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Friday, July 12, 2019

पंडित जी | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

पंडित जी  | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 



एक छेलात पंडित जी गंगा नहाय ले निकली रहलऽ छेलात कि हुन्कऽ देह एकरा छोटुऽ जात से छुवाय गेल्हेन । छुवाते देरी कि हुन्का गुस्सा आबी गेल्हेन, आरेा हुन्हीं जोर- जोर से डांटे- डपटे लागला । हुन्कऽ गुस्सा ऐत्ते बढ़ी गेल्हेन कि वू आदमी के दुस्तीन छड़ी भी जमाय देलका, ई कहते होलऽ दोबारा नहाय गेला कि ई चंडाल आदमी हमरा अपवित्र केरी देलकऽ । नहाते समय देखलका कि वोहो आदमी नहाय रहलऽ छै । ओकरा नहाते देखी के पंडित जी के बड़ी अचरज गेल्हेन । पंडित ओकरा से पुछलका हम्में ते तोरा से घुवाय के कारण दुबारा नहाय ले गेलऽ छेलां ? लेकिन तोहें काहे नहाय ले गेले ? वू बोलले- पंडित जी ? मानव मात्र एक समान छै, जाति से पवित्रता नांय होय छै, लेकिन सब से अपवित्र ते गुस्सा छै, जबे तोरऽ गुस्सा ने हमरा छुवल कै ते ओकरऽ नाकारत्मक भाव से मुक्त होय के लेलऽ हमरा गंगा नहाय ले पड़लै । ई सुनी के पंडित जी लज्जित होय गेलात । हुन्कऽ जाति अभिमान दूर होय गेल्हेंन । सब के भगवान बनैलऽ छथिन पंडित जी ? जाति ते हमरा सनी केरऽ बांटलऽ छिकै ।

टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

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