बीज केरऽ मूल स्वरूप बनाय रखना जरूरी छै | अंगिका कहानी | डॉ. (श्रीमती) वाञ्छा भट्ट शास्त्री| Angika Story | Dr. (Smt.) Vanchha Bhatta Shastri
आज के समय में लोग अपनऽ असली जीवन छिपाय लै छै । आरो नकली जीवन के प्रचारित करत रहे छै । दिखावा एते बढ़ी गेलऽ छै कि जे वास्तविक छै से छुपी जाय छै । बीज बनाबै वाला एक कम्पनी केरऽ मालिक अपनऽ प्रबन्धकऽ केरऽ बैठकी बैठलका । हुन्हीं अपनऽ भाषण में सब से मांग करलका कि हम्में जे बीज बनाबै छी, ओकरा में सिर्फ ऐहे ध्यान राखै छी कि ई बीज से गाछ जमे आरो एकरे बैज्ञानिक क्रिया अपनालऽ जाय छै । कंपनी केरऽ मालिक ने कहलकै हम्मेमं सोचे छी बीज में एक मौलिक सम्भावन छुपलऽ रहे छै । वू बीज केरऽ जे भी गाछ बनै छै, ओकरा में ऊ मौलिकता नांय रहे छै । हुन्कऽ बात बड़ी दार्शनिक छेलहेन । कुछ लोगऽ केरऽ मसझमें आलै कि जेकरऽ बीज छै, वहे गाछ जमतै । लेकिन ऊ सज्जन केरऽ कहना छेलै कि एकरऽ अलाबे गाछ पर, ऊ बीज केरऽ कुछ मौलिक देखभाल खाद आरो भूमि केरऽ प्रभाव के कारण कम या ज्यादा हो जाय छै । ई वारीक तनय छै । हुन्खऽ कहना छैले कि जीवन में भी ऐन्हे होय छै । हमरऽ जीवन केरऽ समगुता बीज रूप में भीतर मौजूद होय छै । आरऽ जीवन भर हम्में ओकरा समझी नांय पावै छिपै । ऐहे से मनुष्य बाहरी रूपऽ से मनुष्यते देखावै छै लेकिन आरेा भी बहुत कुछ बनै छै । लेकिन ओकरऽ जे मूल बीज छै मानवता केरऽ ओकरऽ प्रभाव शक्तित्व में नांय देखाबै छै । वू डाक्टर इंजीनियर, राजनेता आदि बनी जाय छै लेकिन बीज केरऽ मूल स्वभाव मानवता ओकरऽ जीवन से गायब होय जाय छै । ऐहे से बीज स्वरूप बनाय रखना आवश्यक छै । बीज बनाबै वाली कंपनी केरऽ मालिक केरऽ बात इंसानऽ पर लागू होय छै । परमात्मा ने मूल रूपऽ से जे बीज हमरऽ भीतर बुनलऽ हथ, हमरऽ जीवन में ओकरऽ मौलिकता बनलऽ रहना चाहिवऽ फेरऽ हम्में कोय भी पद पर हैऽ या कोय व्यवसाय से संबंधित रहँऽ फरक नांय पड़ना चाहीवऽ ।
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