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Wednesday, September 14, 2016

ममता | Angika Kahani | अंगिका कहानी | Mamta | Angika Story | अनिरुद्ध प्रसाद विमल | Aniruddh Prasad Vimal

ममता | अंगिका कहानी | अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Mamta | Angika Kahani | Angika Story | Aniruddh Prasad Vimal

दारोगा अब्दुल सत्तार के नया-नया ही ज्वाईनिंग होलऽ छेलै। लाख सें बेसी आबादी रो नया अनजान शहर। थाना शहर के एकभट्टऽ कसबा कासिमपुर में छेलै। मेन शहर सें ५-७ कि.मी. दूर रहला के कारण छोटऽ-मोटऽ बाजार नांकी लागै छेलै कासिमपुर। जरूरत के लगभग सब्भे सामान मिली जाय छेलै। ओना त॑ थाना में दर्जन भर सिपाही-जमादार छेलै लेकिन कासिम एक एैन्हऽ सिपाही छेलै जेकरा सें दारोगा साहब क॑ बेशी लगाव होय गेलऽ रहै। दोनो लगभग नया एकउमरिया छेलै। थोड़े दिनऽ म॑ पट्टी बैठी जाय के जे कारण रहै, हौ त॑ दू में से केकरौह पता नै छेलै मतुर जेरा के साथी सिनी कहै कि जात में जात मिली गेलऽ छै।

दशहरा आरो ईद सप्ताह भरी के अन्तर सें होला के कारण सभ्भे प्रेसर में छेलै। साम्प्रदायिक तनाव कोय भी हालत में बढ़े ॅ नै एैन्हो ॅ आदेश ऊपर सें लगातार आबी रैल्हो ॅ छेलै। सत्तार साहब थाना के बड़ा बाबू होय के कारण जादा दबाब में छेलै। हिन्नें दशहरा के पहिलो ॅ पूजा शुरू होतियै आरो तेसरी पूजा के ॅ ईद। सौसे प्रशासन के माथो ॅ तनलो ॅ छेलै। बाजार में भीड़ बढ़ले जाय रैल्हो ॅ रहै।

देखतें-देखतें ईद मुबारक के दिन भी एैले ॅ। सौसे शहर में ही सुरक्षा आरो चौकसी पर पुलिस तैनात छेलै लेकिन गलत आदमी के ॅ यही सुनै रो इन्तजार रहै छै। कुछ्छू होलै कि नै,ई ते ॅ भगवानैं जाने ॅ, मतुर शहर के पटेल चौक सें हल्ला उठलै आरो ई अफवाह नें सौसें शहर के ॅ अपना चपेटो ॅ में लै लेलकै। जे जहाँ छेलै वाहीं डरो ॅ सें काँपे ॅ लागलै। लोग अपना के ॅ बचाय ले ॅ भागे ॅ लागलै। दंगा- फसाद शुरू होय गेलै। हल्ला, चीख, पुकार, कन्ना रोहट। पुलिसो ॅ के ॅ ई बात के कि ई सिर्फ झूठे के अफवाह छेकै, कोय सुनै ले ॅ तैयार नै छेलै। आदमी होश-हवाश में नै छेलै। केकरो ॅ कोन चीज कहाँ छूटलै, के गिरलै, के दबैलै कोय पीछू मुड़ी के ॅ देखै ले ॅ तैयार नै छेलै। कासिमपुर मेन चौक पर आठ दस जवानो ॅ के साथें जबे ॅ सत्तार साहब पहुँचलै ते ॅ देखलकै कि वहाँ करीब चार-पाँच सो ॅ लोग लाठी, भाला, तलवार, बल्लम-बरछी लैके ॅ आवे ॅ भिड़तै कि तबे ॅ भिड़तै के स्थिति में तैयार छेलै। छो ॅ फूट सें कुछ बेशिये लंबा जवान छवारिक सत्तारो ॅ के घाम चूवी गेलै। जवानो ॅ सें सलाह-मशविरा करै लागलै। ओझा जी सीधे बोललै- ‘‘ई भीड़ के कोनो ॅ भरोसा नै है। जान आफत में डालला सें की फायदा। मरने दो सार सबको।’’ ओझा जी पचास-पचपन बरस के गोल-मटोल, थुलथुल मंझौला कद के छेलै। नौकरी में खैतें-खैतें जरूरत सें जादा मोटो होय गेलो ॅ रहै। कम लिखलो ॅ -पढ़लो ॅ होला के कारण उनतीस बरस के नौकरी में सिपाही के सिपाहिये रहि गेलो ॅ छेलै।

