बेटा केरऽ फोन | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
शहर केरऽ नजदीक, नदी किनारां बसलऽ एकटा गांव में मिस्त्री केरऽ काम करे वाला आदमी रहे छेले । ओकरऽ नाम छेले सुदेश्वर पैसा कमाबे के लेलऽ शहर जाय के दिन रात मेहनत करी के परिवार पोसे छेलऽ । फेरू बुढ़ापा में जिन्दगी केरऽ आखिरी समय में अपनऽ कनियाय के साथ दिन गुजारै लागलऽ । जैसे- तैसे करी के एकरा छोटऽ सन घऽर बनाय लेलऽ छेलऽ । अपनऽ इकलौता बेटा रमेश के पढ़ाय लिखाय के काबिल बनाबे के लेलऽ, सुदेश्वर 12 से 14 घंटा तक दिन रात मेहनत करे छेले । अपने छुछऽ रूखऽ खाय आरो फटलऽ पुरानऽ कपड़ा पिन्ही के जिन्दगी गुजारै छेलऽ । नजदीक केरऽ शहर में रही के जबे रमेश बी- ए- सी- केरऽ परीक्षा पास करी लेलकऽ तबे सुदेश्वर बेटा के बी एड भी करवाय देलकऽ वेहे समय सरकारी अध्यापक केरऽ भर्ती निकलले, रमेश परीक्षा दै के पास होय गेलऽ । नौकरी लगी गेले, ओकरऽ नौकरी जीला केरऽ गांव में ही लगी गेले । सुदेश्वर ने बेटा केरऽ नौकरी लगला केरऽ खुशी में समाज आरो मोहल्ला वाला के 50- 60 हजार टाका खरजा करी के खिलान- पिलान करलकऽ । दोनों प्राणी खूब खुश छेला । कुछ महीना केरऽ बाद, धूम धाम से रमेश केरऽ एक पढ़लऽ लिखल लड़की से बीहा करी देलका, वू भी सरकारी इसकूलऽ में अध्यापिता छेली । दोनों अपनऽ- अपनऽ नियुक्ति आस- पास केरऽ इसकूलऽ में करवाय लेलकऽ दोनों साथ साथ नौकरी पर जाय लागलऽ । शुरू- शुरू में बीहा केरऽ बाद रमेश अपनऽ कनियाय के साथ दु- चार महीना में बुढ़ऽ माय- बाप से मिले वास्ते आबी जाय छेलऽ । लेकिन धीरे- धीरे ओकरऽ आना- जाना बन्द हुवे लागले । अबे होली दिवाली में अकेले माप बाप से मिले ले । आबे छेलऽ । कुछ समय बितला केरऽ बाद बेटा केरऽ भी आना जाना बंद होय गेले । कभी कभार माय-बाप केरऽ हाल चाल पूछे ले फ़ोन आबी जाय छेले । सुदेश्वर केरऽ पास फोन नांय छेले । पड़ोसी राम भाय केरऽ घऽर जाय के बेटा पुतोहु से टेली फोन पर बात करे ले पड़े छेले । सुदेश्वर आरेा कनियाय भी कभी कभार, बिना बुलैलऽ बेटा पुतोहु से मिलैले चलऽ जाय छेली । ई तरह से आठ दस साल बिती गेले, अबे माय बाप केरऽ हाल चाल पुछे के बजाय, माय के अपना पास बुलाबे के लेलऽ फोन आबे लागले । एक दु दिन केरऽ बाद हमेशे रमेश केरऽ फोन आबे लागले । राम भाय केरऽ बेटी दौड़लऽ होलऽ आय के कहलके बाबा हो, रमेश चचा केरऽ फोन ऐलऽ छोंऽ । सुदेश्वर दौड़ते पहुंचलऽ मन में सोचते जाय छेला रमेश केरऽ आवाज सुनैतऽ । हुन्ने से रमेश बोलले, बाबू जी, हम्में दोनों बड़ी परेशान छी । हमरा घरऽ से दूर नौकरी करे ले जाय