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Tuesday, May 3, 2016

चमचोरी | Angika Kahani | अंगिका कहानी | Chamchori | Angika Story | राकेश पाठक | Rakesh Pathak

चमचोरी | अंगिका कहानी | राकेश पाठक

Chamchori | Angika Kahani | Angika Story | Rakesh Pathak

‘‘मार...मार बुत॑ क॑....मार-गदाल सुनी क॑ कौलेजिया छौड़ा सितरम्मा केरऽ नींद अचानक खुली गेलऽ छेलै। वू घरऽ के पक्का पर सुतलऽ छेलै। चैतऽ के चतुर्दसी के टह-टह इंजोरिया सौंसे पक्का पर पसरलऽ छेलै। तकिया के नीचें सें घड़ी निकाली क॑ चनरमा के सापफ चांदनी में देखने छेलै। रात के अढ़ाय-पौने तीन बजी रहलऽ छेलै। माने कि ओकरा नीन्द पड़ने बेसी देरी नै होलऽ छेलै। एक बजे रात तांय त॑ वू बैठी क॑ ललटेनऽ के रोशनी में अपनऽ थिसिस के नोट लिखी रहलऽ छेलै। एम.ए. पास करी क॑ भागलपुर इनभरसीटी सें डाक्ट्रेट करी रहलऽ छेलै। विषय छेलै-‘हिन्दी उपन्यास में गणिका प्रकरण। ’

 

अपनऽ विषय के गहरा अčययन करै लेली सितरम्मा क॑ वात्सायन के कामसूत्रा सें लै क॑ हिन्दी, अंग्रेजी आरो बंगला के कत्त॑ सिनी किताब ओकरा पढ़ै लेली पड़लऽ छेलै। पुंग, प्रफायड जैसनऽ मनोवैज्ञानिकऽ के ग्रंथ पढ़ै ल॑ पड़लऽ छेलै। पफल ई होलऽ छेलै जे कि नारी-पुरूष के संबंध के बारे में ओकरा कत्त॑ सिनी नया-नया जानकारी मिललऽ-छेलै। यै संबंध में कत्त॑ सिनी पूर्वाग्रह टूटी गेलऽ छेलै। सब सें बडऽ बात त॑ ई छेलै कि वात्सायनें अपनऽ कामसूत्रा में गणिका के बारे में, नारी के काम भावना के बारे में जे मनतब्य देने छऽत, ओकरा ल॑ क॑ सितरम्मा के मनऽ में कै टा विचार उठलऽ छै। वें लगभग निश्चित करी लेने छै जे डाक्टŞेट के डिग्री मिलला के बाद वात्सायन के कामसूत्रा पर एक टा विश्लेषणात्मक किताब लिखतै।

 

घड़ी में टैम देखला के बाद एक टा लम्बा हापफी लै क॑ सितरम्मा गदालऽ दिस िधयान देलकै। समझतें देर नै लगलै कि गदाल पछियारी टोला में होय रहलऽ छै। पछियारी टोला गामऽ के सबसे गरीब टोला मतुर की गामऽ लेली सबसें महत्वपूर्ण टोला। एक तरह सें कहलऽ जाय त॑ हरिजन टोला। जऽन, बनिहार, मजूर सिनी के टोला। सौंसे गामऽ के खेती यह॑ टोला पर निर्भर। हरबाहा सें लै क॑ मोरकबड़ा, धनरोपनी सब के घऽर यह॑ पछियारी टोला में।

 

सितरम्मा के मनऽ में बार-बार प्रश्न उठी रहलऽ छेलै-आखिर ई गदाल कथी लेली होय रहलऽ छै...जाय क॑ देखनां चाहियऽ....। सितरम्मा पक्का पर

‘लंगड़ा के ऐत्त॑ हिम्मत... एक गोड़ त॑ टेढ़े छै...दोनो गोड़ सीध रहतियै तब॑ यें की करतियै?’
-भीड़ऽ में सें आरो एक आदमी बोली पड़लऽ छेलै।
‘लंगड़ा ऐत्त॑ मांगवासलऽ छै...एकरा एत॑ जोश उठै छै...खोल....एकरऽ धती खोल....आन छूरी...पहंसुल आन....काटी दे एकरऽ लिंग...नै रहतै बांस नै बजतै बौसुरी ... आन...आन...छूरी पहंसुल...काटी दे लंगड़ा केरऽ...लिं...झाड़ी दे एकरऽ सब टा जोश...-भीड़ऽ में सें कोय कही रहलऽ छेलै।