सत्तार साहबें ओकरा डाँटलकै- ‘‘बुढ़ो ॅ होय रैल्हो ॅ छो ॅ मतुर समय, परिस्थिति देखी के ॅ बोलै के सऊर नै एैलो ॅ छौं।’’ दारोगा सŸार मधेपुरा अंगक्षेत्र के रहै वाला छेलै। अंगिका ओकरो मातृभाषा छेलै, जादा अपने भाषा में बोलै छेलै। जवान होला के कारण जोशो ॅ सें भरलो ॅ छेलै। आगू फेरू ऊ बोललै- ‘‘रायफल छै। जीनो ॅ में भरलो ॅ गोली छै। आरो ओझा जी जानो ॅ के बात करै छै। जाने रहै के बात सोचना रहौं ते ॅ सिपाही नौकरी में कथीले ॅ बहाल होलो ॅ छेल्हो ॅ।’’ तब तक भीड़ सहमलो ॅ खाड़ो ॅ छेलै। सत्तार साहब आगू भीड़ो ॅ दिस बढ़लै। पीछू- पीछू सब सिपाही भी बढ़लै। ‘अल्ला हो अकबर’ आरो ‘बजरंगबली की जय’ के गर्जना सें बगल के घोॅर आरो दीवार गूँजी गेलै। सत्तार साहबें कड़क भरलो ॅ आवाज में पोजीसन लै के आदेश देलकै। फायरिंग पोजीसन में भीड़ के बीचो ॅ में आबी के ॅ दारोगा सत्तार खाड़ो ॅ होले ॅ छेलै कि दक्खिन तरफो ॅ के भीड़ सें गोली आरो बम छूटैं के आवाज एैले ॅ। सत्तार के दिमाग बड़ी तेजी सें चली रहलो ॅ छेलै। वें आव देखलकै नै ताव आसमानी फायरिंग करतें दक्खिन तरफ के भीड़ो ॅ हिन्नें दौड़ी गेलै। आठ सिपाही आरो एक दारोगा सत्तार के लगातार आसमानी फायरिंग सें भीड़ भड़की गेलै। ओकरो ॅ बाद ते ॅ दाव इनका हाथो ॅ में आबी गेलो ॅ छेलै। रपेटी के ॅ भगैतैं देखी के ॅ उŸार दिस वाला भीड़ भी बिखरी के बिलाय गेलै।

