सदगुण केरऽ साथ शोभा दे छै धन | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
एक बार भगवान आरो लक्ष्मी में झगड़ा हो गेलऽ । भगवान करेऽ कहना छै हमरऽ भक्त हमरा बहुत चाहे छै । लक्ष्मी जी केरऽ कहना छेले भगवान तोरऽ भक्त तोरा हमरा चलते याद करे छे। काहे कि जाने छै जहाँ तोहें जेगे वहीं हम्में जरूर जेब जबे झगड़ा बढ़ी गेलऽ तबे भगवान पृथ्वी वासी केरऽ परीक्षा लेबे करेऽ सोचलकात । भगवान एक साधु केरऽ भेष बनाय के एक नगर में ऐला। हुन्हीं एक सेठ से मिलला आरो सेठ से कहलका, हम्में जे नगर में जाय छी लोग नाराण्यण केरऽ गुण गान कर छै। तोहें एन्हऽ व्यवस्था करी सकै छड़ कि ई नगर में हमरऽ सत्संग होय जाय । सेठ ने सत्संग केरऽ व्यवस्था करबाय देलके । सत्संग केरऽ प्रचार- प्रसार चारऽ तरफ करबाय देलकऽ । पूरा नगर केरऽ आदमी प्रवचन सुने ले आवै लागलऽ चार दिन करे बाद लक्ष्मी जी एक वृद्धा केरऽ रूपधरी के नगर में ऐली । एकरा घरऽ के सामने रूकली, ऊ घरऽ के मालकिन कथासुन ले सत्संग में जाय रहलऽ छेली । लक्ष्मी जी ने हुक्का रोकलके आरो पीये ले पानी मांगलकी । मालकीन छे छेली गुस्साय के पानी देलकी । लक्ष्मी जी पानी पीय के लोटा मालकिन केरा हाथऽ में दे देलकी, लोटा देखी के चौंकी गेली लोटा सोना केरऽ होय गेलऽ छेले । मालकीन लक्ष्मी जी केरऽ गोड़ परगिर गेली, आरो अपनऽ धडर लै आनलकी आदर सत्कार के साथ राखी लेलकी । धीरे- धीरे ई बात चारऽ तरफ फैली गेलऽ पूरा नगर केरऽ लोग लक्ष्मी के अपना घरऽ में नौता देबे लागलऽ । कथा सत्संग में भीड़ कम होय लागलऽ । आठवां दिन सेठ भी लक्ष्मी के नौता भेजलकऽ । लक्ष्मी जी कहल की तोरा धडर जे साधु रहे छों, वू जहाँ रहे छै हम्में वहाँ नांय जाय छी। सेठ ने साधु से कहलकऽ, तोहें कोय दोसरऽ इन्तजाम करी ले अबे हम्में तोरा नांय राखै ले पारभों । आखिर भगवान के वहाँ से जाय ले पड़ले छे । कहानी व्यक्तिगत छे, एकर अर्थ छै कि भगवान के जाते ही नगर में पाप, अत्याचार केरऽ बोलवाल होय गेले । नारायण केरऽ अर्थ छै ऊ गुण जेकरा में सत्य, दया, क्षमा, प्रेम, अक्रोस आदि मिललऽ होय छै । ई गुण जहाँ होय छै वहीं वास्तविक लक्ष्मी होय हथीन ।
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