 

चौदह बच्छर के छौड़ा कैला दौड़ी क॑ गेलै आरो अपनऽ घरऽ सें तरकारी काटै वाला पहंसुल आरो धन काटै बला कचिया लै आनलकै। भीड़ऽ सें बाहर निकली क॑ दू टा युवक राजो सिंध के धती खोल॑ लगलै। कोय उपाय नै देखी क॑ राजो सिंध धती पकड़ी क॑ धरती पर बैठी गेलै।
 

आदमी के भीतर हरदम हाजिर रहैबला जानवर के दर्शन सितरम्मा क॑ आज पहिलऽ बेर होलै। वें सोच॑ लगलै-भीड़ में आदमी के भीतर केरऽ हिंसक जानवर जागी जाय छै कहिने कि भीड़ में होस नै रहै छै। खाली जोश रहै छै आरो जोश त॑ अन्ध होय छै। एक तरपफ भीड़ में उपस्थित छवारिक सिनी के जोश बाढ़ के पानी रं उपफनलऽ जाय छेलै त॑ दोसरऽ तरपफ बुढ़वा सिनी किंकर्तव्यविमूढ़ बनलऽ खड़ा छेलै...हुन्का सिनी क॑ समझै में नै आबी रहलऽ छेलै कि की करलऽ जाय....की कहलऽ जाय। गरीब होला सें की होतै....आखिर राजो सिंध राजपूते छेकै नी। बड़का-उंचका जात.....छोटका सिनी क॑ सब दिन सें दबैलें ऐलऽ छै...चाहे गलती बड़के सिनी के कहने नै रह॑।

 

सत्तर बरिस के पछियारी टोला के मड़र अघोरी मांझीं जब॑ देखलकै कि भीड़ खून-खराबा करै पर आमदा होय गेलऽ छै त॑ चुप नै रहलऽ गेलै। पुरनका कंगरेसिया, गांध जी के पक्का चेला हिंसा होतें केना देख॑ पारतियै सेहे अपनऽ माथा पर के गांध टोपी सम्हारतें-सम्हारतें बोललऽ छेलै-‘‘हिंसा के बात नै...गान्ही महतमा के टोपी जहां रहतै वहां हिंसा के बात नै हुव॑ पारै छै...जदि हिंसाबात होतै त॑ हम्में यहीं आमरण अनसन पर बैठी जैभौं...।’ मड़रऽ के बातऽ के परभाव पड़लै...भीड़ एकदम सें शांत होय गेलै। मड़र एक तरह सें सोंसे भीड़ क॑ डांट॑ लगलऽ छेलै-तों सिनी जानै नै छें, की करी

 

रहलऽ छें...जानभैं केना अनपढ़, गवांर, मूर्ख सिनी। हम्में जानै छियै...हम्में तखनकऽ चौथा किलास पास छी ....महतमा जी के रासटीय विदालय सें ...उफहऽ पटना भागलपुर सें नै ....सीčो बरध जाय क॑ महतमा जी आसरम में रही क॑...आसरमे के विदालय सें चौथा किलास...पास करने छी....चौथा...कोय पहिला, दोसरा नै...अखनियों गामऽ के चौकीदार-दपफेदार सें लैक॑ शम्भुगंज थाना के सिपाही-जिमदार साथें उठै-बैठे छी...मड़रैती एन्है नै होय जाय छै...मड़रैती करै लेली कानून-कायदा जानै ल॑ पड़ै छै....तों सिनी जानै छें अंग-भंग करला पर सीčो अटेम टू मरडर के केस बनै छै...दामुल, पफांसी, काला पानी सें कम एकरऽ सजा नै होय छै। राजों सिंघ के देहऽ सें एक्कऽ बून खून गिरला पर सौंसे टोला बन्हाय जैभ॑। काल्ह थाना-पुलिस ऐतै तब॑ हमरै सें नी जबाव-तलब करतै। दरोगा जी हमरै सें नी पूछतै-किया भड़र जी, अपने के रहतें ई हिंसा बात होय गिया...अपने रोकलियै नै...तब्ब॑ हम्में दरोगा जी क॑ की जबाव देबै...?’-मड़रऽ के डॉट-पफटकार आरो लम्बा भाषण सुनी क॑ सौंसे भीड़ सकपकाय गेलऽ छेलै। तभियो एक छबारिक हिम्मत करीक॑ पूछलकै-‘तब॑ अपन्है बतैइयै मड़र जी की करलऽ जाय...गाम-टोला के बेटी पुतौह के इज्जत खराब करै लेली...चमचोरी करै लेली राजो सिंध क॑ छुट्टा सांढ़ रं छोड़ी देलऽ जाय?’’
 