सूरज पछियें डूबै पर छेलै। सत्तार के पीछू एक माय के कोखी सें जन्मला भाय नांकी कासिम खाड़ो ॅ छेलै। सत्तारें लीलारो ॅ परको ॅ घाम पोछी के ॅ ठहाका मारी के ॅ हँसतें हुअें बोललै- ‘‘हम्में जानै छेलियै, भीड़ आरो भांड़ रो ॅ गति एक जैसनो ॅ होय छै। डरी जो ॅ ते ॅ माथा पर चढ़ी जैतो ॅ आरो तनी जो ते ॅ बिलाय नांकी सुटियाय जैतो ॅ। हम्में सभ्भे जवान के ॅ जान पर खेली के ॅ साथ दै लेली धन्यवाद दै छियौं।’’ तब तांय अंधाधुंध फायरिंग के आवाज सुनी के ॅ ढेर सिनी सिपाही आरो सी.आर.पी.एफ के जवानें मोरचा संभाली लेनें छेलै। १४४ ते ॅ लागले ॅ छेलै। कर्फ्यू के भी घोषणा होय गेलो ॅ रहै। देखतें- देखतें शहर डरलो ॅ बच्चा जुगां शान्त होय गेलै। बेरा डुबी चुकलो ॅ रहै। सन्नाटा ऐन्हो ॅ पसरलै कि शहर में खाली बिजली बल्ब ही देखाय पड़ै छेलै। रास्ता, गली, चौराहा सब सुन्नो ॅ-सुन्नो ॅ। सब दुकानो ॅ में ताला लटकी रहलो ॅ छेलै। मोबाइल पर एस.पी के फरमान। सब थाना प्रभारी के ॅ आपनो ॅ-आपनो ॅ हलका जाय के ॅ पेट्रोलिंग के निर्देष, कोय भी तरह के घटना होला पर वै क्षेत्रा के अधिकारी जिम्मेवार होतै। संदेश मिलथैं सत्तार साहबें तुरत दल-बल के साथें कासिमपुर चली देलकै।
वहाँ पहुँची के ॅ दारोगा साहब बहुते प्रसन्न होलै। मुहल्ला में शांति समिति बनी गेलो ॅ छेलै। दस- दस दूनो ॅ तरफो ॅ के लिखलो ॅ-पढ़लो ॅ लोग ऐकरो ॅ सदस्य बनी के ॅ शांति वेवस्था में जुटलो ॅ छेलै। सत्तारें राहत के सांस लैके ॅ कहलकै-‘‘अपने सिनी के यै सहयोग लेली कोटि- कोटि धन्यवाद। जहाँ जरूरत पड़ै,हमरा कॉल करवै। वैसें खाना-पीना करी के ॅ हम्मूं निकलबे करभौं।’’बात समाप्त करि के ॅ सत्तार आपनो ॅ आठो ॅ जवान के साथें थाना एैले ॅ। ‘‘एक घंटा बाद रौन में निकलना छै’’ कहि के ॅ दारोगा साहब आपनो ॅ क्वार्टर में ढुकी गेलै।

सत्तार साहब के निर्णय छेलै, रात भर मुहल्ला दर मुहल्ला के गली- गली खाक छानतें बिताना छै। जातीय उन्माद के रंग आरो मिजाज बहुते ॅ खराब होय छै,ई उनका पता छैलै। सबटा जिम्मेवारी भी ते ॅ बड़ा बाबू होयके कारनें उनके छेलै। नया-नया नौकरी। सेवा में कोय दाग लगला पर पहले चुम्मा मुँह टेढ़ो ॅ वाली बात होय जैते ॅ। लाईन हाजिर होवो ॅ ते ॅ सबसें बड़ो ॅ बेज्जती आरो बदनामी के बात छेलै। यहे ॅ कारण छेलै कि सत्तार कड़े कमान ड्यूटी पर तैनात छेलै। हुनी जखनी मिंया मुहल्ला दैके ॅ गुजरी रहलो छेलै ते ॅ घंटाघरो ॅ के घंटा ग्यारह बजे के सूचना देलकै। अभी रात के पाँच छो ॅ घंटा बितना बाँकी छेलै।
गली बहुते ॅ संकरा, तंग आरो गंदा छेलै। बदबू अतना छेलै कि नाक फाटी रहलो ॅ छेलै। सभ्भे जीपो ॅ सें उतरी के ॅ पैदल चली रहलो ॅ छेलै। ई मुहल्ला थोड़ो ॅ जादा असामाजिक तत्व के ॅ लैके ॅ बदनाम छेलै। सब सतर्क, सावधान। ओझा जी आपनो ॅ मोटापा भरलो ॅ थुलथुल देह के कारण सबसें पीछू रहै। नांको ॅ पर रूमाल रखतें हुनका सें बोलाय गेलै- ‘‘ई सार, मिंया मोहल्ला सगरो जादा गंदा रहता है।’’

