बेटी | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
बेटी बड़ऽ होय गेली, एक दिन वें बड़ी सहज भाव से बाबू से पुछलकी बाबू जी हम्में तोरा कहियो रूलैलऽ छिहों ? बाबू जी ने कहलका हों, बेटी बड़ी अचरजऽ पुछलकी कहिया ? बाबू जी बतैलका वू समय तोहें करीब एक साल केरऽ छेल्हीं, घुटना से चले छेल्हीं, तोरऽ बुद्धि केरऽ परीक्षा लेबे खातिर तोरऽ सामने हम्में पैसा, कलम, आरो खिलौना राखी देलिये काहे कि हम्में देखना चाहे छेलिये कि तोहें ई तीनों में से केकरा उठाबे छें । तोरऽ चुनाव हमरा बतैलके कि तोहें बोड़ऽ होय के केकरा ज्यादा महत्व दे भीं । बेटी पुछलकी जैसे ? पैसा मतलब सम्पति, कलम, मतलब बुद्धि, आरो खिलौना मतलब आनन्द । हम्में ई सब बहुत सहजता से आरो उत्साह से करलऽ छेलिये । काहे कि सिर्फ तोरऽ चुनाव देखना छेले । तोहें एक जग्धऽ स्थिर बैठी के टुकुर टुकुर वू तीनों चीजें के देखी रहलऽ छेल्हीं । हम्में दोसरऽ तरफ बैठी के बस तोरे देखी रहलऽ छेलियो । तोहें घुटना के बल चलते आगु बढ़ले हम्में अपनऽ सांस रोकी के तोरे देखी रहलऽ छेलियो, आरो क्षण भर में तोहें तीनों चीजऽ के आजू बाजू सरकाय देल्हीं आरोऽ सबके पार करते होलऽ आय के सीधा हमरऽ गोदी में बैठी गेल्हीं । हम्में सोचले भी नांय छेलिये कि ई तीनों चीजऽ केरऽ अलावा तोरऽ चुनाव हमरऽ भी होय सके छेले । तभीये तोरऽ तीन साल केरऽ भाय आलऽ आरो कलम उठाय के चलऽ गेले । वू पहिली बार आरो आखिरी वार छेले । बेटा जबे तोहें रूलैले हमरा आरो बहुत रूलैले भगवान केरऽ देलऽ होलऽ सबसे बोड़ धरोहर छिकी बेटी । की खूब लिखलऽ छै एक पिता ने - केकरो बेटा केरऽ कतार चाहीवऽ । हमरा हमरऽ बेटी ही काफी छै ।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.