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Sunday, July 14, 2019

बिना मतलब दखल देना | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री | Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri

बिना मतलब दखल देना | अंगिका कहानी  | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
| Angika Story  | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 

 
बिहाने केरऽ आठ बजे वाला छेले, उमा अपनऽ दोनों बच्चा केरऽ टिफिन बनाय के इसकूल (स्कूल) बस पर बैठाय के लौटी रहलऽ छेली, तभीय फोन घनघनाय लागले । उमा मुंह बनैलऽ फोन उठालकी, वू समझी रहलऽ छेली कि माय केरऽ फोन होते । मौका बेमौका मांय केरऽ फोन आना आरो ओकरऽ निजी जिन्दगी में बेमतलब दखल देना । अबे उमा के भारी पड़े लागलऽ छेले । ओकरा अपनऽ गृहस्ती अस्त व्यस्त नजर आय रहलऽ छेले । वू अपनऽ माय केरऽ बात नांय माने छै तेमाय नाराज होय जाती, आरो हमरऽ पति से उलटा सीधा सुनाती, एकरऽ असर सीधा उमा पर पड़ते । पति अपनऽ सब गुस्सा उमा पर उतारता, उमा केरऽ सास भी कटी जली सुनाबे छथिन, पता नांय केन्हऽ सुतोह मिललऽ छै । बीहा केरऽ पांच साल होय गेले, लेकिन अभी तक माय केरऽ अचरा में ही चिपक रहे छै । आय दिन फोनऽ पर बतियाते रहती । काम धंधा पर कोय ध्यान नांय । जबे कि आज माय बिहाने बिहाने फोन करी के उमा के अलग रहे केरऽ सलाह दे रहलऽ छेली । उमा के मना करे पर बिगड़ी गेली । आरो बोले लागली । कुछ अपनऽ भविष्य केरऽ बारे में भी सोचे उमा ? कब तक साझा परिवार में पिसाते रहबे । कब तक सास ससुर आरेा देवर केरऽ सेवा करते रहबे । बहुत रहले साझा परिवार में । अबे अलग रही के अपनऽ घऽर बसा । तोहरा से ई सब नांय बोललऽ जाय छऽ, ते हम्हीं दमाद के अलग रहे केरऽ सलाहदे दै छिहेंन । एन्हऽ कही के उमा केरऽ माय फोन काटी देलकी । उमा मने मन परेशान हुवे लागली माय केरऽ ई सब सुनी के उमा के ई बात बिना मतलब दखल देना लागी रहलऽ छेले । हम्में यहाँ आराम छी सभे हमरा कत्ते भाने छै । वू तुरंत अपनऽ पति के फोन करी के सब बात बताय देलकी, आरो ई भी कहलकी माय केरऽ फोन आबे ते तोहें साफ कही दिहऽ कि हमरऽ परिवार में अनावश्यक दखल नांय दहऽ ते ज्यादा अच्छा छै । भले माय हमरा से नाराज होय जाती ते होय जाय । हमरा कोय हालत में अलग नांय रहना छै । आरेा होंऽ भले ही हमरा से हमरऽ माय नाराज होय जाय, लेकिन हम्में अपन ई माय के नाराज नांय करबऽ जेकरा साथऽ में हम्में रही रहलऽ छिये । ई कही के उमा फोन राखी देलकी । हुन्ने पति आफिस में चापकेरऽ चुस्की लेते होलऽ अपनऽ कनियाय केरऽ समझदारी भरलऽ निर्णय पर गर्व महसूस करते होलऽ धीरे धीरे मुस्कुराय रहलऽ छेला । हुन्हीं भी निर्णय करी रहलऽ छेला आज जों, माय जी केरऽ फोन आते ते आय दिन केरऽ अनावश्यक दखल देना हमेशा हमेशा के लेलऽ बन्द करी देवूं । भले ही अन्जान जे होते । अबे ते उमा भी हमरऽ साथ छै । उमा केरऽ समझदारी पर पति गौरवान्वित महसूस करी रहलऽ छेला ।


टुटलौ कटोरी | अंगिका कहानी संग्रह | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री
Tutlow Katori | Angika Story Collection| Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri 





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