सत्तार साहब के ॅ हँसी आबी गेलै। अपना के ॅ रोके ॅ नै पारलकै, बोली पड़लै- ‘‘सबठो लिखै-पढ़ै आरो पंडिताई अपने में बराहमन सब बौकटियैले है। हमरा ते ॅ मलेछ कहि के ॅ देश आरो मांटी के मुख्य धारा सें ही काट देले ॅ हौ, ते ॅ हमनी सिनी गंदा ना रही, ते ॅ का करि।’’ दारोगा साहब के ई बात पर कासिम आरो सिंह बाबू जोर सें हँसी पड़लै। तब तांय चौराहा आबी गेलो ॅ रहै। ई पक्की सड़क सीधे अलीगंज चल्लो ॅ जाय छेलै। जीप गाड़ी तक जाय लेली जे रास्ता सत्तारें पकड़लकै ओकरो ॅ एक तरफ हिन्दू आरो दोसरो ॅ तरफ मुसलमान के मुहल्ला छेलै। रास्ता चौड़ा आरो साफ सुथरा। विधायक कोटा सें बनलो ॅ ईट ढलाई वाला रोड। सामना में मस्जिद देखाय पड़ी रहलो ॅ छेलै। मस्जिद सें कुछ दूर विपरीत दिशा में बहुत बड़ो ॅ भव्य मंदिर। सांझ के ॅ यहूँ ठिंया दोनो ॅ तरफो ॅ सें गल्लम गारी करतें हिंसक भीड़ जुटलो ॅ छेलै। कल तलक साथ बैठी के ॅजे हाँसै बोलै छेलै ऊ आय एक दोसरा के जानो ॅ के दुश्मन होय के ॅ मारै-मरै लेली तैयार होय गेलो ॅ रहै।

सत्तार सोच में डुबलो ॅ आगू बढ़लो ॅ चल्लो ॅ जाय रहलो ॅ छेलै। तखनिये पुवारी तरफो ॅ रो ॅ गली सें एक बच्चा के कानै रो आवाज एैले ॅ। हिचकी भरलो ॅ कुछ ठहरी-ठहरी के ॅ कानै के करूण स्वर। सहमी के ॅ सत्तार खाड़ो ॅहोय गेलै। दहली, कांपी गेलै हुनको ॅ हिरदय। गोड़ अपन्हे ॅ- आप गली दिस मुड़ी गेलै। कुछ दूरजैतें एक दूधमुँहो ॅ डेढ़ सालो ॅ के बच्ची सड़को ॅ किनारी राखलो ॅ नजर एैले ॅ। तुरत सत्तारें बढ़ी के ॅ बच्ची के ॅ गोदी में उठाय लेलकै। मतुर ऊ माय रो गोदी नै छेकै के आभास होतैं बच्ची जोर- जोर सें काने ॅ लागलै। गोड़- हाथ फेके ॅ लागलै। दूर- दूर तांय कोय घर नै छेलै ; सिर्फ थोड़ो दूर पर एक ठाकुरबाड़ी छेलै। बच्ची के रोना बढ़ले जाय रहलो ॅ छेलै। कासिमें बढ़ी के ॅ गोदी में लैके ॅ जबे ॅ पुचकारलकै ते ॅ बच्ची गुजगुज अन्हारो ॅ में हिन्हें-हुन्हें ताकी के ॅ चुप होय गेलै।सत्तारें हाँसी के ॅ कहलकै- ‘‘बच्चा खेलायके अनुभव लागै छै तोरा छौं। वाह, गोदी में जैतें बच्ची चुप होय गेलै। के गो तोरा बाल-बच्चा छौं ?’’

