सौ टाका केरऽ नोट | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक आदमी केरऽ बेटा बहुत दिनऽ से विमार छेले, वैद्यजी बतैलऽ छेले कि बकरी केरऽ दूध फैदा करते । वू आदमी बकरी केरऽ तलाश में निकल कैठो परिचित से बकरी केरऽ वारे में कही के रखलऽ छेलऽ । अपने भी पता लगाते रहे छेलऽ । एक दिन काम पर जाय रहलऽ छेलऽ कि अचानक दु आदमी के बकरी आरो ओकरऽ मेमना लै के सड़कऽ पर जाते देखलकऽ । लपकी के ओकरा पास पहुंचलऽ । बकरी आरो मेमना केरऽ दर- भाव करे लागलऽ । थोड़ऽ देरी में सौदा पटी गेले, आदमी के काम पर जाना जरूरी छेले । ऐहे से बकरी वाला के कहलके हम्में परचा पर पता लिखी के दै दे छिहोंऽ, वहाँ जाय के बकरी आरो मेमना दै छिहऽ, आरो अपनऽ टाका मांगी लिहऽ ? अबे परचा लिखे केरऽ दरवार पड़ले, नांय कागज एकरा पास नांय बकरी वाला के पास, आस- पास कागज मिले केरऽ कोय जुगाड़ भी नजर नांय ऐले । अपनऽ जेबऽ में नोट छेले टटोरे लागलऽ ते 100 टाका से कम केरऽ कोय नोट नांय छेले । हारी- पारी के एकटा सौ 100 टाका केरऽ नोटऽ पर लिखलकऽ बकरी वाला जाय रहलऽ छै, सौ 100 टाका कम करी के बांकी पैसा दै दिहा । बकरी आरो मेमना रखी लिहऽ । शाम के खुशी- खुशी घऽर ऐलऽ, अबे हमरऽ बेटा ठीक होय जैतऽ । बकरी केरऽ दूध पीके ताकतवर होय जैतऽ । अबे हमरा कोय चिन्ता नांय रहतऽ । कामऽ पर जाय छेलां बेटा पर चिन्ता लगलऽ रहे छेलऽ । लेकिन यहाँ ते नांय बकरी नांय मेमना, पता चललऽ यहाँ ते कोय नांय ऐलऽ छै । वू आदमी केरऽ ध्यान टुटले, जबे 100, सौ टाका केरऽ नोट पाय के बकरी वाला कथिले पता ढुंढतऽ ? बकरी मेमना दोसरऽ जग्घऽ नांय बेची लेतऽ ? बेचारा छटपटाय के रही गेलऽ । हिन्ने कनियायो चार बात सुनाबे लागले, तोरऽ दिमागऽ में भूसऽ भरलऽ रहे छोंऽ । हमरऽ संयोगे बिगड़लऽ छै ।
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