Search Angika Kahani

Tuesday, May 3, 2016

हिनका उठाय लिहऽ | Angika Kahani | अंगिका कहानी | Hinka Uthai Lihow | Angika Story | राकेश पाठक | Rakesh Pathak

हिनका उठाय लिहऽ | अंगिका कहानी | राकेश पाठक

Hinka Uthai Lihow | Angika Kahani | Angika Story | Rakesh Pathak

‘‘आंय गे पफुलिया आय ऐत्त॑ मनझमान कैहने छें?’’ करैला के पेट पफाड़ी क॑ ओकरा अन्दर सें बिच्चा निकालतें-निकालतें मालकिन प्रोपफेसरनी जी घरऽ में चौका वर्तन करै वाली नौकरानी पफुलिया सें ऐसैं मऽन बहलाबै लेली पूछी लेने छेली। असल बात ई छेलै कि प्रोपफेसर नरेन्द्र बाबू क॑ भरूआं करैला बड़ी अच्छा लगै छेलै। सेह॑ कालेज जाय घरियां अपनऽ कनियांय क॑ कही गेलऽ छेलै-‘सुनै छऽ चनरपुरा वाली दाल भात पर भरूआं करैला जरूर बनाय दिहऽ नै त॑ हम्में भुखले रही जैबऽ।’’

 

प्रोफेसर साहेबें काल्ह सांझै बजारऽ सें आधा सेर हरियर-हरियर मंझौला साइजऽ के करैला कीनी क॑ लै आनल॑ छेलै। सीजन के नैका तरकारी होला के कारण दाम तनिटा बेसिये दैल॑ पड़लऽ छेलै। मनऽ में सोचने छेलऽ आčा सेर करैला के भरूआं दू सांझ अघाय क॑ खैलऽ जैतै। घरऽ में खबैये कै टा छै? एक टा हुनी अपने, एक टा हुन्कऽ कनियांय आरो एक टा नूनू अखिलेश। मतुर की एक-एक टा करैला के पेट चीरी क॑ बिच्चा निकालना, मसाला के साथ भूंजना आरो पफरू करैला में भरना प्रोपफेसरनी चनरपुरा वाली लेली बड़ा मुसकिल काम छेलै। मतुरकी उपाय की छेलै... पतिदेव के प्रोपफेसर साहेबी हुकुम छेलै। बनाबै लेली त॑ पड़बे करतै...चाहे हंसी क॑ बनाबऽ चाहे कानी क॑....।

 

सेहे चनरपुरा वाली अनमनैली, अनठैली रं करैला के पेट चीरी क॑ बिच्चा निकाली रहलऽ छेली। कामऽ में मऽन लगी नै रहलऽ छेलै। सेहे मऽन बहलाबै लेली पफुलिया सें एन्है बात पूछी बैठलऽ छेली।

 

पफुलिया के चेहरा पर वू दिन ठिक्के आरो दिन ऐसनऽ स्वाभाविकता नै छेलै। बिना कुछु बोललें-बतियैलें मनझमान होय क॑ भिंजलऽ पोछना सें घरऽ के पक्का पफर्श पोछी रहलऽ छेलै। िčायान सें देखला सें कननमुंही-कननमुंही रं लगी रहलऽ छेलै ओकरऽ समता बरन चेहरा।
‘की करबऽ मलकायन... गरीबऽ क॑ त॑ भगमानै मनझमान बनाय क॑, दुखी बनाय क॑ सरंगऽ सें ई čारती पर भेजै छऽत.... मनझमान होय के एक टा कारण रह॑ तब॑ न बतैलऽ जाय। ’’

 

हंऽ पफुलिया तोरऽ कहना ठीक्के छौ.....तोरा घऽर-बाहर दोनऽ सम्हारै ल॑ पड़ै छौ...एक टा अबस-लोथ आदमी के देख-भाल करना कम झमेला के बात नै छै....उप्पर सें खाना-खर्ची चलाबै लेली कमऽ सें कम पांच-सात टा घरऽ में बर्तन čाना, कपड़ा čाना, घऽर में पोछा लगाना....’’

