ज्ञान केरऽ परीक्षा | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक बहुत बोड़ऽ जगर छेल, नदी किनारो एक विद्याश्रम छेले । आश्रम में दुठो लड़का ज्ञानर्जन करे छेले । एक केरऽ छेले संतोष आरो एक केरऽ नाम सुबोध, एक दिन दोनों में वाद- विवाद होवे लागले । दोनों अपने आपके ज्यादे बुद्धिमान बताय रहलऽ छेले । समस्या समाधान के लेलक दोनों गुरूजी के पास पहुँचलऽ । वू अपनऽ आश्रम के अलावा आस- पास के क्षेत्र में ज्ञान परीक्षण केरऽ मामला में काफी प्रसिद्ध छेल । हुन्हीं अपनऽ शिष्य केर समस्यासुनलका आरऽ हल करे केरऽ आश्वासन देलका । गुरू जी ने काफी सोच- विचार करलका । हुन्का एक उपाय सुकल्खें । शिष्य केरऽ हाथ में आटा, नमक, मिर्च आरो जरते लकड़ी केरऽ ळुकड़ा थम्हातें होलऽ कहलका, तोरा दोनों के हमरा वास्ते स्वादिष्ट खाना बनाना छै । हम्में दोपहर में खाना खाय वास्ते ऐ भों । हमरऽ आश्रम केरऽ दु दिशा छै । पुरब आरो पश्चिम, पश्चिम में घनऽ वन छै, संतोष तोहें पुरब दिशा केरऽ ओर जा जहाँ तक झरना मिल्योंऽ तोहें वहीं खाना बनैहऽ । सुबोध तोहें पश्चिम दिशा के ओर जा । वहाँ नदी आरो पीपर केरऽ गाछ दिखाई देत्यों वहीं खाना बनाना छै । दोनों गुरू केरऽ आदेशानुसार अपनऽ- अपनऽ दिशा में निकलला । झरना पर पहुंची के संतोषा खाना केरऽ व्यवस्था करे लागला । वहीं झाड़ी में खट्टा- मीठा बेर देखैल्हें, तेड़ी के लै आनल का झरना के एकटा पथल केरऽ चट्टान छेले साफ- सुथरा के पथलऽ पर आटा सानी लेलका, छोटऽ- छोट लिट्टी बनाय लेलका । आस पास से सुखलऽ गोबर केरऽ कंडा (गोइथा) आरो सुखल झुरी झमारी जमा करी लेलका आग जराय के अंगार बनी गेलऽ अंगारऽ पर लिट्टी पकाय लेलका । लिट्टी सबके झाड़ी- पोछी एकटा पत्ता पर जमा करी लेलका । बेर के पथलऽ पर चटनी पीसी लेलका, नोन मरचाय मिलाय चटनी बनाय लेलका । केला पेड़ से पत्ता काटी के लै आनका । चटनी- लिट्टी बढि़या से झांपी के राखी देलका । गुरू जी केरऽ इंतजार करे लागला । गुरूजी पहिले सुबोध केरऽ पास गेला, सुबोध कान्दी- कान्दी के अपनऽ हालत खरा बकरी लेलऽ छेलऽ । गुरूजी बोले, ई की हाल बनाय राखलऽ छें । सुबोध हाथ जोड़ी के गुरूजी से मांफी मांगते होलऽ कहे लागले, गुरू जी अपने ते खाना बनाय के लेलऽ नांय ते पूरा सामान देल्हऽ नांय ते कोय बर्तन, हम्में अपने के लेलऽ खाना किरेंऽ बनात लिये । गुरू जी बोलला, सुबोध कोय बात नांय छै । उठें हमरा साथ चलें । दोनों संतोष के पास पहुँचला । संतोष केरऽ बनैलऽ खाना गुरू जी खैलका, साथऽ में सुबोध भी खैलकऽ बिना वर्तन, बिना मसाला केरऽ संतोष स्वादिष्ट खाना बनैलऽ छै । तोहें सुबोध, सामान केरऽ अभाव में खाना नांय बनाय सकले । संतोष ने ईकरी के देखाय देलके, अबे तोहें समझी गेलऽ होबे कि संतोष तोरा से ज्यादे बुद्धिमान छै ।
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