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Friday, July 12, 2019

दूर रहे वाला बेटा पुतोह आरो साथ रहे वाला बेटा पुतोह | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

दूर रहे वाला बेटा पुतोह आरो साथ रहे वाला बेटा पुतोह  | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 


जा ई दिन केरऽ भाग- दौड़, करण सुचि अपने थकलऽ होलऽ आरो कमजोरी महसूस करी रहलऽ छेले । फिर भी छः बजे उठी गेले । जल्दी जल्दी काम पूरा करे में लागी गेली । ओकरऽ सास 20- 25 दिनऽ से वीमार छेली । हुन्कऽ सेवा, आय जाय वाला केरऽ आब भगत, घरऽ केरऽ सब काम ई सब से ओकरऽ देह- देह दुखाय रहलऽ छेले । फिर आराम करले बिना सेवा भाव में लागल रहे छेली । सास केरऽ ज्यादे तबियत खराब होय के कारण अस्पताल में भरती कराबे ले पड़ले । समाचार सुनी के लखनऊ से भैंसूर गोतनी आबी गेली । अभी तक ते फोने से खोज खबर ले रहलऽ छेली, गोतनी के आबे से सुचि के लागले कुछ सहारा मिलतऽ । मगर वू चौबीसो घंटा अस्पताले में बैठली रहे छेले । घऽर ते खाली नहाय खाय ले आबे छेली । हुन्कऽ ते रटलऽ रटैलऽ बहाना छेल्हेन, कैसे की करीय ? कौन समाज कहाँ रखलऽ छै । हमरा ते कुच्छु माुमे नांय छै ? मालूम कैसे हे हो ? सुचि मन ही मन झुनझुनै ले, कभी आबे छऽ यहाँ । बरसों होय जाय छोंऽ मुँ देखैला ? आलऽ में हमान सब के चाय नास्ता (जलखै) कराये के, दूध जलखै केरऽ व्यवस्था करी के सुचि नौ बजे अस्पताल पहुंचली । सुचिं के देखत ही सास उलाहना दिये लागली, कसे देर करी के आबी रहलऽ छें ? बेचारी सुनीता (गोतनी) बिना चाह जलखै केरऽ बैठली छै ? ई सुनी के सुचि केरऽ दिलऽ में बहुत दुख होले । मन में होले हनी के जवाब दिये । हम्में की घरऽ में गोड़ पसारी के सुतलऽ छेलिये ? मगर लहु केरऽ घोंट पी के रही गेलिये । सास ममता भरल स्वर में बड़की पुतोह के पीठ पर हाथ धरी के जा बेटी आराम से नहाय धोय के खाय पी के अइहऽ । सुनीता चलऽ गेली । सुचि माथऽ झुकाय के सास केरऽ कपड़ा बदल बैकी, तैल कुड लगाय के कंघी चोटी करी देकी, दूध पिलाय के दवाय खिलाय देलकी, खोललऽ कपड़ा लत्ता लै के सुचि घऽर ऐली । तब तक सुनीता सिंगार- पटार करी के आवी गेली । सब केरऽ खाना- पीना केरऽ इन्तजाम करना छेले । ओकरऽ 10 साल केरा बेटी बतैल के, अस्पतालऽ में जेसिनी दादी के पुरसीस करे ले आबे छेले । सबसे बड़की माय केरऽ दिल खोली के तारीफ करे छेली । बेचारी रात- दिन अस्पतालऽ में लागली रहे छे । घऽर नहाय- खाय ले जाय छै । खाना बनाय रहलऽ सुचि गुस्सा में मुँह बनैते होलऽ बोलली, हम्में दिन- रात खटी रहलऽ छी, हमरा में खाली खोट ही खोट देखाबे छै । दु दिन खातिर ऐलऽ छै ते अच्छा देखाबे छै । दु दिनऽ के बाद साधु जी के अस्पतालऽ से छुट्टी मिली गेल्हेन । घऽर आबी गेली, रिस्तेदार, परिचित सब अबे घरेपर आबे लागले । अस्पताल में खाय- पीये में संकोच लागे छेले । घरऽ में कोय परहेज नांय छेले,मेला जेन्हऽ लागले रहे छेले । सुचि आरेा ज्यादे परेशान हुवे लागली । सोचे लागली दीदीअबे ते कुछ मदद करती ने ? सांझ होते ही अपनऽ दिक्कत माय जी के सुनाबे लागली । अबे हमरा जाय केरऽ आज्ञा देथीन । माय जी भी हों में हों मिलाबे लागली । तोरऽ बात सही छै हफ्रता भर होय गेल्होन घऽर छोड़ला, बच्चा बुतरू अकेले छै । परीक्षा भी नजदीक छै । घऽर भी विखरलऽ पड़लऽ होवहों, अबे तोहें जा यहां केरऽ फिकिर नांय करऽ । अबे ते घऽर आबी गेलिये ने । तोहे अपनऽ घऽर केरऽ चिन्ता- करऽ । ई कहते होलऽ बड़की पुतोह के गला लगाय लेलकी । सुचि अवाक देखते रही गेली । भैंसूर गोतनी विदा होय गेली । सुचिख टैले रही गेली । माय जी सब रिस्तेदार के अपनऽ बिमारी के साथ- साथ दूर रहे वाला बेटा- पुतोह केरऽ जिक्र पहिले कई छेली । दोनों एते दूर से ऐलऽ खरचा करी के, मगर साथ रहे वाला बेटा- पुतोह से हुन्का बड़ी असंतोष छेल्हेन । पहिले ही वू बोड़ऽ डाक्टर से देखाय देतलऽ ? हम्में एतना तकलीफ ते नांय भोगतलां । सुचि सोचे लागली दूर केरऽ ढोल ही नांय, बेटा- पुतोह भी सुहाने लागे छै । पास केरऽ ते------------ ।

टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

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