एकदम माय जेन्हऽ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
इसकूल (स्कूल) से आते ही देख्चालिये नैकी माय अंगना में बैठी के गहुम (गेहूँ) फटकी पछोड़ी रहलऽ छै । देखी के बिनू केरऽ मोन भिन्नाय उठले, अंगन केरऽ वेहे कोना में रौद (धूप) आबै छेले । वही पर बिनू भरी दुपहरिया पटिया बिछाय के अपनऽ पढ़ाई करे छेली । ई नैकीमाय पहले बाबू जी के अपनैलकी, फेरू बाबा- दादी भैया के भी बश में करी लेलकी, घरऽ भर के हथियाय लेलकी । एकरा अंगना केरऽ कोना बचलऽ छेले, आज अंगना के भी हथियाय के बैठी गेली । झुनझुनाते जिद में अपनऽ अधिकार जताते होलऽ बीनू किताब लै के धम्म से जाय नैकी माय केरऽ आगु में बैठी गेली । नैकी माय तुरंत सूप जमीन पर रखते होलऽ बोलली नांय बीनू सामने में नांय बैठें । हिन्ने जाय जो हमरा बगल में बैठे सुनी के बीनू नैकी माय के घृणा आरो गुस्सा से देखलकी । केत्ते सौरू छेले ओकरा नया चीजऽ से, नया चीज पाते ही बीनू खुशी से भरी जाय छेली । लेकिन नया माय केरऽ चाह ओकरा कभी नांय छेले । माय केरऽ मरला आज कै साल होय गेले, माय केरऽ याद आबी गेले वू फुटी के कान्दे लागली । नैकी माय नांय बीनू कभी नांय कग्न्दिहे, माय अपनऽ बच्चा केर कान्दब कभी देखी सके छै ? सामने बैठे से हम्में ऐहे से मनाकर लियो- काहे कि एन्हऽ कहलऽ जाय छै कि सूप केरऽ फटकन पड़े से सामने वाला केरऽ सब खुशी भी छिलका के साथ उडी जाय छै । आरो नेहरा से कुछ दान- दहेज नांय मिले छै । ते हम्में तोरा कैसे सामने बैठे ले देतियो । अपनऽ प्यारी बेटी के सूप के सामने । ले तोहें आराम से बैठें, हम्हीं दूर चलऽ जाय छियो यहाँ से । कहते होलऽ नैकी- माय गहुम केरऽ टीन उठाबे लागली । ऐतबे में बीनू केरऽ मनंऽ केरऽ धुंध छटी गेले, नैकी माय बिल्कुल माय जेन्हऽ समझावे आरो बेले छथ, माय भी बीनू केरऽ लोर देखी के छटपटाय लागे छेली, वू उठी के नांय माय तोहें कहीं नांय जा । माय केरऽ बाँही पकड़ी लेलकी, कुछ ससरी के माय केरऽ पीठ में पीठ सटाय के बैठी गेली । माय केरऽ स्पर्शपाय के बीनू केरऽ आँखी से आनन्द केरऽ लोर गिरे लागले ।
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