‘‘चार गो लड़का लगातारे होयके ॅ पाँच बरसो ॅ सें बंद छै।’’कासिम नें बच्ची के ॅ लोकी-लोकी के ॅखेलैतें जबाब देलकै।

‘‘...........................ऐकरो ॅ मतलब तोरो ॅ बियाह के ॅ बारह- तेरह बरस होय गेल्हो ॅ।’’
‘‘हुजूर के हिसाब पक्का छै।’’

बच्ची फेरू काने ॅ लागलो ॅ छेलै। गोरी चिट्टी सुन्दर देह आरो फुल्लो ॅ-फुल्लो ॅ गाल सीती सें
भींगी गेलो ॅ रहै। कासिम नें आपनो ॅ गमछी सें ओकरा बढ़िया सें पोछलकै आरो छाती सें लगैतें कहलकै- ‘‘भूख सें कानै छै बच्ची। ऐकरा दूध चाहियो ॅ।’’ ....................आरो सब जल्दी- जल्दी झटकलो ॅ ठाकुरबाड़ी पहुँचलै। ठाकुरबाड़ी के चारो ॅ तरफ बघंडी रो पौधा बेतरतीव ढंग सें फैललो ॅ छेलै। आगू में पीपरो ॅ के एक पुरानो ॅ झबरलो ॅगाछ छेलै जेकरापर ढ़ेर तरह के पक्षी रो गजब- गजब किसिम के ॅ दबलो ॅ-चुपलो ॅ, कुहरै सिसकै के आवाज आवी रैल्हो ॅ छेलै। बीच-बीच में कोनों पक्षी के जोर सें चिचियैबो ॅ रात के सन्नाटा के एैन्हो ॅ तोड़ी दै, जेना कोय सौतारो ॅ के विशबुझलो ॅ तीर ओकरा करेजा के ॅ बेधी देनें रहै। ठाकुरबाड़ी में एक ठो सत्तर-अस्सी बरसो के बुढ़ो ॅ पुजारी रहै जें पुलिसो ॅ के ॅदेखी के ॅ दारोगा सत्तार साहब के आगू में दूनों हाथ जोड़ी के ॅ खाड़ो ॅ होय गेलो ॅ रहै-‘‘कहो हुजूर, की सेवा करिहौं ?’’ उमर के कारण पुजारी के हाँथ कांपी रहलो ॅ छेलै।

‘‘बच्ची भूख सें कानी रहलो ॅ छै। दूध होतौं बाबा।’’विनम्र आवाज में सत्तारें कहलकै। पुजारी बोललै कुछ्छू नै। भीतर गेलै आरो कुछ देर वादैं एक गिलास दूध बच्ची वासतें देलकै। बच्ची सब दूध गटागट पीवी के ॅ चुप होय गेलो ॅ रहै।आवे ॅ दारोगा बाबा सें पूछलकै- ‘‘बच्ची के कानै रो आवाज ते ॅ सुनिये रहलो ॅ होभो ॅ बाबा।’’

‘‘हौं...................मतुर डरो ॅ सें बाहर निकलै के हिम्मत नै होलै। हमरो ॅ उमिर ते ॅ देखिये रहलो ॅ छो ॅ हजूर। अन्हारो ॅ में चले ॅ- फिरे नै पारै छियै। रात दस बजे तलक ते ॅ मंदिर-मस्जिद के बीच वाला चौराहा पर मजमा लागले ॅ छेलै। रपटा-रपटी, गोली-बम छुटवो यहे ॅ घंटा भर पैन्हे ॅ बंद होलो ॅछै। शहर सें दूर होला के कारण पुलिसो ॅ नै पहुँचे ॅ पारलो ॅ छेलै।’’