‘हम्में राजो सिंध क॑ छोड़ी दै के बात कहां कहने छी....तों सिनी कोय जानै नै छें...सरकार बहादुर पिफरंगी राज गेला के बाद महतमा गान्ही जखनी देशऽ के सोराज लौटैलकात तखनी सौंसे देशऽ में पंचैती राज कायम करी देलकात। गामऽ में मुखिया छै, सरपंच छै, गराम सेबक छै, पंचैती राज छै....राजो सिंध क॑ भोर होला पर पंचायत में खड़ा करलऽ जाय.....पंचायत में पफैसला होतै...।
 

‘‘आरो जदि भोर होतें-होंते राजो सिंध गाम छोड़ी क॑ भागी जाय तब॑...।
‘भागी जैतै.... हाथ-गोड़ बान्ही क॑ यहीं घोलटाय दे....आन रस्सी आन...रस्सी नै मिलौ त॑ पनभरा बाल्टी के उभैन खोली क॑ लै आन...’

 

सितरम्मा एतना सुनला के बाद वहां नै रूकलऽ छेलै...अपनऽ घरऽ दिस डेग बढ़ाय देने छेलै। ओकरऽ गोड़ त॑ घरऽ दिस बढ़ी रहलऽ छेलै मतुर की मऽन पीछू लौटी रहलऽ छेलै-राजो सिंध के जिनगी दिस। देखै-सुन्नै में गोरऽ-नारऽ, लम्बा-खड़ा नाक, लम्बा कद-काठी, बलिष्ठ देह, सब कुछ ठीक ठाक। मतुर की चनरमा में दाग लगलऽ छेलै जनमै सें। बायां गोड़ त॑ ठीक ठाक छेलै....लेकिन....राजो सिंध के दाहिने गोड़ऽ में ‘लेकिन’ लगी गेलऽ छेलै। दहिना गोड़ जनमै सें कमजोर आरो सूपती लगां सें पीछू तरपफ मुड़लऽ छेलै जेकरा कारण लंगड़ाय क॑, मचकी क॑ चलै छेलै। जनमै सें लंगड़ा नाम पड़ी गेलऽ छेलै। माय क॑ छोड़ी क॑ ‘राजो’ कही क॑ कोय नै हकाबै छेलै। सौंसे गाम ‘लंगड़ा’ कही क॑ हंकाबै छेलै। भैयारी बंटबारा में डेढ़ बीघा पुशतैनी धनखेती मिललऽ छेलै। पौ-कनमा जे उपजै छेलै ओकरै सें मसोमात माय आरो बेटा के कोनऽ रं गुजर चलै छेलै। बज्जड़, निरच्छर, कोय सरकारी नौकरी मिललै नै, राजपूत जात, उफंचऽ नाक, हरबाही, मजूरी कर॑ नै पारै छै। उमीर के पानी सैंतीस के किनारा पार करी क॑ अड़तीस के बांध छूवै-छूवै के करी रहलऽ छेलै। मतुरकी दुआरी पर आज तांय कोय बरतुहार नै ऐलऽ छेलै। विकलांग, निरच्छर, घोर दरिद्र। आखिर बेटी देतिहै त॑ कोय कथी पर? जिन्दा माछी त॑ कोय बाप नै निंगल॑ पारै छै।

 

सितरम्मा अपनऽ घरऽ दिस डेग बढ़ाबै के साथें साथ राजो सिंघ के कत्त॑ सिनी पुरनका बात याद करी रहलऽ छेलै। वू सोची रहलऽ छेलै जे पेटऽ के भूख रं तन आरो मन के भी एक टा भूख होय छै....ई भूख मेटाबै लेली जनानी-मर्दाना के बिहा होय छै....दोनों के मिलन के सामाजिक स्वीकृति मिलै छै...नै त॑ ई मिलन क॑ ‘नाजायज’,‘चमचोरी’ कहलऽ जाय छै। गामऽ में गिनलऽ-गुथलऽ मातबर क॑ छोड़ी क॑ प्राय बेसी भाग गरीबे-गुरबा के छै। भुखमरी आरो दरिद्रता जब॑ सीमा लांघी जाय छै तब॑ गामऽ सिनी में अनाज-पानी, रूपया-पैसा, सोना-गहना के साथें चमचोरियो बढ़ी जाय छै। राजो सिंध के वू खाली पफुलेसरिये साथें नै....पछियारी टोला के आरो कत्त॑ सिनी छौड़ी, अधजवनकी विधवा जनानी संगे केतारी, कसमीरा, जंडा के खेतऽ में ऐसनऽ हालत में देखने छेलै जैसनऽ हालत में नै देखना चाहियऽ....’’
 

