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Sunday, July 14, 2019

सास केरऽ देल ज्ञान | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

सास केरऽ देल ज्ञान  | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 


पन्द्रह- बीस साल पहले केरऽ बात छिके हमरऽ बीहा केरऽ दु बरस होय गेलऽ छेले । खाना करेऽ बाद आबे वाला अवान्छित मेहमानऽ से हमरा बड़ी चिढ़ लागे छेले नेहरा में मेहमानऽ केरऽ आवभगत केरऽ जिम्मेदारी माय आरे । बड़की दीदी ही निभाबे छेली । ऐहे से हमरा कुछ पता नांय छेले । बीहा केरऽ बाद हमेशा हमेशा ही हमरऽ प्रति दोस्तऽ के कभी खाना के पहिले आरो कभी खाना केरऽ बाद न्योता दे दे छेला । हम्में सगे केरऽ खाना बनावे छेलिये । लेकिन हमरा ई बातऽ पर गुस्सा आबे छेले कि ऐहे बात पहिले बताय सके छेला कि हम्में चार आदमी आय रहल छी, खाना बनाय केर खिहऽ । बिना परेशानी केरऽ खाना बनी जातले । हमरऽ पति हमेशा कहे छेला कि जेन्हऽ हम्में चाहे छिये, हमेशा होरंग नांय होय सके छै । कभी- कभी अप्रत्याशित के लेलऽ भी रहना चाहीवऽ । फेरऽ खाना खिलाना कोय ऐत्ते बोड़ऽ बात ते छै कि प्रोग्राम बनेलऽ जाय एन्हऽ समय में हमरा चुप्पे रहे में अच्छा समझलिए । काहे कि हम्में जाने देलिये कि हम्में यहां पर गलत छिये । माय के भी हमेशा अचानक आवे वाला मेहमानऽ केरऽ स्वागत प्रसन्नता से ही करते होलऽ देख छेलिये । लेकिन दुर्भाग्यवस माय केरऽ ई स्वभावऽ के नांय अपनावे पार लिये । शायद हम्में ई स्वभावऽ के बदले में असमर्थ ही रहत लिये लेकिन एक घटना हमरा हमेशा के लेलऽ बदली देलके । पति केरऽ पोस्टिंग एक बोड़ऽ शहरऽ में होय गेल्हेंन, आरेा हम्में सास ससुर के साथ में रहे छेलिये । हुन्कऽ टीम एक एक प्रतियोगिता में प्रथम ऐलऽ छेले । रात करीब साढ़े नौ बजे फोन पर बतैलका कि हम्मेमं दु घंटा में आबी रहलऽ छी । तोहें ग्यारग आदमी केरऽ खाना बनाय के रखिहऽ । यहाँ हम्में सब खाना खाय के खुते केरऽ तैयारी करी रहलऽ छेलिये । ई सुनी के हम्में झनक पटक करे लागलिये । हम्में सोचलिये कि जबे खाना घरे में खाय ले छेले ते पहिवे बताय देलऽ होतला । फेरू एत्ते लोगऽ केरऽ । खाना बनाबे केरऽ अनुभव नांय छेले । दोसर तरफ हमरऽ सास जिनका जल्दी खाना खाय के सुते केरऽ आदत छेल्हेंन, लेकिन ऊ दिन सास बिना कोय शिकायत केरऽ झटपट खाना बनाबे केर तैयारी करे लागली तैयारी में ते हम्हुं शामिल छेलिये । एकर खीझ हमरऽ चेहरा पर साफ झलकी रहलऽ छेले । लेकिन सास केरऽ चेहरा पर तनियोटा शिकन नांय छेल्हेंन । बल्कि हुन्हीं खुशी खुशी सब करी रहलऽ छेली । हम्में घड़ी घड़ी सास से कही रहलऽ छेलिये कि अगर ऐहे बात समय से पहिले बताय देतला ते शायद हम्में सब कुछ खास बनाय के खिलाय सके छेलिये । हम्में चाहे छेलिको कि सास कही हमरऽ बात पर समर्थन करती, लेकिन हुन्हीं जे कहलकी वू हमरा शब्दशः, याद छै । तोहें ई काम मत करऽ । आरो जो करे छऽ, ते पुरे प्रेम आरो निष्ठा से प्रसन्नचीत होय के करऽ । जो तोहें समयाभाव केरऽ कारण कुछ खास नांय बनाबे से छऽ ते कम से कम साधारण खाना ते कड़ुवाहट से नांय बनाबऽ । प्रतियोगिता केरऽ कारण नांय जाने कत्ते दिनऽ से बच्चा घरऽ केरऽ खाना नांय खालऽ होते । हम्में शर्मिंदा होय गेलिये, हुन्कऽ बातऽ पर । हमरऽ मनऽ में बात बैठी गेले, आरेा वेहे समय परण (प्रण) करी लेलिये कि भविश्द में कभी भी ई तरह केरऽ व्यवहार नांय करबे तब से लेके आज तक वक्त वेवक्त खाना बनाना हमरा खराब नांय लागले । सासु माता केरऽ बातऽ में देलऽ गेलऽ ज्ञान ने हमरऽ जिन्दगी केरऽ एक बेहतरीन पाठ पढ़ाय देलकी ।


टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection| Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 







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