नया रिस्ता अपनाय के, पुरानऽ के नांस भूलऽ | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
अपनऽ पुरानऽ रिस्ता आरो नजदीक केरऽ रिस्ता केरऽ ऐते भी तारीफ नांय करऽ कि नया रिस्ता बने वाला छोंऽ वेहे पुरानऽ से जलन हुवे लगे या अपने के उपेक्षित महसूस करे लागे । पुरानऽ रिस्ता केरऽ अपनऽ महत्व छै, आरो जे नया रिस्ता तोरऽ जीवन में आय रहलऽ छै, ओकरऽ अपनऽ खुबी होते । जिन्दगी केरऽ सफर में रिस्ता निशान के तरह होते जाय छै । आरेा ई सफर जमीन से आसमान तक केरऽ होय छै । ऐहे से रिस्ता इशारा बनते चलऽ जाय छै । हर लम्बा सफर थकाबै भी छै । रिस्ता जबे अपनऽ मंजिल पर पहुँचे दै ते एक मिठऽ सन थकान आय जाय छै । कुछ रिस्ता प्रेम केरऽ अनुभूति कराबे छै, जे बहुत अपनऽ होय छै । एन्हऽ देखलऽ जाय छै कि पुरानऽ रिस्ता माय- बाप, बच्चा सनी, भाय बहीन केरऽ होय छै । फेरू बीहा केरऽ बाद ससुरार पक्ष आदि के रूपऽ में आबे छै । जबे लोग पुरानऽ रिस्ता केरऽ गुणगान करते रहे छै, ते नया रिस्तेदारऽ के लागे छै । हमरऽ जरूरत की छै ? आरो यहीं से झंझट शुरू होय जाय छै । अपनऽ सगे भाई बहन, माय बाप केरऽ महत्व बिल्कुल नांय नकारऽ लेकिन जीवन में पत्नी या पति के रूपऽ में जीवन साथी आलऽ छै, ते ओकरऽ सामने रिस्ता केरऽ एन्हऽ बखान नांय करऽ कि वू उपेक्षित महसूस करे लाये । ध्यान दिहऽ रिस्ता जलन भी पैदा करे छै ई जलन मिटाबै ले होवेते बालऽ (वाणी) में मिठास रखिहऽ । रिस्ता केरऽ अदालत में जे खुशामद (पैरवी) करे ले पड़े छै, ओकरे में मिठ्ठऽ बोली (वाणी) केरऽ बहुत बोड़ऽ योगदान होय छै । ऐहे से रिस्ता पुरा मिठास के साथ निभै ईहऽ पुरानऽ के छोड़ना नांय छै, नया के जोड़ना छै ।
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