माय के ममता भरलऽ हाथऽ सें ले लो दही, चूड़ा आरो गुड़ऽ के जलखै करी क॑ सितरम्मा जब॑ बड़का-बड़का किताब लैक॑ पढै़ लेली बैठलै त॑ किताबऽ के पन्ना पर ओकरा राजो सिंčो झलकी रहलऽ छेलै। मनऽ में राजो सिंध....राजो सिंध केरऽ तन-मन के भूखऽ के बात चक्कर काटी रहलऽ छेलै। हर तरह सें पूर्ण स्वस्थ राजो सिंध...जवानी.....मर्दानगी सें लबालब

भरलऽ राजो सिंध...पेट के भरलऽ मन आरो तन के भुखलऽ राजो सिंध...चमचोरी में पकड़ैलऽ राजो सिंध...।
 

सोचतें-सोचतें सितरम्मा क॑ लग॑ लगलऽ छेलै कि राजो सिंध एक टा आदमी नै....एक टा भारी समस्या छेकै। एक टा विकलांग समस्या जे सौंसे मानव समाजऽ क॑...मानक के सामाजिक सोच क॑ विकलांग बनाय देने छै। कोय यदि लांगड़ छै, लूल्हऽ छै, आंघर छै, त॑ एकरा में ओकरऽ की दोष छै जे समाज ओकरा सें एतना घीन करै छै....ओकरा देहऽ सें कोय दुगंध त॑ नै निकलै छै जे ओकरा एतना घृणित समझलऽ जाय छै.... ओकरऽ अच्छा-भला एक टा नाम रहतें भी ओकरा लंगड़ा, अंधरा, काना, लूल्हा कही क॑ हंकैलऽ, जाय छै....ई तरह सें हंकाना ओकरा सीčो-सीčो, मुंहऽ पर गरियाना छै।

 

सितरम्मा क॑ त॑ अपनऽ जिनगिये एक टा समस्या लगै छै, कैहने कि वूहऽ त॑ एक गोड़ के लांगड़ऽ छै, मचकी क॑ चलै छै, विकलांग छै। सोचतें-सोचतें सितरम्मा क॑ अपनऽ बचपन के एक टा घटना याद आवी गेलै। तिलासंŘांत के दिन छेलै। भगवती सिंध के दुआरी पर दू-चार ठो छोटका-बड़का बैठी क॑ रौदा तापी रहलऽ छेलै। सितरम्मा तखनी अठमा कि नम्मा में ‘पढ़ी रहलऽ’ छेलै। भगवती सिंध के पांच साल के बेटा क॑ ऐसैं चिढ़ाबै लेली सितरम्मा कही देने छेलै- ‘हे रे बिनोदवा आज नै नहैइ हें। तिलासंŘांत दिन जे नहाय लै छै ओकरा करिया जनानी मिलै छै।’
 

भगवती सिंध वहीं बैठलऽ छेलै। सितरम्मा सें कहने छेलै-विनोदवा के बात छोड़ें... अपनऽ देखें...तोरा रं लंगड़ा के बिहा होय जाय...करियऽ जनानी मिली जाय त॑ भाग के बात’’ -भगवती सिंध के ई बात सुनी क॑ सितरम्मा ठिसुआय जाय के साथें-साथ गोस्सा सें तमतमाय गेलऽ छेलै। मनमें-बुदबुदाब॑ लगलऽ छेलै-लांगड़ छियै त॑ एकरा में हमरऽ की दोष छै... हम्में की जानी-बुझी क॑ अपनऽ गोड़ तोड़ी लेने छियै...टायपफड बोखार में लकबा मारी दैलकै त॑ एकरा में हमरऽ की दोष छै... हमरा कोय लड़की कैहने नै देतै... हमरऽ बीहा कैहने नै होतै....।’
 

सितरम्मा के मनऽ में जे प्रश्न कहियऽ अपना बारे में उठलऽ छेलै, से ह॑ प्रश्न आज राजो सिंध के बारे में ओकरा मनऽ में उठी रहलऽ छै-‘राजो सिंध केरऽ बिहा कैहने नै हाव॑ पारै छै?’

