहीं से मिलले कि सम्राट नेपोलियन ने, कभी एक लेख लिखलऽ छेले । जे पुरस्कृत भेलऽ छेले । मंत्री अपनऽ आदमी के भेजी के लेख केरऽ मूल प्रति मंगवाय लेलकऽ । एक दिन मंत्री लेख केरऽ प्रति सम्राट के सामने रखते होलऽ हँसी के पुछलके, ई लेख केरऽ लेखक के तोहें जानै छऽ ? सम्राट नेपोलियन लेख देखी के कुछ सोचे लगला । मंत्री सम्राट केरऽ मुद्रा देखी के मोनऽ में सोचे लागलऽ कि सम्राट खुश होय के कुछ ईनाम देता । कुछ देरी के बाद सम्राट लेख हाथऽ में कै लेलका, आरो ऊ घरऽ में गेला जहाँ बोरसी में आग जरी रहलऽ छेले । कुछ देरी लेख के देखते रहला बोरसी में आग धधकी रहलऽ छेले । लेख के जराय देलका । लेख जरी के छारऽ होय गेल । नेपोलियन केरऽ जवाब छेले, ई लेख हमरऽ एक समय केरऽ उपलब्धी छेले । आज के लेलऽ कोय महत्व नांय छै । हम्में आज कोय लेख लिखिये ते शायद वू सबसे निकृषृ होते । ऐहे से हम्में ई लेख के जराय देलिये । देशकाल परिस्थिति में चिन्तन केरऽ नया स्वरूप देते रहना चाहिवऽ । न कि पुरानऽ प्रशंसा में डुबलऽ रहना चाहिवऽ ।
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