सत्तारें समझी गेलै। हमरा सिनी के आवै रो खबर पावी के ॅ सब घरो ॅ में दुबकी छिपी गेलो ॅ छै। भागै-दौड़े ॅ में ई बच्ची केकरो ॅ छूटी गेलो ॅ होतै। सत्तारो सामना में बच्ची के समस्या प्रमुख छेलै। हुनी सबके साथें चौराहा पर एैले ॅ। कुछ देर बाद दूनो ॅ तरफो ॅ के लोग आवे ॅ लागलै। आवै वाला लोगो ॅ में शांति चाहैवाला लोगही बेशी छेलै। बच्ची के बारे में सरपंच सुलेमान आरो मुखिया शंकर बाबू सब कुछ बतैलकै। ‘‘हुजूर,ई बच्ची के संसारमें आबे ॅ कोय नै रहलै। बाप चरितर बच्ची जनम के दू महिना बादे मरी गेलै। मंदिर के बगले में ऐकरो ॅ घोर छै। यै ठिंया ऐन्हो ॅ दंगा- फसाद के समां बँधलो ॅ रहै हुजूर कि कमजोर हिरदय वाला गाँमों में पाँच- सात ठो मरी गेलै। ई बच्ची के दादी आरो चरितर के मोसमास एकरो ॅ माय बस दू टा प्राणी छेलै। एक ठो बम ऐकरे घरो ॅपर फेंकाय गेलै। बूढ़ी दादी ते ॅ हक सें तखनिये मरी गेलै आरो बेटी गोदी में लैके ॅ जे ऐकरो ॅ माय भागलै ..............’’ मुखिया शंकर सिंह के ॅ बीचै में रोकी के ॅ सत्तार साहब बोललै- ‘‘समझी गेलियै। भगदड़ में माय गिरी गेलै। बच्ची गोदी सें फेंकाय गेलै। एक जनानी के लाश वहीं ठिंया छै।

है बतावो ॅ मुखिया जी,आवे ॅ की होतै ? ऐकरा घरो ॅ में ते ॅ कोय नै बचलै।मतुर गोतिया संबंधी ते ॅ होतै। यै बच्ची के ॅ हम्में पुलिसवाला कहाँ लै जैवे ॅ। केकरौह ऐकरो ॅ परवरिस,पालै-पोसै लेली तैयार करो ॅ। आपनो ॅ- आपनो ॅ होय छै। चलो ॅ मुखिया जी, तोरा साथें हम्मूं जाय छिहौं।’’ दूनो ॅ जनां मिली के ॅ ओकरो ॅ भाय, भतीजा, गोतिया पास एैले ॅ। दारोगा साहबे ॅ सबके ॅ अपना सें समझाय के ॅ थक्की गेलै, कोय वै बच्ची के ॅ राखै ले ॅ तैयार नै होलै। सभ्भैं एक्के ॅ बात कहलकै-‘‘आपने बच्चा पोसबो ॅ भारी छै। ऐकरा के पोसतै।’’ चचेरो ॅ भाय रो ॅ बेटा सुमिरतें कहलकै- ‘‘पोसना की अत्ते आसान बात छै। पाली-पोसी जवान करवै। फेरू बिहा, शादी, गौना,लियौन कि साधारण बात छै। गछला सें ही खाली नै होय छै हो। हमरा अपन्हे ॅ चार- चार बेटी छै।’’ मुखिया जी नें फेरू एक दाफी निराश- हतास होयके ॅ पूछलकै- ‘‘केन्हो ॅ नै केन्हो ॅ तोरा सिनी के ई अंशे ॅ छेकौं, तोरो ॅ खून ऐकरा नस-नस में बहै छै। तोंय सिनी नै राखभो ॅ ते ॅ हिनी सिनी की करतै।’’

‘‘तोंय सिनी जानो ॅ, एकरो ॅ की करभो ॅ। फेंकी दहो ॅ, जहाँ देभो ॅ,हम्में सिनी एकरो ॅ भरगछा नै गछै पारौं।’’ कहिके ॅ सुमरितें मुड़ी झुकाय लेलकै।

लाचार दारोगा साहब चौराहा पर आवी के ॅ शांति समिति बनाय के ॅ आरो मुखिया, सरपंचो ॅ के ॅ सब जरूरी निर्देश दैके ॅ वहाँ सें चललै। रात रो ॅ अबसान बेला छेलै। तीनडरिया डूबी रैल्हो ॅ रहै। कासिम के गोदी में बच्ची दुनिया- जहान सें बेखबर सुतली छेलै।