सितरम्मा अभी ई सब सोचिये रहलऽ छेलै कि ओकरऽ बचपन के दोस्त परतप्पा तेल पियैलऽ लाठी लैक॑ आबी गेलै। परतप्पा माने कि प्रताप नारायणप सिंह आरो सीताराम सिंह गामऽ के मिडिल इस्कूली में एक्के साथें सतमा किलास तांय पढ़ने छेलै। सतमा किलास में आबियऽ क॑ परतप्पा के ‘कुर्ता’ आरो ‘कुत्त’ शब्दऽ में पफरक नै समझ में ऐलऽ छेलै। ई दू टा शब्द पढ़ै में हरदम गड़बड़ाय जाय छेलै। ‘कुर्ता’ क॑ ‘कुत्त’ आरो ‘कुत्त’ क॑ ‘कुर्ता’ पढ़ी दै छेलै। ओकरऽ दिमाग भलें तेज नै छेलै मतुरकी देह बड़ी जब्बड़ छेलै। दौड़ै में, कबड्डी, पफुटबॉल खेलै में, कुस्ती लड़ै में ओकरऽ किलासऽ में कोय ओकरऽ बराबरी नै कर॑ पारै छेलै। जवान होला पर लाठियो चलाबै में तेजगर निकली गेलऽ छेलै। तेल पिलैलऽ मोटका लाठी ओकरा हाथऽ में हरदम रहै छेलै। हलांकि ओकरऽ पढ़ाय सतमा किलास सें आगू नै बढ़॑ सकलऽ छेलै। मतुरकी सितरम्मा के साथ ओकरऽ इयारी उमीर बढ़ै के साथें-साथें खुब्बे गाढ़ऽ होलऽ गेलऽ छेलै। सितरम्मा के विद्या-बुź के वू कायल छेलै। अपनऽ इयार के बड़ी सम्मान करै छेलै। ओकरा ई बात के गर्व छेलै जे ‘इनभरसीटी’ में पढ़ैवला विद्यार्थी ओकरऽ दोस्त छै।
‘दोस्त पंचायत के तमाशा देखै के विचार नै छौन की?’
‘पंचायत के तमाशा? ’-अचरज में पड़ी क॑ सितरम्मा दोस्त क॑ पूछने छेलै।

‘है गामऽ के पंचायत के पफैसला तमाशा नै छिकै त॑ की छिकै...दण्ड-जुर्माना लगाय क॑ रूपया-पैसा हंसोतै के नाटक...आरो वू रूपया-पैसा के मुखिया-सरपंच के बीच बंदरबांट...आय दू बरिस सें उप्पर होय रहलऽ छै। मुखिया सरपंच के चुनाव होलै...पंचायत के आमदनी-खर्चा के हिसाब किताब गामऽ के केकरौ बतैलऽ गेलऽ छै, देखैलऽ गेलऽ छै...?’-परतप्पा छेलै त॑ अक्षर कटुआ मतुर की ओकरऽ प्रत्यक्ष अनुभव बड़ा सच्चा छेलै। ओकरऽ बात काटै बला नै होय छेलै।

 

‘तों कहै छऽ दोस्त त॑ चलऽ तोरा संगे हम्मूं पंचायत केरऽ तमाशा देखी आबौं।’ -कही क॑ सितरम्मा परतप्पा के साथें मुखिया जी के घरऽ दिस चली देने छेलै। कैहने कि गामऽ में कोय पंचायत भवन नै छेलै, यह॑ लेली मुखिया जी के मकानै क॑ पंचायत भवन मानी लेलऽ गेलऽ छेलै। सबटा पर पंचैती, सुलह-पफैंसला मुखिया जी के दुआरियै पर होय छेलै।

 

दोनों दोस्त वहां पहुंची क॑ देखलकै कि मुखिया जी केरऽ दुआरी पर तिल रखै के जगह नै छेलै। सांसे गामऽ के छबारिक, अधवैसू, बुढ़बा सिनी मुखिया जी के दुआरी पर जुटलऽ छेलै। जुटतियै कैहने नै 1. चमचोरी सें बढ़ी क॑ रसगरऽ मोकदमा कोय नै होय छै। औरत-मरद के नाजायज संबंध के चर्चा करै में, सुनै में जेतना रस मरद सिनी क॑ मिलै छै ओतना रस रसगुल्लो खाय में न×ा् मिलै छै। ई एक मनोवैज्ञानिक रस छिकै। चोराय-नुकाय क॑ करै वाला काम के चर्चा बड़ी रसदार होय छै। अचानके जदी ई तरह के चर्चा सुनै लेली मिली जाय तब्ब॑ के नै सुनै ल॑ चाहतै? सुनी क॑ मजा नै लै ल॑ चाहतै?

