गाँव के अन्तिम छोरोॅ पर जहाँ सें सरकारी परती जमीन शुरू होय छै, वही ठियाँ एक किनारी पर तपेसर के पुस्तैनी घोॅर मरम्मत के प्रतीक्षा में गुमसुम उदास खाड़ोॅ छै। एक समय छेलै जबेॅ गाय- भैंसोॅ सें भरलोॅ यै बथानी पर दूध पानी रं बहै छेलै।आय वही जग्घा पर खाली एक बूढ़ी भैंस बन्हलोॅ देखी केॅ तपेसर के मोॅन दुक्खोॅ सें भरी जाय छै। सोचै छै ई केना होय गेलै ? फेरू सोचै, ऐन्हों केना नै होतियै ? गाँव वाला में जरूरत सें बेसी स्वास्थ भरी गेलोॅ छै। परती-पराँट-सब जमीनोॅ केॅ जे मबेशी सिनी के चरै लेली बाप-दादां छोड़नें छेलै, सब आबाद करी लेलकै लोगें।
लोगें कचहरी की देखलकै, स्वर्ग देखी लेलकै आरो स्वर्ग के देवतौ होने मिललै। दही के कनतरा आरो घोॅ के मेटिया देखी केॅ पिघली जाय छै। वै दिन साँझ केॅ सुदी मियां भोकार पारी केॅ कानेॅ लागलै- ‘‘तपेसर भइया, हमरा तोहीं बचाबेॅ पारै छोॅ। हमरोॅ पाँच कट्ठा जमीन चकबन्दी में अमीनें तोरा नामोॅ सें करी देनें छै। कहला पर कहै छै-‘‘बड़का ऑफीसोॅ सें लिखवाय केॅ लान।’’ ... तपेसर के लिखलौ पर काम नै होलोॅ छेलै। केना काम होतियै बेचारा के! ओकरा जिम्मा टका जे नै छेलै। मामला सुलझै के बदला चकबन्दी सौंसे गाँमोॅ केॅ उलझाय देलकैं।...दुवारी पर बैठलोॅ तपेसर नै जानौं कब तांय यहेॅ रं सोचतेॅ रहैतियै कि तखनिये काकी, तपेसर रोॅ पत्नी आबी गेलै। घरोॅ सें दुआरी पर काकी के आबै के मतलब समझियोॅ केॅ तपेसरें पुछलकै- ‘‘कोनोॅ काम बाँकी रही गेलोॅ छै कि तिरखी माय ?’’तिरखी, तपेसर काका के बेटी के नाम छेकै। काकी कहलकै...‘‘बहियारोॅ में धान के काटलोॅ पŸान छै, जोगै लेॅ नै जोभौ की ?’’
तपेसर अनमनोॅ भाव सें उठलै आरो खाय लेॅ चललोॅ गेलै। खाना में दूध के नै होभोॅ ओकरा खललै, मतुर ई सोची केॅ ऊ चुप्पे रहलै कि गाँव में कोय दूध नै देलेॅ होतै, नै तेॅ भैंस विसखैला के महिनौं बाद आय पहिलोॅ दफा दूध लेली करलोॅ फरमैश जरूरे पूरा होतियै। होना केॅ, गाँव में आबेॅ पैसॉे सें दूध कीनी केॅ खैला में कोय लाभ नै। आबेॅ लोगें दूध नै पानी बेचै छै, हों पानी। दूधों में पानी...।
तपेसर जल्दी-जल्दी खाना खाय केॅ उठलै आरो कम्बलोॅ के फाटलोॅ-पुरानोॅ चदर लपेटी केॅ देहोॅ पर लै लेलकै, फेनू वें जानलेवा जाड़ा में कोस भर दूर खेतोॅ पर लाठी लेनें धानोॅ के रख वाली करै लेॅ चली पड़लै। असकल्लोॅ आदमी। सुनसान रास्ता। गाँव के बाहर कुŸा आरो बहियारोॅ में गीदड़ोॅ के मिललोॅ-जुललोॅ आवाज रात के शांति केॅ चीरी के ई रं प्रतिध्वनित करी
