पीड़ा केरऽ पहचान में छिपलऽ छै शांति केरऽ मार्ग | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
दुनियां में समे सुख मिली जाय, जरूरी नांय छै कि शांति भी मिली जाय, दोनों अलग- अलग बात छै । मनऽ केरऽ शांति दोसरा केरऽ दुःख के दूर करी के भी प्राप्त करलऽ जाय सके छै । ई संबंध में एक खिस्सा छै, एक छेल राजा हुन्हीं अशांत रहे छेला । हुन्ऽ नगर में एक भिखमंगा ऐले भीख माँगे उद्देश्य से राजा बहुत प्रभावित भेला । हुन्हीं भिखमंगा से पुछलका अपने केरऽ चेहरा पर जे दिव्य शांति देखय रहलऽ छै की अशांति हमरा भी प्राप्त होय सके छै ? जों होय सके छै ते हमरा की करे ले पड़ते ? हम्में राजा छिकां हमरऽ मन अशांक छै । भिखमंगा ने जबाब देलके, जरूर शांति प्राप्त होय सके छै । एकरा लेलऽ तोरा अकेले में बैठी के चिंतन करे ले होथोंऽ दोसरऽ दिन राजा राज महल में अपनऽ आसन जमैलका । अपनऽ घरऽ में बैठी गेला, कुछ देर बैठलऽ रहला, अकेलऽ में परेशान होय गेला । तभिये हुन्कऽ राजमहल केरऽ एक कर्मचारी हुन्दे सफाई के लेलऽ ऐले । राजा ओकरा से बात करे लागला कर्मचारी केरऽ दुख सुनी के, हुन्कऽ मन दुखी होय गेल्हें । कुछ समय के बाद राजा चिन्तन करते होलऽ राजमहल मे टहले लागला । टहले- टहले राजा अपन राज महल केरऽ सब कर्मचारी केरऽ दुःख केरऽ बारे में जानलका । दुःख केरऽ मूल कारण खाय के लेलऽ अन्न पीं है के लेलऽ कपड़ा छै । राजा अपनऽ कर्मचारी सबके दरमाहा बढ़ाय देलका । सभी के कपड़ा बाँटलका, शाम के फेरू भिखमंगा से मिले वास्ते गेला । भिखमंगा पुछलके राजन अपने के कुछ शांति मिलल्होंऽ, राजां ने कहलका नांय महात्माजी, हमरा कुछ शांति नांय मिललऽ । अशांति थोड़ऽ - थोड़ऽ जरूर कुछ कम होलऽ जबे हम्में मनुष्य केरऽ बारे में जानलिये । ओकरऽ दुःख से मन अशांत होय गेलऽ । भिखमंगा कहलके राजा वास्तव में अपने शांति केरऽ मार्ग खोली लेल्हऽ । बस वेहे मार्ग पर आगु बढ़ते जा । राजा तभिये प्रसन्न आरो शांत रही सके छऽ । जबे तोरऽ प्रजा प्रसन्न रहे ।
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