 

दोनों दोस्त क॑ वहां पहुंचै में शायद देर होय गेलऽ छेलै। राजो सिंध सें सबाल-जबाव होय गेलऽ छेलै। पफुलेसरी त॑ नै पफुलेसरी के मसोमात माय पंचायत में हाजिर छेलै। ओकरा सें पूछ-ताछ होय गेलऽ छेलै। अपराध राजो सिंध हाथ जोड़ी क॑ एक तरपफ खड़ा छेलै, मुड़ी लबाय क॑। मुखिया जी आरो सरपंच के बीचऽ में पछियारी टोला के मरड़ अघोरियो मांझी बैठलऽ छेलै। ई देखै लेली कि ओकरऽ टोला बला के साथें कोय बेइंसापफी नै होय जाय।

 

सितरम्मा देखने छेलै जे मुखिया, सरपंच आरो मरड़ अघोरी मांझी के बीच कुछ देर घुसुर-पफुसुर होलै। पफरू मुखिया जीं पफैसला सुनैतें कह॑ लगलऽ छेलै-‘पफुलेसरी के माय, राजो सिंध आरो रात के जमा होलऽ भीड़ के आदमी सिनी सें सबाल-जबाव करी क॑ ई बात साबित होय गेलऽ छै कि राजो सिंध चमचोरी करै लेली छरदेवाली तड़पी क॑ पफुलेसरी के ऐंगना में घुसलऽ छेलै मतुरकी पफुलेसरी के मसोमात माय के नींद खुली गेला पर, गदाल कर॑ लगला पर आरो गदाल सुनी क॑ आदमी सिनी के जुटी गेला पर पफुलेसरी केरऽ इज्जत बची गेलै। चमचोरी करै लेली पुफलेसरी के एेंगना में घुसै लेली पंचायत राजो सिंध पर तीन हजार टका के जुर्माना लगाबै छै। राजो सिंध दू घंटा के भीतर जुर्माना के टका सरपंच के हाथऽ पर जमा करी दै। राजो सिंध लगां यदि रूपया नै रह॑ तब्ब॑ रजेसर सिंध कन एक बीघा खेत सुदभरना रखी क॑ राजो सिंध रजेसर सिंध सें टका लै क॑ पंचायत जुर्माना जमा कर॑ पारै छै। ’’

 

‘हुंः एकरै कहै छै एक गोली में दू शिकार’-मुखिय जी के पफैसला सुनी क॑ परतप्पा बुदबुदैलऽ छेलै।
‘माने?’-सितरम्मा पुछने छेलै। ‘माने आरो की, रजेसर सिंध के पांच वीघा के प्लौट के बीचऽ में राजो सिंध के डेढ़ बिघिया पड़ै छै। एक बेर सुदभरना लिखाय गेला के बाद जमीन कहां छुटै बला छै। हौ बहियार में रजेसर सिंध के एक्कछत्तर राज होय जैतै। चमचोरी के पफैसला होय गेलै....रजेसर सिंध क॑ जमीनऽ मिली गेलै। ’’
‘हुंः- सितरम्मा बड़ी गंभीर होय क॑ कहने छेलै।

पंचायत के पफैसला पर जदी केकरै, कुछ कहना छै त॑ कह॑ पारै छै।’’-मुखिया जीं घोषणा करने छेलै।
मुखिया जी के बात सुनी क॑ सब त॑ चुप लगाय गेलऽ छेलै मतुर की सितरम्मा कहने छेलै-‘हमरा कुछु कहना छै।’

 