ले पड़ै छै । (सुबह) बिहाने चाय नास्ता खाना बनाबे में तोरऽ पुतोहु के बड़ी दिक्कत होय छै । तोहें भाय के यहाँ भेजी दहऽ । बेचारा सुदेश्वर बेआ के की जवाब देतऽ । हों बेटा तोरऽ भाय से पुछी के भेजवाय देबौ । एकरऽ बाद ते रमेश केरऽ फोन रोजे आबे लागले । बाबू जी मायके कबे भेजवाय रहलऽ छऽ । कहऽते हम्हीं लेबे ले आय जड़होंऽ बच्चा के इसकूल भेजना, घरऽ केरऽ साफ- सफाई झाडू पोछा करे के वजह से हम्में दोनों समय पर इसकूल नांय पहुंचे ले पोर छिये, बेटा से होलऽ बात चीत आरो ओकरऽ परेशानी सब बात कनियाय से बतैलकऽ दोनों सोचऽ में पड़ी गेलऽ की करलऽ जाय । बुढ़ापा में दोनों अलग रहना नांय चाहे छेलऽ । दोनों एक साथ बेटा- पुतोह के साथ रहे केरऽ फैसला लेलकऽ । एक दिन फेरू फोन ऐले । राम भाय सुदेश्वर के आवाज दै के बोलैलके जैसे ही सुदेश्वर फोन उठैलगे, रमेश कहे लागले, बाबूजी तोहें अब तक माय के नांय भेजल्हऽ की बात छै ? सुदेश्वर झिझकते होलऽ बोलले, अरे बेटा ? तोहें ते जानै छै, तोरऽ माय बिमार रहे छै आरो हमरा खाना बनावे ले भी नांय आबे छै । माय के चलऽ गेला पर, हमरऽ खाय- पीये, देख रेख केरऽ परेशानी आय जेतऽ । हम्मेमं दोनों ही तोरा पास आय जैबो ते ठीक रहतौ ने ? ई सुनी के रमेश बिना कुछ कहले फोन काटी देलके, कुछ दिनऽ के बाद रात मतें फेरू फोन ऐले, राम भाय आय के कहलके दादा, रमेश् केरऽ फोन एलऽ छोंऽ । जल्दी आबऽ वहाँ जाय के जैस ही सुदेश्वर फोन कान में लगैलके हुन्ने से रमेश केरऽ नाराजगी भरलऽ आवाज ऐले । की बाबूजी तोहें अभियो तक माय के नांय भेजे सकल्हऽ । तोरा ते हमर परेशानी केरऽ चिन्ता नांय छोंऽ । तोहें हमरा लेलऽ एतना भी नांय करी सके छऽ की ? बार- बार बेटा केरऽ फोन आरो हर बार माय के अकेले बुलाबे केरऽ बात सुनी के सुदेश्वर के गुस्सा आबी गेले, अपने आप के नांय रोके ले पारलके, रमेश बेटा ? बच्चा केरऽ देख भाल, चाय नास्ता खाना घरऽ केरऽ सफाई झाडू- पोछा के लेलऽ तोहें माय के बोलाय रहलऽ छें की नौकरानी के ? ई बुढ़ापा में तोरा से ई उम्मीद नांय छेलऽ की तोहें ऐत्ते बोड़ऽ नालायक निकलबे । बुढ़ापा में हमरा काहे अलग करी रहलऽ छें ? तोहें हैरंऽ कर बेटा ? एक अच्छा नौकरानी खोजी ले । तोरा तोरऽ माय केरऽ जरूरत नांय, नौकरानी केरऽ जरूरत छे । हमरऽ बांकी जिन्दगी साथ रहे ले दे बेटा ? एकरऽ आगु सुदेश्वर कुच्छु नांय बोले ले पारलकऽ गला भरी गेले आँखे से लोर चुवे लागले । फुटी- फुटी के कान्दे लागले । तभिये राम भाय सुदेश्वर केरऽ हाथऽ से फोन लै के काटी देलके ।
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