अमानत | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
माय केरऽ मरला पाँच साल होय गेलऽ छेले । माय केरऽ बक्शा खोललऽ गेले । ते ओकरा में गहना केरऽ भरमार छेले । बाबूजी एक एक चीज उठाय के ओकरऽ पीछु केरऽ कहानी बतैते जाय रहलऽ छेला, एकरा सिकड़ी गला केरऽ उठाय के बाबूजी हँसते होलऽ बोलला ई सिकड़ी तोरऽ माय ने हमरा से छुपाय के पड़ोसिन के साथ जायके बनबैलऽ छेली । एतना टाका कहाँ से पैलकी, बच्चा सिनी बोलले पहले सोना ऐत्ते मंहगऽ कहाँ छेले । बहुत सस्तऽ छेले । एक हजार भरी (तोला) छेले । हमरे जेबऽ से टाका निकाले छेली । तोरऽ माय के लगे छेलो, हमरा पते नांय चले छेले । हुन्क खुशी के लेलऽ हम्में अनजान ही बनलऽ रहे छेलिये । बहुत धुपैल की ई सिकड़ी हमरा से लेकिन कोय चीज छुपलऽ रही सके छै भला ? तभिये बेटी केरऽ नजर पड़ले झुमका पर, बाबू जी, माय ऐते बाड़ेऽ झुमका पेन्हें छेली की ? अचरजऽ से झुमका के हाथऽ में लै के बोलली, ई झुमका ते सोना केरऽ नांय लागी रहलऽ छै । बाबू जी देखऽ केत्ते चमकी रहलऽ छै । तोरऽ माय नकली चीज ते पसंद नांय करे छेली । फेरू ई बक्शा में किरंऽ ऐले, बाबूजी कहलका ई बक्सा में छेले ते सोना ही होते तभिये छोटका बेटा बोलले बाबू जी लाबऽ एकरा सोनार के देखाय दै छिये । बड़का भाय केरऽ नजर पड़ले दोसरऽ झुमका के हाथऽ में उठाय लेलके, बाबू जी कल्ह हम्में सोनार के देखाय के लानी देभोंऽ दोनों भाय केरऽ हाथ झुमका केरऽ जोड़ा अलग अलग होय के । चमक खतम होय चुकलऽ छेले । बेटा केरऽ नजर के भापे में बाबू जी के देर नायं लगल्हें, बाबु जी ने झट से झुमका वापस ले लेलका आरो कहलका बेटी बन्द करी दे अमानत वर्ना ई बिखरी जयतौ ।
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