‘हों यह॑ बाकी छेलै...अब्ब॑ ऐतै असली मजा...लंगड़ा चमचोर के पैरबी करै लेली लंगड़ा वकील आबी गेलै....।’-बकथोथरी करै लेली सौंसे गामऽ में बदनाम नटेसर झा कही क॑ टठाय क॑ हंसी देने छेलै। ओकरा साथें-साथें वहां जमा सब टा आदमियो ठठाय देने छेलै। केकरौ चार टा गारी दै देना, केकरौ सें चार गारी सुनी लेना नटेसर झा लेली कोय बड़ऽ बात नै छेलै। बेइज्जत होय क॑ बेइज्जत करै के कोय डऽर-भय नै।
नटेसर के ठटोली सुनी क॑ परतप्पा के तरबा के लहर कपारऽ पर चढ़ी गेलऽ छेलै। ई बात वें कोनो कीमत पर बरदास्त नै कर॑ पारै छेलै कि ओकरऽ एतना पढ़लऽ लिखलऽ दोस्त क॑ ‘लंगड़ा’ कही क॑ कोय बेइज्जत करी दै। वू कोय तरह सें अपनऽ गोस्सा पर काबू करतें हुएं बोललै-‘नटेसर कक्का मुंह संभारी क॑ बोलऽ नै त॑ अच्छा नै होथौ...।’’
‘की अच्छा नै होतै....’-कही क॑ पफरू ठठाय देने छेलै नटेसर झा।
‘कॉलेज, इनभरसीटी पास, पढ़लऽ-लिखलऽ विदवान आदमी क॑ लंगड़ा कही क॑ तों बेइज्जत नै कर॑ पारै छऽ...।’
‘लंगड़ा क॑ लंगड़ा नै कहलऽ जैतै तब॑ की कहलऽ जैतै....महाभारत में कथा आबै छै...अष्टावŘ जैसनऽ विदवान ट्टषि क॑ देखिये क॑ राजा आरो

ओकरऽ सभासद हंसलऽ छेलै...ई परम्परा त॑ महाभारत के समयै सें चललऽ आबै छै..।’ कही क॑ नटेसर झा पफरू ट्ठाय क॑ हंस॑ लगलऽ छेलै।

नटेसर झा क॑ हंसतें-देखी क॑ परतप्पा अपनऽ लाठी उठाय क॑ नटेसर झा दिस दौड़लऽ छेलै ई कहतें हंुए-महाभारत के बात निकललऽ छै त॑ महाभारत होइए क॑ रहतै...नट्टू कक्का के मुड़ी पफुटला के बाद मुड़पफुटौअल आरो चमचोरी के पफैसला एक्के साथ होतै...’
परिस्थिति क॑ गड़बड़ैतें देखी क॑ हिन्न॑ कुछु आदमीं परतप्पा क॑ रोक॑ लगलऽ छेलै आरो हुन्न॑ मुखिया जीं नटेसर झा क॑ धप॑-डांट॑ लगलऽ छेलै-नटेसर झा तों बुढ़ाय गेलऽ छऽ मतुरकी बोलै के सहूर नै ऐलऽ छां.....नै समय देखै छऽ..नै जग्धऽ...जे मुंहऽ में आबै छौं बक्की दै छऽ...जा...तों जा यहां सें...तोरा यहां के बोलैन॑ छौं...तोरऽ यहां कोय काम नै छै...’ कहतें-कहतें मुखिया जीं एक तरह सें नटेसर झा क॑ धक्का दै क॑ अपनऽ दुआरी पर सें भगाय देने छेलै।

‘‘हों कहें नूनू सीताराम तों की कहै ल॑ चाहै छें?-मुखिया जी सितरम्मा सें पूछने छेलै।
‘हम्में सिरपफ दू टा बात कहै ल॑ चाहै छियै मुखिया कक्का....एक टा ई कि राजो सिंध पर जुर्माना करला सें सतुआ साथें धनऽ पिसाय जैतै....’
‘माने?’

माने ई कि अपने त॑ जानै छियै राजो सिंध पास कुल जमा डेढ़ बीघा धन खेती छै। ओकरा में जे सेर कनमा उपजै छै वह॑ सें मांड़-भात खाय क॑ राजो सिंध आरो ओकरी बूढ़ी मसोमात माय गुजारा करै छै। डेढ़ बीघा में सें जदी एक बीघा सुदभरने लिखाय जैतै तब॑ त॑ बूढ़ी मसोमात के परान खैला बिना निकली जैतै..’
‘हूं... आरो दोसरऽ बात?’

‘दोसरऽ बात ई कि लत्त-पत्त, घास-भुस्सा खाय बला पाठा, बाछा जे छै वूहऽ गाय-बकरी के पीठी पर उठै के कोशिश करै छै...राजो भाय त॑ अन्न-जल ग्रहण करै बला आदमी छेकै... चमड़ा लेली चमड़ा के इंतजाम जदी घरै में होय जाय तब॑ आदमी चमचोरी कथी लेली करतै...’