धानोॅ के जोगवारी करी रहलोॅ किसान-मजदूरोॅ के ठहकी केॅ ‘हो-हो’ करवोॅ ओकरा डरोॅ सें बचाबै।
पुआल-आँच के रसोईबŸार्न के पेंदा रं रात करिया छेलै। खेतोॅ के
एकपैरियां आरी सें होय केॅ आपनोॅ बहियारी दिशा में बढ़लोॅ जाय रहलोॅ छेलै तपेसर। आरी पर धानोॅ के पौधा जे अभी कटै लायक नै भेलोॅ छेलै, आकि जे किसानोॅ के व्यस्तता के कारण कटबैलोॅ नै गेलोॅ छेलै, दुनु तरफोॅ सें उलझी केॅ पसरलोॅ छेलै। वै पर सें होय केॅ जैबोॅ बरफोॅ पर सें गुजरै नाँखी दुखदायी लागी रहलोॅ छेलै। एकाध दाफी पातरोॅ आरी सें जबेॅ ऊ खेतोॅ में गिरी जाय तेॅ अनचाहने- अनचोके ओकरोॅ मुँहोॅ सें सिसकारी निकली पड़ै, तबेॅ ऊ आपनोॅ गरीबी आरो चाहियोॅ केॅ जूता आरो चोरबŸा नै कीनेॅ पारै के स्थिति पर झुंझलाय पड़ै। तपेसर ससरी केॅ खेतोॅ में गिरी गेलोॅ छेलै। ओकरोॅ दुनों गोड़ सुन्न होय गेलोॅ छेलै।
तपेसर आय सें दस साल पहिनें के ख्यालोॅ में डूबी जाय छै। जबेॅ कटलोॅ धानोॅ के जोगवारी करै लेली कोय्योॅ केॅ खेतोॅ नै जाय लेॅ पड़ै छेलै। परसुवे के तेॅ बात छेकै, खेतोॅ के मोरका में सुतलोॅ पाबी केॅ छंगुरी केॅ चोरें ओकरा खटिया नीचें दाबी देलकै आरो भीतरोॅ सें हल्ला करतें देखी छगुरी केॅ अतना मारलकै कि बेचारा अठवारा ताँय कुहरतैं रहलै। एन्होॅ लोगोॅ केॅ कौंनें नै जानै छै ? मतुर बोलै छै के ? पौरकां जीतना बोललोॅ छेलै कि......है सब बढ़ियॉं बात नै छेकै। एन्होॅ लोगोॅ केॅ मिली केॅ पकड़ोॅ, बाँधोॅ आरो पीटोॅ, फेनू थानौ गेलै। जीतना थानौं नै जाबेॅ पारलै। आखिर पुलिसोॅ लानै लेॅ तेॅ पान-परसाद चाहवॅे करियोॅ।
विचारोॅ में डुबलोॅ तपेसर जबेॅ आपनोॅ खेतोॅ पर पहुँचलै तेॅ ओकरा लागलै कि ओकरोॅ गोड़, गोड़ नै बर्फ होय गेलोॅ छै।वें आपनोॅ फूस के बनलोॅ झोपड़ी के ऊपरलका पुआल सें गोड़ पोछै लेॅ चाहलकै मतुर वहू शीत में भींगी केॅ बर्फ होय चुकलोॅ छेलै। भीतरोॅ सें सुखलोॅ पुआल लै केॅ वें गोड़ोॅ केॅ खूब बढ़ियाँ सें पोछलकै आरो जेबी सें सलाय निकाली आगिन जोरलकै। फेनू हाथ-गोड़ सेकेॅ लागलै। अगहन खतम होय केॅ पूस आबी गेलो छेलै। पछिया हवा के लगातार चलला सें ठंड सातमों आकाश पर चढ़ी गेलोॅ छेलै। बहुत देर ताँय आगिन जलाय केॅ सेंकला केॅ बादॉे तपेशर के मोॅन नै अघैलोॅ छेलै। लरूआ खेतोॅ पर कम छेलै यै लेली नहियोॅ चाही केॅ आग सेकै के मोह छोड़ी केॅ ओकरा मोरका में जाय केॅ बैठै लेॅ पड़लै।