 

‘की करबऽ मलकायन हुन्कऽ देलऽ सिन्नुर मांगऽ में लै छियै त॑ सिन्नुर के लाज त॑ निभावै लेली पड़तै नी....जखनी तांय हुनी ठीक-ठाक छेलै, कमाय-čामाय छेलै तखनी तांय एक चुटकी नीमक लेली हमरा घरऽ सें बहराब॑ नै देने छेलात....जहां तांय पारै छेलात भोर सें आठ नौ बजे रात तांय बिल्डिंग के रंग करै में लगलऽ रहै छेलै...कत्त॑ दिन त॑ रात भर काम करतें रहै छेलै...हमरा खाय पिन्है के तकलीपफ नै होब॑ देने छेलै।.. अब्ब॑ खटिया पर पड़ी गेलऽ छऽत त॑ हम्में नै देखबै त॑ के देखतै...हम्में हुन्कऽ बिऔहुआ छिकां ....रखनी नै। ’’ कहतें-कहतें पफुलिया के दोनऽ आंख लोर से डबडबाय गेलऽ छेलै। कपस॑ लगली छेली।

 

‘नै कानें पफुलिया....कानला सें दुख घटै नै छै बढ़िये जाय छै...चुप रहें...हिम्मत सें काम ले ....भगवानें एक दुआर बंद करै छै त॑ दोसरऽ दुआर खोली दै छै...भगवान तोरा एक टा बेटा देने छौ ......आčो पेट खाय क॑....भुखलऽ रही क॑ होकरा पढ़ाबें-लिखाबें...तोरऽ दुख दूर होय जैतौ.....’’-करैला के पेट सें बिच्चा निकालतें-निकालतें चनरपुरा वाली पफुलिया क॑ ढाढ़स देने छैली।

 

यह॑ त॑ दुख छै मलकायन.....नुनुआं आज इसकूल नै जाय क॑ तरकारी बेचै लेली भैरो चच्चा संगे बजार गेलऽ छै...काल्ह मकान मालिक घर भाड़ा दै लेली हमरा दोनऽ बेकत क॑ गारी पारी देलकै। नूनू क॑ बात लगी गेलै। तखनियें कहलकै माय गे आब॑ हम्में इसकूल नै जैबौ...आब॑ हम्में काम करबौ। रात क॑ जाय क॑ भैरो चच्चा सें पता नै की बतियैलकै...भैरो चच्चा हमरा आबी क॑ कहलकै कि पफुलिया दुःखें तोरऽ सात बरिस के बेटा क॑ सत्तर बरिस के बुढ़बा बनाय देने छौ....जाब॑ दहीं काल्ह सें हमरा साथें बजार अपनऽ दोकानी के बगलै में ओकरा आलू, बैगन, टमाटर, कोबी दै क॑ बैठाय देबै...सांझ तांय बीस-तीस टका झाड़िये लेतै। की करतै पढ़ी-लिखी क॑। कत्त॑ इए-बी.ए., एम.ए. čाक्का खाय रहलऽ छै। नौकरी कहां मिलै छै।’’

 

‘सच्चे पफुलिया, दुख तकलीपफ के मार खाय क॑ तोरऽ सात बरिस के बुतरू सत्तर बरिस के बुढ़वा बनी गेलऽ छौ। ई उमीर में कै टा बुतरू इसकूल सें टिपिफन टाइम में आबी क॑ लोथ बाप क॑ कौर-कौर करी क॑ मुंहऽ में खिलाय छै....’

 

‘हंऽ मलकायन से त॑ छै, हम्में त॑ सबेरे साते बजे कहियऽ खिचड़ी कहियऽ गोलहत्थी आरो कहियो मांड़ के झोर भात बनाय क॑ घरऽ सें निकली जाय छियै। दुपहरिया में छौड़ैं आबी क॑ बापऽ क॑ खाना खिलाबै छै। पानी पिलाबै छै। चारो हाथ-गोड़ त॑ उठथैं नै छै...बेचारा एक गिलास पानियों लै सें नचार छै। एक दिन छौंड़ां हमरा कहने छेलै हे गे माय दुपहरियां जखनी हम्में ईसकूल सें ऐलऽ छेलियौ तखनी बाबू कानी रहलऽ छेलौ। एक गिलास पानी देलियौ त॑ पीबी क॑ चुप होय गेलऽ छेलौ।

 

