विद्वानऽ केरऽ बीच चर्चा चली रहलऽ छेले कि सृष्टि में वू कौन छै, जेकरऽ सहनशीलता अपार छै कोय पानी के सहनशीलता कहलके ते कोय हवा के कोय अग्नि (आग) के सहनशीलता कही रहलऽ छेले । ते कोय आकाश के वहाँ उपस्थित एक महात्मा ने सभे केरऽ बातऽ के शांत करते होलऽ कहलका - ई सृष्टि में माता धरती ही सबसे ज्यादा सहनशील छथिन । पानी में उफान आय सके छै, आरो हवा में तुफान, आग दावानल केरऽ रूप ले सके छै । आरो आकाश में चक्रवातऽ के जनम दे सके छै । लेकिन धरती माय, एक माय के तरह सभे कष्टऽ के सहते होलऽ सभे प्राणियों केर रक्षा करे छथिन । ऐहे से शास्त्रऽ में प्रातः काल यानि बिहाने- बिहाने धरती केरऽ बन्दना करते होलऽ ई श्लोक के करी के बिछौना से उड़ी के धरती पर लात धरे केरऽ नियम छै । ई मंत्र चढ़ी के धरती पर लात रखलऽ जाय छै ।
‘‘समुद्र बसने दवि पर्वत स्तन मपिऽते ।
विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्वमे ।।
अर्थात- हे धरती माता आप समुद्र आरो पर्वतों के अपनऽ हृदय में धारण करे छऽ । हम्में अपने केरऽ ऊपर लात (चरण) रखे ले जाय रहलऽ छी, कृपया हमरा क्षमा करीहऽ ।
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