त्याग | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
त्याग हुवे ते एन्हऽ जे तीसरका बेटा ने करलके । एकरा से ओकरा सम्मान भी मिलले आरेा पिता केरऽ आशीर्वाद भी । माय केरऽ मरला तीसरा दिन छेले घरऽ में दुःख केरऽ माहौल छेले । परंपरा केरऽ अनुसार मृतक केरऽ वंशज के स्मृति में अपनऽ प्रिय वस्तु केरऽ त्याग करे ले पड़े छै । बड़का बेटा बोलले हम्में आज से बैगनी रंग केरऽ कपड़ा नांय पेंहबऽ । वेसें भी जे ऊँचऽ ओहदा पर छै, ओकरा शाप दे कभी बैगनी रंग पें हे ले पड़तले । तइयो सभे तारीफ करलके । मंझला बोलले हम्मेमं जिन्दगी भर गुड़ नांय खैबऽ ई जानते होलऽ कि ओकरा गुड़ऽ से एलर्जी छै ंपिात सांत्वना केरऽ साँस छोड़लका अबे सब केरऽ ध्यान छोटका पर छेले । वू शांत होय के माय केरऽ फोटो देखी रहलऽ छेले । तीनों बेटा अपनऽ माय केरऽ अंतिम समय में नांय पहुँचे ले पारलऽ छेले । सब कुछ जबे पिता करी चुकलऽ छेलात तबे तीनों बेटा पहुँचलऽ छेलऽ । माय ओकरऽ माय बोले छेली, तीन बेटा एक पति चारो केरऽ कंधा पर चढ़ी के शमशान जेबऽ । हम्में कत्ते भाग्यशाली छी । माय केरऽ गर्व भरलऽ ई बात कत्ते बेर सुनल छेलिये । आज माय केरऽ अरमान पूरा नांय हुवे पारले । बोलऽ समीर जी (छोटका केरऽ नाम समीर छेले ।) पंडित जी केरऽ आवाज से ओकरऽ तंद्रा भंग भेले । तोहें कौन वस्तु केरऽ त्याग करभऽ । अपनऽ माय के वास्ते ? समीर बोलले पंडित जी, हम्में थोड़ऽ काम केरऽ त्याग करबे, थोड़ऽ समय बचैबे आरो अपनऽ पिता जी के अपनऽ साथ ले जैबे । एतना सुनते ही पिता केरऽ आँखऽ से लोर बहे लागल्हें । अपनऽ बेटा के छाती से लगाय लेलका आरों आशीर्वाद केरऽ हाथ ओकरऽ माथा पर फेरे का गला ।
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