बीहा वाला घऽर हँसते रहे छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
बीहा वाला घऽर हँसते रहे छै । खुशी केरऽ डेरा होय छै । रंग, खुशबू, मधूर ध्वनि, मधीम- मधीम हंसी केरऽ फुहारऽ के साथ हंसी केरऽ ठहाका, केरऽ मिलन यहीं होय छै । त्योहार वाला बंदन बार रंगोली चौक भी, हल्दी केरऽ रंग, कत्ते सुहावना लागे छै । दीया भी जले छै, आरो रोशनी केरऽ लरी झालर है रंग लागे छै, सभे परब (पर्व) एक साथ मनाबे के लेलऽ पूरा परिवार एक जगह आबी गेलऽ होवे । सब के पास कुछ न कुछ काम होय छै । बीहा वाला घऽर में जहाँ सभे के सजे सम्हरे केरऽ मौका मिले छै सब एक दोसरा के देखी के हँसी- मजाक करे छै, तोहें हैरंग पेन्हल छें ? लघटरऽ भरना, आम- महुआ विहाना, कत्ते विधि विधान में दिन बीती जाय छै । दिन भर केरऽ थकान केरऽ बाद बेटी माय केरऽ आंखऽ में नींद कहाँ । बिछौना पर सुते ले गेली । ते लोरे से चदर भींजी गेलऽ । माय, मौसी, बहीन, भौजाय सब बेटी केरऽ सामान सरियाबे में रात बीती गेलऽ । बात गमछा से लोर पोछी पोछी के बोले लागला पालना में झुले वाली नन्ही बेटी, आज गेली में बैठती । दिन किरंग बीती गेले, बीहा होय गेलं विदाई केरऽ घड़ी आबी गेले । ई घड़ी जिन्दगी केरऽ आईना होय छै । नाता रूप बदलते रहे छै, हुन्कऽ नया रूप के किरंग स्वागत चाहीवऽ । कोय त्रुटि नांय होय जाय । माय बाप के उल्टी उल्टी के देखते बेटी डोली पर बैठी गेली, आंखऽ से लोर चुवाते एक देहरी लांघै छै, दोसरऽ देहरी पर अपनऽ स्वागत में आरती केरऽ थरिया पावे छै । समृद्धि केरऽ कलश लै के नया घरऽ में प्रवेश करे छै । कनियाय अपना नया पहचान से मिले छै । जिन्दगी नया पोशाक में सजे छै । दु परिवार केरऽ सभे लोगऽ से अपना लेल नाता केरऽ नया नाम पावे छै । बीहा जिन्दगी केरऽ हाथऽ में मेंहदी जेन्हऽ सजै छै । एकरऽ रंग गाढ़ो रहे, ई महकते रहे, ऐहे सब बेटी (कनियाय) केरऽ कामना रहे छै । ऐहे सब दुल्हा केरऽ जिम्मेदारी होना चाहीव । आरेा घर केरऽ इच्छा भी । दोनों परिवार एक दोसरा के लेलऽ जिम्मेदार होय जाय छै सुख दुख सब घड़ी निभाबे के लेलऽ ।
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