दंगा पर प्रशासन नें काबू पावी लेले ॅ रहै। दू- चार दिनो ॅ में सब कुछ सामान्य होय गेलै। दशहरा भी शांतिपूर्ण ढ़ंग सें बितलै। बच्ची कासिम के ही संरक्षण में छेलै। हिन्नें एस.पी. आरो डी.एम. के सलाह सें बच्ची के ॅ अनाथालय भेजै के प्रक्रिया चली रैल्हो ॅ छेलै। बच्ची पूरे पूरी कासिम सें पटी गेलो ॅ रहै। कासिम के पूरा समय ओकरे ॅ देख-रेख में बीतै छेलै। पीयै लेली दूध,खाय लेली बिस्कुट,खेलै लेली किसिम-किसिम के मँहगो ॅ खिलौना,कपड़ा लत्ता कोय चीज के कमी नै रहै। महिना पूरा होय गेला पर अनाथालय सें आदमी, दू-तीन दाय साथें बच्ची के ॅलै जावै वासतें एैलो ॅरहै। साथो ॅ में एस.पी. साहब भी एैलो ॅ रहै। लिखा-पढ़ी के साथ बच्ची अनाथालय के ॅ सौपना छेलै। बच्ची कासिम के गोदी में चिपकलो ॅ छेलै। दारोगा सत्तार साहबें कन मुँहो ॅ,उदास होय के ॅ कासिम के ॅ कहलकै- ‘‘आवे ॅ यै बच्ची के तकदीर अनाथालय लिखतै।’’

अनाथालय सें एैली दाय बच्ची के ॅ लै वासतें हाथ पकड़ी के ॅ अपना तरफें खीचै ले ॅ चाहलकै। बच्ची कासिम के गोदी में चिहाय उठलै। सत्तार साहबें खीचै के कत्तो ॅ कोशिश करलकै मतुर बच्ची जे मरमुठ लगाय के ॅ कासिमो ॅ के गल्लो ॅ पकड़लकै सें छोड़वा नै छोड़लकै। वै ठिंया जत्ते ॅ लोग छेलै, सबके आँखी में लोर आबी गेलै। कासिमें भी बच्ची के ॅ कस्सी के ॅ पकड़ी लेनें छेलै। ममता सें भरी गेलो ॅ छेलै कासिम। ओकरो ॅ आँख सौन- भादो ॅ नांकी बरसी रैल्हो ॅ छेलै।

‘‘कासिम ..................।’’ सत्तारें ओकरा झकझोरी देलकै।

कासिमें दूनो ॅ हाथ जोड़ी के ॅकानी-कानी प्रार्थना करलकै-‘‘ई बच्ची के ॅ हमरै दै दियै हुजूर। हम्मी ऐकरा पालवै-पोसबै। पढ़ाय-लिखाय के ॅ बहुत बड़ो ॅ ऑफिसर बनैवे ॅ। चार बेटा पर एक बेटी, हुजूर ऐकरा सें हमरा अलग नै करियै।’’

‘‘बढ़िया सें सोची ले ॅ कासिम। भावना में नै बहो ॅ।’’

‘‘हुजूर हम्में बढ़िया सें सोची लेनें छियै। यें हमरो ॅ भीतर के आदमी के ॅ जगाय देनें छै। एकरो ॅ प्रति हमरो ॅ ममता के ॅ हमरा आँखी में देखो ॅ हुजूर,अनवरत बही रहलो ॅ हमरो ॅ लोरो ॅ में देखो ॅ। बेटी ममता रो सागर होय छै। यें हमरो ॅ ममता के ॅ जगैनें छै। ई हमरो ॅ ममता छेकै। एकरो ॅ नामो ॅ ममता ही राखलियै। ममता........,हमरो ॅ ममता, हमरो ॅ बेटी ममता।’’ अतना कहि के ॅ कासिमें बच्ची के ॅ अपना करेजा सें चिपकाय लेलकै। उ

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संपर्क :
अनिरुद्ध प्रसाद विमल
संपादक : समय/अंगधात्री
समय साहित्य सम्मेलन, पुनसिया, बाँका, बिहार-813109.
मोबाईल : 9934468342.


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