सगरॉे दिन के थकलोॅ तपेसर हाड़ सीधा करै लेली पटावै के बहुत इच्छा रहथौं पटावेॅ नै पारी रहलोॅ छेलै।चारोॅ तरफ जन्हैं हाथ करै हुन्हैं ठारे-ठार।लरूआ सें देह तापी केॅ पटैला सें नींद आबी जाय के डोॅर रहै, देहोॅ केॅ गर्मी मिललै कि नींद ऐलै आरो सुतै लेली बहियार कोय कथी लेॅ ऐतै ? सुतै लेली तेॅ घोॅर छेबे करै।
आखिर में तपेसरें बीचोॅ के रास्ता निकाललकै आरो बैठलोॅ-बैठलोॅ देहोॅ केॅ लरूआ सें झाँपी लेलकै। गल्ला सें ऊपरी हिस्सा केॅ खाली बाहर राखी, सामना के कटलोॅ फसलोॅ पर आँख गड़ैनें आपनोॅ अतीत आरो वŸार्मान के चिंता में डूबतें-उतरैतें रहलै।
जबेॅ-जबेॅ आबै वाला कल के चिंता में ऊ डूबै तेॅ डरी जाय। जहाँ तक ओकरा दिखाय पड़ै खाली निराशा, बेकारी, भूख आरो किल्लतोॅ सें भरलोॅ जिनगी। गाँव में दुवे-चार लोग एन्होॅ छेलै जे राजनीति पर बातचीत करै। तपेसर सोचै छै........राजनीति खाली ऊपरलके लोगोॅ के रोजगार हुवेॅ पारेॅ, जेहना हमरोॅ काम खेती करना।......काम तेॅ घरोॅ में हम्मूँ करै छियै,फेनू ई केना केॅ होय जाय छै कि हमरोॅ घरोॅ पर लरूआ के छौनियो नै पड़ेॅ सकै छै आरो राजनीति करै वाला पक्का पर पक्का के मकान बनैलेॅ जाय छै। यही तेॅ शिवोॅ मिसर छेकै, कल ताँय जजमानी करतें पेट नै भरै छेलै, आय देखोॅ केन्हों लाट बनी गेलोॅ छै।कलक्टरी ऑफिसोॅ में किरानी की भेलै जमीन्दार बनी बैठलोॅ छै......।
दुनियाँ भरी के बात असकल्लोॅ पाबी केॅ ओकरोॅ दिमागोॅ में कुलबुलाबेॅ लागलोॅ छेलै। वें माथोॅ में झटका देलकै। आरो ओकरोॅ धियान आपनोॅ गृहस्थी तरफें लौटी ऐलै...विहानै धान के बोझाॅ उठलोॅ खुतोॅ में होॅर चलाना छै। ओकरा पूसोॅ के ई भीषण ठारोॅ में तड़के भोरे उठी केॅ पहुँचना छै। बैलोॅ केॅ खिलाना छै।कन्धा पर होॅर उठैनें बैलोॅ साथें खेत जाना छै। कतना व्यस्तता छै!कतना काम छै !..... आपनोॅ खास खेती तेॅ दुय्ये बीघा छेॅ, दू बीघा मुन्शी जी के अधबटाई करै छै। खेती के खर्च एतना होय जाय छै कि नमक रोटी चलबोॅ मुश्किल। ...... विहानै खाद देना जरूरी छै, मतरकि दस रोज पैन्हैं सें बाजार सें खाद गायब छै। कहाँ चल्लोॅ जाय छै खाद ? फसल बोआई के समय पौरकी साल से यहेॅ हाल होय छै। सरकारें परचा पर खाद दै छै, मतर आफिसोॅ के धाँधली। हप्ता भरी के चक्कर। मिलाय-जुलाय केॅ कुछुवे फायदा नै। किसानोॅ के फसल के कटनी शुरू होलौं कि हुनकोॅ सुतलोॅ- निनियैलोॅ जरूरत सुरसा मुँहोॅ नाँखी फैलेॅ लागै छै।