राजगृह नगर में रोहिणेय नाम केरऽ चोर रहै छेले । ओकरऽ बाप मरते समय समझैल कै, तोरा जोंऽ अपनऽ कामऽ में सफल थाबै ले छऽ ते कोय कथा वार्ता भजन कीर्तन में नांय जैहें । यहाँ तक कि कोय मंदिर के सामने से पार होइहें ते कान ओंगरी से बंद करी लिहें । एक दिन रोहिणेय घरऽ से निकललऽ, रास्ता में महावीर स्वामी केरऽ प्रवचन होय रहलऽ छेले । बाप केरऽ बात याद आबी बेल, रोहिणय कान बंद करी लेलकऽ वेहे समय ओकरऽ गोड़ऽ में कांटऽ गड़ी गेले । कांटऽ निकाले ले कान पर से हाथ हटाबै ले पड़लै । तभी येमहाबीर जी केरऽ उपदेश ओकरऽ कानऽ में पड़ी गेले । महावीर जी ने कहलका देवता केरऽ छाया शरीर पर नांय पड़े छै । हुन्कऽ चरण धरती पर नांय पड़ी के चार अंगूरी ऊपर रहै छै । रोहिणेय जल्दी वहाँ दूर हटी गेलऽ । कुछ दिन केरऽ बाद वू चोरी केरऽ अपराध में पकड़ाय गेलऽ । ओकरा जानै- पहचानै ले राजा केरऽ आदमी ओकरा एन्हऽ दवाय देलकै कि रोहिणेय मुरछाय गलऽ । जबे ओकरा होश ऐले देखै छै, एक मणि जड़लऽ मंडबा में छे । छोंड़ी सब ओकरा आगु नाची- गाबी रहलऽ छै । छोड़ी सब रोहिणेय के बतैलकै तोहे स्वर्ग में आबी गेलऽ छऽ । ओकरा से पुछलकै मृत्यु लोक में तोरऽ की नाम छेल्हो ? रोहिणेय के ओकरऽ बात पर विश्वास नांय भेले ओकरा महाबीर स्वामी केरऽ वचन याद आबी गेले कि देवता केरऽ छाया नांय पड़ै छै । छोंड़ी सभी केरऽ छाया भी पड़ी रहलऽ छै । आरो गोड़ भी धरती पर छे । तबे रोहिणेय ने सही कहलके, हम्में चोर छिको हमरऽ नाम रोहिणेय छिकऽ । हम्में स्वर्ग में नांय छी हम्में जानी रहलऽ छी । अपने जे चाह दण्ड दै सकैछऽ हम्में दंड सहेले तैयार छी । राजा केरऽ आदमी राजा केरऽ पास ले गेले ओकरऽ विचार जानी के राजा ने ओकरा दंड से मुक्त करी देलका । तबे रोहिणेय के समझ में ऐले कि सत्संग केरऽ एक पल केतना कीमती होय छै । झूठ से बची गेलऽ, दंड से भी मुक्ती मिली गेलऽ ।
राजगृह नगर में रोहिणेय नाम केरऽ चोर रहै छेले । ओकरऽ बाप मरते समय समझैल कै, तोरा जोंऽ अपनऽ कामऽ में सफल थाबै ले छऽ ते कोय कथा वार्ता भजन कीर्तन में नांय जैहें । यहाँ तक कि कोय मंदिर के सामने से पार होइहें ते कान ओंगरी से बंद करी लिहें । एक दिन रोहिणेय घरऽ से निकललऽ, रास्ता में महावीर स्वामी केरऽ प्रवचन होय रहलऽ छेले । बाप केरऽ बात याद आबी बेल, रोहिणय कान बंद करी लेलकऽ वेहे समय ओकरऽ गोड़ऽ में कांटऽ गड़ी गेले । कांटऽ निकाले ले कान पर से हाथ हटाबै ले पड़लै । तभी येमहाबीर जी केरऽ उपदेश ओकरऽ कानऽ में पड़ी गेले । महावीर जी ने कहलका देवता केरऽ छाया शरीर पर नांय पड़े छै । हुन्कऽ चरण धरती पर नांय पड़ी के चार अंगूरी ऊपर रहै छै । रोहिणेय जल्दी वहाँ दूर हटी गेलऽ । कुछ दिन केरऽ बाद वू चोरी केरऽ अपराध में पकड़ाय गेलऽ । ओकरा जानै- पहचानै ले राजा केरऽ आदमी ओकरा एन्हऽ दवाय देलकै कि रोहिणेय मुरछाय गलऽ । जबे ओकरा होश ऐले देखै छै, एक मणि जड़लऽ मंडबा में छे । छोंड़ी सब ओकरा आगु नाची- गाबी रहलऽ छै । छोड़ी सब रोहिणेय के बतैलकै तोहे स्वर्ग में आबी गेलऽ छऽ । ओकरा से पुछलकै मृत्यु लोक में तोरऽ की नाम छेल्हो ? रोहिणेय के ओकरऽ बात पर विश्वास नांय भेले ओकरा महाबीर स्वामी केरऽ वचन याद आबी गेले कि देवता केरऽ छाया नांय पड़ै छै । छोंड़ी सभी केरऽ छाया भी पड़ी रहलऽ छै । आरो गोड़ भी धरती पर छे । तबे रोहिणेय ने सही कहलके, हम्में चोर छिको हमरऽ नाम रोहिणेय छिकऽ । हम्में स्वर्ग में नांय छी हम्में जानी रहलऽ छी । अपने जे चाह दण्ड दै सकैछऽ हम्में दंड सहेले तैयार छी । राजा केरऽ आदमी राजा केरऽ पास ले गेले ओकरऽ विचार जानी के राजा ने ओकरा दंड से मुक्त करी देलका । तबे रोहिणेय के समझ में ऐले कि सत्संग केरऽ एक पल केतना कीमती होय छै । झूठ से बची गेलऽ, दंड से भी मुक्ती मिली गेलऽ ।
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