‘‘की करतै हाथ-गोड़ सें लोथ आदमी भूख-पीयास लगला पर कानै-कपसै के अलावा आरो कर॑ की पारै छै’’
‘‘सच्चे कहै छिहौं मलकायन, हुन्कऽ दुख देखी क॑ मने-मन कानतें देखी क॑ करेजा पफटी जाय छ॑...हम्में चौबीसो घंटा हुन्का साथें बैठलऽ रही जैबे तब॑ हुनी एक कोर भातऽ लेली बिलिला होय जैता...येह॑ लेली त॑ हम्में भगमान सें पराथना करै छी...हे भगवान हमरा सें पहिनें तंऽ हिन्का उठाय लिहऽ...‘‘-कहतें-कहतें पफुलिया के दोनो आंखी सें लोर टपक॑ लगलऽ छेलै।

 

हय की कहै छें गे पफुलिया...हय रं कुभक्खा मुंहऽ सें नै निकालें ....नै कुछु त॑ अखनी मांगऽ में तोहें एक चुटकी सिन्नूर त॑ पीन्ह॑ पारै छें’’
‘की करियै मलकायन हिन्कऽ दुख नै देखलऽ जाय छै आब॑ दिशा-मैदान, पेशाब सब त॑ खटियै पर होय छै। एक टा बुतरू रं हम्मे सब कराय छियै। चुत्तड़ čाय छियै। जब तांय हमरऽ जिनगी रहतै तब तांय हम्में ई सब करतें रहबै। लाजऽ के बात छिकै। बेटा-पुतौह ई सब केना करतै। हमरा मरला पर हुन्कऽ की हालत होतै? सेह॑ लेली भगमान सें पराथना करै छी हे भगमान हमरा सें पहिलें हिन्का उठाय लिहऽ ...’’ कहतें-कहतें पफुलिया अंचरा से अपनऽ मुंह झांपी क॑ पफनु कान॑-कपस॑ लगलऽ छेली। कन्नाहट के आवेग सें ओकरऽ सौंसे देह कांपी रहलऽ छेलै।

 

चनरपुरा वाली के समझे में नै आबी रहलऽ छेलै कि हुनी पफुलिया क॑ की कही क॑ चुप करैती। पफुलिया के बातऽ में पफुलिया मनऽ के सब टा दुख-चिंता के साथें-साथ विकलांग जीवन के कठोर सच्चाइयो सनैलऽ छेलै।

 

थोड़ऽ समय बाद पफुलिया के कपसै के आवेग कमी गेलै। पफुलिया शांत होय गेलै तब॑ चनरपुरा वाली पूछने छेली-‘‘आंय गे पफुलिया, तोरऽ दुल्हा के ई हालत होलौ केना गे?’’

 

बांसऽ पर बांस बान्ही क॑ पांच तल्ला बिल्डिंगऽ के सबसें उपरलका तल्ला के देवालऽ पर बाहर सें रंग करी रहलऽ छेलै। बांसऽ पर सें गोड़ पिफसली गेलै। सीčा जमीन पर गिरलै čाड़ाम सें। रीढ़ के हड्डी टूटी क॑ दू खण्ड होय गेलै। साथे-साथ दिमागऽ में भितरिया चोट लगी गेलै। डाक्टरें कहने छेलै जे यह॑ लेली सौंसे देह लोथ होय गेलै। मुंहऽ के अवाजो जिनगी भर लेली बंद होय गेलै।’’-कही क॑ पफुलिया तितलऽ कपड़ा सें कोठरी के पफर्श पोछ॑ लगली छेलै आरो चनरपुरा वाली करैला के पेट पफाड़॑ लगलऽ छेली। पफुलिया के बात सुनी क॑ हुन्कऽ आंख डबडबाय गेलऽ छेलै। हुनियों त॑ आखिर एक टा जनानिये छेली जेकरऽ हिरदय कठोर नै कोमल-नरम होय छै। दया-माया सें भरलऽ रहै छै।

हिनका उठाय लिहऽ | अंगिका कहानी | राकेश पाठक

Hinka Uthai Lihow | Angika Kahani | Angika Story | Rakesh Pathak


No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.

Search Angika Kahani

Carousel Display

अंगिकाकहानी

वेब प नवीनतम व प्राचीनतम अंगिका कहानी के वृहत संग्रह

A Collection of latest and oldest Angika Language Stories on the web




संपर्क सूत्र

Name

Email *

Message *