एक फसल समुल्लम कटी केॅ खमारी पर ऐलौं नै कि दोसरोॅ फसल बुनै के तैयारी। एनहों मौका पर अनाजोॅ के दर सस्ता। गरीबोॅ घरोॅ में अनाज की ऐल्हौं, आफत ऐल्हौं। सस्ता बेचोॅ, मँहगोॅ खरीदोॅ।
तपेसर के माथोॅ दुखेॅ लागलै। कल ओकरौ धान बेचना छै। माघ जैतें- जैतें खाय लायकॉे अनाज मुश्किले सें बचै छै। यहेॅ सोचोॅ में ओकरोॅ दम घुटेॅ लागै छै।एन्होॅ लागै छै कि ओकरोॅ गल्लोॅ कोय मजबूत हाथोॅ सें दबैलोॅ जाय रहलोॅ छै आरो ऊ छटपटाय में असमर्थ अनचाहनै लाचार समर्पित होलोॅ जाय रहलोॅ छै।
आँखें वै आदमी केॅ पहचानै के कोशिश करै छै जे ओकरा बेजान करी चल्लोॅ जाय छै। वै ठारौ में सोचतें-सोचतें अनचोके ओकरोॅ मुट्ठी कसमसाबेॅ लागलोॅ छै।तखनिये बगल गाँव सें कुŸा-कानबोॅ के आवाज उठलै।... तपेसर नें निश्चय करलकै-चाहेॅ जे होय जाय, धान खाय लेली रहेॅ की नै, यै दाफी ऊ शहर जरूर जैतै, तिरखी माय केॅ डाक्टरोॅ सें देखाय लेली। दू सालोॅ सें पेटोॅ के दरद सही रहलोॅ छै बेचारीं। मरी जैतै कमैथें- कमैथें। ... कुŸा-कानवोॅ के आवाज आरो तेज होय गेलोॅ छेलै। घरोॅ सें दूर बहियारियो में ओकरा आपनोॅ घरवाली तिरखी माय के कुहरबोॅ सुनाबेॅ लागलोॅ छेलै। सोचलकै- खेतियो में कोय जादा लाभ नै छै। बिजली मोटर लगाय केॅ खेती करै वाला विशनाथौ वहेॅ रं कुहरै छै, बिजली मिलतै नै छै, खेती होतै कहाँ सें ? फेनु वें निश्चय करलकै कि अधबटाई तेॅ खैर नहियें करना छै। ओकरोॅ पीछु दिन- रात बैलोॅ नाँखी खटबोॅ आरो समय पर चोरोॅ-उचक्का सें रखवारी करै लेॅ महीना- महीना भर जगवोॅ, ठारोॅ सें ठिठरबोॅ आबेॅ संभव नै छै ओकरा लेॅ।
ठारोॅ सें पंजराठी दुखेॅ लागलोॅ छेलै तपेसर के। लरूआ केॅ छेदी ठार रोइयॉं-रोइयाँ में ढुकलोॅ जाय रहलोॅ छेलै। एन्हों में नै जानौं आरो की-की सोचतिहै तपेसरें कि तखनिये बहियारी में जोरोॅ सें हल्ला होलै-चोर- चोर, दौड़ोॅ हो ! मारी देलकोॅ हो ! बाप रे बाप......।
सुनथैं पूस के वै भीषण कँपकँपी में भी तपेसर के माथा पर घाम उपटी ऐलै। वें थोड़ोॅ देर लेॅ विचार करलकै आरो फेनू हाथोॅ में लाठी लेलेॅ गरजतें हुवेॅ पूरवें दिस बढ़ी गेलै।
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