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Thursday, July 11, 2019

करजा केरऽ बोझऽ ऐहे जनमऽ में उतारी देना चाहिवऽ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

करजा केरऽ बोझऽ ऐहे जनमऽ में उतारी देना चाहिवऽ | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 



एक व्यापारी के व्यापार में एते घाटा होलै कि ओकरा अपनऽ सबकुछ धन संपत्ति बेची के चुकाबे ले पड़ले । फेरू से व्यापार करे ले सबसे कर्जा मांगलकऽ । कोय ओकरा कजा्र दै ले तैयार नांय होले । अंत में राजा केरऽ पास गेलऽ, राजां ने पुछलका तोहें ई कर्जा कौन तरह से चुकाबे ? व्यापारी कहलके महाराज जेतना ई जनम में चुकाबे सकबै चुकाय देबै । राजां कुछ देर सोचला के बाद, ओकरा कर्जा दे केरऽ आज्ञा दे देलका, कोषाध्यक्ष कागजऽ पर लिखवाय के कर्जा दै देलके । व्यापारी कर्जा लै के चललऽ । जाते-जाते सांझ होय गेले, व्यापारी एक आदमी केरऽ घर रूकी गेलऽ, ओकरा पास धन छेले चिन्ता में नींद नांय आबे छेले, सुती जेबऽ कोय चोराय लेतऽ । व्यापारी पशु- पक्षी केरऽ भाषा जाने छेलै । रात में पशु- पक्षी अपन भाषा में कुछ- कुछ बतिया छेले । व्यापारी पशु- पक्षी केरऽ भाषा सुने लागलऽ । घरवाला केरऽ बरद अपनऽ साथी के बताबे छेले माय हम्में पहिला जनम में एकरा से कर्जा बोलऽ छेलिये, कर्जा लगभग खतम होय चुकलऽ छै । बिहान कुच्छु देरी काम करला पर कर्जा खतम होय जाते । फेरू हम्में कर्जा से मुक्त होय जाबऽ । दोसरऽ बरद बोलले ई ते बड़ी खुशी केरऽ बात छै । अभी हमरा पर एक लाख टाका केरऽ कर्जा बांकी छै । एकरा चुकाबै केरऽ एक रास्ता छै, जो ई आदमी राजा केरऽ बरद से हमर बरद केरऽ प्रतियोगिता रखबाबै आरऽ एक लाख टाक केरऽ शर्त राखै ते हम्में जरूर जीती जाबे । आरो ओकरऽ कर्जा से मुक्त होय जाबऽ बिहान व्यापारी ओकरे घरऽ रूकी रूकी गेले । पहला बरद कुछ देर काम करी के मरी गेले । व्यापारी रात्री केरऽ बात सब ओकरा से बतालकऽ ऊ आदमी राजा केरऽ बरद से अपनऽ बरद के साथ प्रतियोगिता रखबैलकऽ आरो एक लाख टाका केरऽ शर्त भी । राजा आदेश दे देलका, दोनों केरऽ बरद अखाड़ा में ऐलऽ । दोनों में लड़ाई शुरू होय गेले । कुछ देर केरऽ बाद राजा केरऽ बरद हारी गेलऽ ई आदमी केरऽ बरद जीती गेल । एक लाख टाका मिली गेले । कुछ देरी के बाद बरद मरी गेले । ई देखी के व्यापारी राजा केरऽ कर्जा कोषाध्यक्ष घुराते होलऽ कहलके कि ई जनम केरऽ कर्जा पूरा नांय भेल पर दोसरऽ जनम में चुकाबै ले पड़े छै । ऐहे से आदमी के कर्जा ऐसे जनम में चुकाय देना चाहिवऽ ।

टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

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