‘माने..?’
‘माने ई की राजो भाय के जदी बिहा होय जाय तब॑ राजो भाय...माने की पंचायत जदी राजो भाय पर जुर्माना नै करी क॑ राजो भाय के बिहा कराय दै। ’

‘पंचायतें बिहा त॑ कराय देतै मतुर की ऐबाहा क॑ लड़की के दैतै? तोहें लड़की जदी खोजी दहीं...’
‘हमरा नजर में लड़की त॑ एक टा छै।’
‘के....कहां...?’
‘यह॑ गामऽ में...दसरथा कक्का के बेटी...चम्पिया दीदी...दोनऽ उच्च कुल के राजपूत...गरीब होला सें की होतै...दोनो घऽर इज्जतदार...’

मुखिया जी सितरम्मा के बात सुनी क॑ दोनों आंख मुंदी क॑ थोड़॑ देर सोच॑ लगलऽ छेलै। पफरू दसरथ सिंध दिस मुंह करी क॑ पुछने छेलै ‘की दसरथ जी.... सीताराम नूनू के विचार तोरा पसंद छौन...?’

दसरथ सिंध एक कोना में खड़ा-खड़ा पंचैती देखी रहलऽ छेलै। हाथ जोड़ी क॑ कहने छेलै-‘हम्में दहेज दै में असमर्थ छी यह॑ लेली कुमारी बेटी घरऽ में बैठली बुढ़ाय रहली छ॑ बत्तस बछर के होय गेलऽ छै...राजो जदी हमरा उźार करी दिय॑..अंधरा की चाह॑ दू टा आंख...हमरा जैसनऽ निपुत्तर के दामाद के रूपऽ में बेटा मिली जाय त॑ बुढ़ापा के सहारा होय जाय...’

सौंसे गामऽ के पुरोहित विष्णु मिसिर बिहा के बात सुनथै मने मन हिसाब लगाव॑ लगलऽ छेलऽ-बिहा कराय देला पर वर-कन्या पच्छ सें नै कुछु त॑ कम सें कम एक जोड़ा धती, एक जोड़ा गमछा, एकामन-एकामन टका नगद त॑ मिलबे करतै।’ सेहे विष्णु मिसिरें घोषणा करी दैने छेलै ‘राजो नूनू के जदी मऽन होय त॑ हम्में बिना दान-दछिना लेलें बिहा कराय देबै...वैसाख सुकुल पच्छ पंचमी तिथि क॑ बीहा करै के बड़ा शुभ मुहूरत छै..’

विष्णु मिसिर के बात सुनी क॑ पंचैती देखै वला सब ठठाय क॑ हंस॑ लगलऽ छेलै। मुखियऽ जी मुसकाय क॑ राजो सिंध सें पूछने छेलै-‘की रे रजवा...चम्पिया पसन छौ....बिहा करै लेली राजी छें...’

राजो सिंध माथा लवाय क॑ लजैलऽ-लजैलऽ कहनें छेलै-‘अपने सिनी के जे हुकुम...’
राजो सिंध के बात सुनथैं विष्णु मिसिर रामायन के चौपाई उठाय देने छेलऽ-
मन जाहि राचेउफ मिलहिं सोइ बर, सहज सुन्दर सांवरो।
करूना निधन सुजान सील सनेह जानति रवरो।।

विष्णु मिसिर के साथ चौपाई गैतें-गैतें पंचायत देखवैया सिनी अपनऽ अपनऽ घरऽ दिस जाब॑ लगलऽ छेलै। राजो सिंध ओकरै सिनी साथें छेलै। गामऽ के सबसें बड़का बतबन्नर आरो गामऽ के काली मेला के अवसर पर होय बला नाटक में जोकड़ बनी क॑ सब क॑ हंसाबै बला छौड़ा कमलदेबा राजो सिंध के बांय पकड़ी क॑ बड़ी गंभीर होय क॑ राजो सिंध सें कहने छेलै-‘राजो भाय याद रखिहऽ वैसाख सुकुल पच्छ पंचमी तिथि...एतना दिन जी आरो जांघ बान्ही क॑ रखिहऽ नै त॑ अबरी हंसुआ, कचिया निकलथौं...-बात पूरा नै करी क॑ कमलदेबा ठठाय क॑ हंसी देने छेलै। साथें-साथ सब आदमी ठठाब॑ लगलऽ छेलै। राजो सिंघे लजाय क॑ मुड़ी नबाय लेने छेलै।

चमचोरी | अंगिका कहानी | राकेश पाठक

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