भैया, हमरा कुछ कहे ले छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
हमरऽ प्यारऽ भैया,
तोहें सुखी, स्वस्थ आरो दीर्घायु छऽ, ऐहे हमरऽ कामना छै । हम्में की सब बहीन अपनऽ भाय के लेलऽ सदेव मंगल कामना ही करे छै । भैया हम्में हर ससाल तोरा राखी बाँधे छी । बदला में हम्में तोरा से एकवचन ही चाहे छी कि तोहें सदैव हमरऽ रक्षा करभे । तोहें एन्हऽ करे भी छऽ । राखी केरऽ बाद पत्र लिखी के हम्में तोरा कुछ बताबे ले चाहे छी । तोरा से कुछ मांगे ले चाहे छी । देखऽ इंकार नांय करीहऽ भैया, जबे हम्में सड़कऽ पर कहीं जाय रहलऽ होय छिये, कालेज, से लौटी रहलऽ होय छिये या देर रात आफिस से निकले छिये, तोहें ते वहाँ हमेशा नांय रहभऽ । वहाँ हमरा मिले छै, इंसान केरऽ खाल ओढ़लऽ वू नर पिशाच, जेस्त्री केरऽ अस्मिता केरऽ तार- तार कई ले बेताब दिखाबे छै । वोहऽ ते केकरऽ भाईये होतो पर दोसरऽ के बहीन पर कुदृष्टि केरऽ कृत्य बेखौफ करी गुजरै छै । तोहें अपनऽ बहीन के सकुशल घर लौटी आबे केरऽ संतोष केरऽ सांस लै के निशि्ंचत होय जाते होभऽ । हालांकि एन्हऽ बात रोज घटे छै । जेकरा हम्में चुपचाप सही लै छिये । ताकि बातऽ केरऽ बतंगड़ नांय बनै, तो हें परेशान नांय होय जा, कहीं हमरऽ पाँख नांय कतरी देलऽ जाय । कहीं समाज में बदनाम नांय होय जांबऽ । ऐहे सब सोची के हम्में चुप रही जाय छिये । जबे कि हमरऽ को गलती नांय रहे छै । आज हम्में तोरा ई पत्र केरऽ माध्यम से बताबे ले चाहे छी कि जबे हम्में या हमर जेन्हऽ आए कोय लड़की या जनानी बाहर निकले छै ते केनहऽ नजर केरऽ सामना सामना करी के घर लौटे छै । होंऽ तोहें आरो समें नही केरऽ भाय के ई सब जरूर जानना चाहीवऽ । अबे हम सब बहीन केरऽ कर्त्तव्य होय गेलऽ छै कि भाय के हकीकत केरऽ ऐना देखैलऽ जाय । रास्ता, दुकान, स्कूल, कालेज, मॉल यहाँ तक की घरऽ में भी लड़की सुरक्षित नांय छै । तो हें बेटा होय के कारण, बेटी से हर मामला में उच्चऽ छऽ । ई तरह केरऽ परवरिश केरऽ दुष्परिणाम कोय जनानी ही भोगे छै । होना ते ऐहे चाहीवऽ कि मांएं आपनऽ समे बच्चा के ई संस्कार छै कि लड़का आरो लड़की बराबर छै कि आरो व्यवहार में भी जाहिर करे । भैया, जबे घरऽ से निकले छिपै, नुक्कड़ऽ पर खड़ा अवारा सब सिटी बजाय के अभद्र टिप्पणि करे छै । जबे आटो में बैठे छिये ते बेवजह सटी के बैठे केरऽ कोशिश करे छे । कहां तक गिनै होंऽ । अखबार ते पढ़ते होभऽ । भैया, दूूधमुंहऽ बच्चा के संग साठ साल केरऽ बृद्ध केरऽ जिक्र रहे छै । बू कौन भड़काऊ कपड़ा पेन्हे छै, देर रात तक घुमे छै । भैया हम्में तोरा ई कथा व्यथा ऐ हे से सुनाय रहलऽ छिहोंऽ ताकि तोहें दोसरा केरऽ बहीन सम्मान दृष्टि से देखिहऽ । जों सब भाय ऐहे सोच रखते, ते हम्में बहीन सब केत्तं सुकुन से ई जग में सुरक्षित रहबे । ई पत्र केरऽ माध्यम से सब लम्पट मरदाना के चेतावनी भी देना चाहे छिपे कि एतना भी नांय सताबऽ कि डरे खतम होय जाय । जबे जनानी विद्रोहिणी होय लागती ते सामाजिक ढांचा चरमराबे लागते दुर्गा, काली, चंडी के पुजलऽ ही नांय छिहें, वल्कि आत्मसात भी करलऽ छिहें । हम्में सभे बहीन भाय सबसे ऐहे आश्वासन आरो राखी केरऽ भेंट चाहे छी की हमरा इंसान केरऽ रूपऽ में देखे, अपनऽ- अपनऽ नजरऽ के साफ रखऽ हमरऽ भाय । हमरऽ राखी केरऽ मोल तोहें एतना जरूर चुकैहऽ । जगत केरऽ सभे खुशिया तोरे चरण चुमे ।
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