काँसी पफ़ूल देखी के बुझाय लागे छै वर्षा बुढ़ाप गेले | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
जैसहीं मौसम बदले लागे छै, ओकरऽ हिसाब से प्रकृति में भी बदलाव होय लागे छै । प्रकृति केरऽ बदलाव देखी के अन्दाज लागै- लागे छै, अबे वर्षा ट्टतु आबी गेले, वर्षा ट्टतु में जबे एक दु आढ़त बढि़या पानी गिरी जाय छै, खेत- कियारी डबरा- डबरी भरी जाय छै, चाराऽ तरफ बेंग टर्र- टर्राय लागे छै । खेत बाड़ी हरा- भरा देखाय लागे छै । आरी- डगारी से बिना मतलब घास जमीं जाय छै । चोरांटऽ, कटेया, कोथुवा, आरी पर चलना मुश्किल होय जाय छै । बरसात में भादौ केरऽ अँधरिया रात भगजोगनी (जूगनू) हिन्ने- हिन्ने जगमगाय लागे छै, देखे में बहुत सुन्दर लागे छै, बरसात में पाचन शक्ति कमजोर होय जाय छै । वासी एकदम नांय खाना चाहीव । ताजा, गरम खाना आरऽ सुपाच्य खाना, खाना चाहिव गरिष्ठ खना पचे में दिक्कत होय छै । बर्षा खतम होते ही शरद ट्टतु केरऽ प्रकृति संकेत दै लागे छै । राम चरित मानस में तुलसी दास, वर्षा केरऽ बाद शरद ट्टतु केरऽ आगमन बतैलऽ छथिन ।
बरसा बिगत शरद रितु आई ।
लछिमन देख हू परम सुहाई ।।
फूले कांस सकल माहि छाई ।
जनु बरसा कृत प्रगट बुढ़ाई ।।
सब केरऽ कहना छै, कांसी फूली गेले बर्षा बुढ़ाय गेले । कुंवार केरऽ पानी के कहे छै बुढ़वा बर्षात । कुंवार केरऽ पानी जुवारे गुवार, कुंवार में एक बेरा पानी पड़बे करे छै । कुंवार में दोद (धूप) केत्ते तेज लागे छै, गरमी के मारे हालत खराब होय जाय छै ई महीना में सर्दी, खांसी (खोंखी) ज्वर, बुखार, पेट खराब, मौसम बदलते होय लागे छै । ऐहे रौद (धूप) जाड़ा में कर्त्त सुहाय छै । प्रतिृ (पितरी) पक्ष समाप्त होते नवरात्र केरऽ परब दशहरा शुरू होय जाय छै । शरद पूर्णिमा केरऽ चन्द से अमृत केरऽ बर्षा होय छै, खीर बनाय के रात में सीतऽ में राखी देलऽ जाय छै । सुबह (बिहाने) परसाद के रूप में खाय छै । शरद पुर्णिमा के दिन इन्जोरिया चकाचक रहे छै । शरद ट्टतु जाते ही जाड़ा आबी जाय छै, दिन छोटऽ होय लागे छै । सूर्य भगवान भी देरी से उगे हथ, डुबे में जल्दी डुबी जाय छथ । नदी तालाब केरऽ पानी ठंढा होय जाय छै । ऐहे छिकै प्रकृति केरऽ नियम, जाड़ा, गर्मी, बर्षात होते रहे छै । ऐहे में जिन्दगी बीति जाय छै, एक दिन सब से मुक्ति मिली जाय छै ।
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